बारह साल में बाघों की संख्या में शून्य से 'शिखर' पर पहुंचा पन्ना टाइगर रिजर्व
शिकार की घटनाओं के चलते वर्ष 2008 में पन्ना से बाघ खत्म हो गए थे। वर्ष 2009 में कान्हा व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से दो बाघिन और पेंच टाइगर रिजर्व से एक बाघ पन्ना पार्क में लाया गया।
मनोज तिवारी, भोपाल। शिखर का सफर वाकई कठिन और प्रेरक होता है, इसलिए उसकी चहुंओर चर्चा होती है। वर्ष 2008 में मध्य प्रदेश के जिस पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ खत्म हो गए थे। उस पार्क ने करीब 12 साल में शून्य से 'शिखर' का सफर तय कर लिया है। वर्ष 2018 में देशभर में हुई बाघों की गिनती में पन्ना पार्क में 55 बाघ पाए गए। हालांकि इससे अधिक बाघ प्रदेश के कई अन्य टाइगर रिजर्व में भी हैं, लेकिन पन्ना ने यह संख्या शून्य के बाद पाई है, इस मायने से वह शिखर पर है। यहीं नहीं, इसके बाद करीब एक दर्जन शावकों ने भी जन्म लेकर पार्क को गुलजार किया है और संख्या 55 से आगे निकल गई है। यही कारण है कि यूनेस्को ने पन्ना को विश्व धरोहर में शामिल किया है। इसका असर यहां के पर्यटन पर दिखाई देने लगा है। उपलब्धि को कायम रखने के लिए यहां बाघों के प्रबंधन और पर्यटन को लेकर नई कोशिशें शुरू हो गई हैं। पार्क में उन स्थानों को भी पर्यटन के लिए खोल दिया गया है, जहां अब तक पर्यटकों को जाने की मनाही थी।
55 से आगे निकली गिनती, पन्ना में बाघों के प्रबंधन और पर्यटन को लेकर नई कोशिशें शुरू
शिकार की घटनाओं के चलते वर्ष 2008 में पन्ना से बाघ खत्म हो गए थे। तब प्रदेश के दूसरे पार्को से पन्ना में बाघों को लाने की योजना बनाई गई। वर्ष 2009 में कान्हा व बांधवगढ़ टाइगर रिजर्व से दो बाघिन और पेंच टाइगर रिजर्व से एक बाघ पन्ना पार्क में लाया गया। तीनों की कॉलर आइडी लगाकर निगरानी की गई और दो साल में खुशखबरी आई। थोड़ी सुरक्षा और देखभाल मिली, तो बाघों का कुनबा लगातार बढ़ने लगा। वर्ष 2014 के बाघ आकलन में पार्क में 10 बाघ गिने गए थे तो चार साल में ही बढ़कर 55 हो गए। वर्ष 2018 में भी मार्च से पहले गिनती हुई थी। इसके बाद पार्क में 12 नवजात शावक देखे गए। इनमें से कुछ अब दो साल के होने वाले हैं। इसी करामात ने पन्ना पार्क को विश्व विरासत संस्था (यूनेस्को) की नजर में ला दिया। संस्था ने नवंबर 2020 में पन्ना पार्क और शहर को विश्व धरोहर में शामिल कर लिया।
झिरना-अकोला में पर्यटन शुरू
विश्व धरोहर में शामिल होते ही पन्ना में पर्यटकों की आवाजाही बढ़ गई। राज्य सरकार को भी इसका अनुमान था। इसलिए पार्क के बफर क्षेत्र में स्थित झिन्ना और अकोला क्षेत्र को पर्यटकों के लिए खोल दिया गया। इन क्षेत्रों में हाल तक पर्यटकों को जाने की इजाजत नहीं थी। आमतौर पर यहां बाघ देखने को मिल जाते हैं।
बाघों पर 24 घंटे पहरा
पार्क शिकार के लिए बदनाम है। इसलिए बाघों पर पहरा लगा हुआ है। यहां 25 से ज्यादा बाघ 24 घंटे निगरानी में रखे जाते हैं। इन बाघों को कॉलर लगाई गई है और उनसे करीब दो सौ फीट दूरी पर गश्ती दल चलता है, जो कॉलर के सिग्नल देखता रहता है। यदि एक घंटे से ज्यादा समय तक बाघ कोई हरकत नहीं करता है, तो उसे देखा जाता है।
मैदानी स्टाफ बढ़ाया
पिछले साल पार्क में शिकार के दो मामले सामने आए थे। इसके बाद वनरक्षक और वनपाल के करीब दो दर्जन खाली पद भर दिए गए। इन कर्मचारियों को रात-दिन गश्ती पर लगाया गया है। वहीं पार्क प्रबंधन और वन विभाग मिलकर पार्क की सीमा पर स्थित गांवों में जनसंपर्क कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के अपर प्रधान मुख्य वनसंरक्षक (वन्यप्राणी) जेएस चौहान ने कहा कि बफर में सफर के तहत दो क्षेत्र पर्यटकों के लिए खोल दिए हैं। कुछ और क्षेत्र खोलने पर विचार चल रहा है। बाघों की 24 घंटे निगरानी की जा रही है। स्टाफ बढ़ा दिया है और स्थानीय समुदाय को जोड़ा जा रहा है।