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उत्पादकता बढ़ाने का लक्ष्य, जरूरतों के लिहाज से अप्रासंगिक हो गए हैं अधिकांश श्रम कानून

वर्तमान में कुल 44 श्रम कानून हैं जो तमाम औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं। सरकार का मानना है एक तो इन कानूनों की संख्या जरूरत से ज्यादा है।

By Dhyanendra SinghEdited By: Published: Sun, 07 Jul 2019 07:19 PM (IST)Updated: Sun, 07 Jul 2019 07:19 PM (IST)
उत्पादकता बढ़ाने का लक्ष्य, जरूरतों के लिहाज से अप्रासंगिक हो गए हैं अधिकांश श्रम कानून
उत्पादकता बढ़ाने का लक्ष्य, जरूरतों के लिहाज से अप्रासंगिक हो गए हैं अधिकांश श्रम कानून

नई दिल्ली, जेएनएन। भारत की अर्थव्यवस्था के आकार को अगले पांच वर्षो में पांच लाख करोड़ डॉलर (वर्तमान भाव पर लगभग 350 करोड़ रुपये) पर पहुंचाने के लिए बजट में अन्य उपायों के अलावा श्रम सुधारों को लागू करने का एलान किया गया है। इसके लिए वित्त मंत्री ने मौजूदा 44 श्रम कानूनों को मिलाकर चार श्रम संहिताओं में बदलने के सरकार के फैसले का उल्लेख किया है।

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श्रम मंत्रालय के अधिकारियों के मुताबिक कानूनों के इस विलय और संक्षिप्तीकरण से फैक्टि्रयों एवं व्यापारिक प्रतिष्ठानों की उत्पादकता और उत्पादन में बढ़ोतरी होगी। इससे सामाजिक सुरक्षा योजनाओं के माध्यम से जुटाई जाने वाली 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक की राशि का कर्मचारियों और देश के हित में बेहतर ढंग से उपयोग किया जा सकेगा। इस बड़ी बचत के तर्कसंगत निवेश से इन्फ्रास्ट्रक्चर विकास के साथ आर्थिक विकास में मदद मिलेगी। इससे अंतत: ज्यादा से ज्यादा कर्मचारियों को और बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करना संभव होगा।

कानूनों की संख्या जरूरत से ज्यादा
वर्तमान में कुल 44 श्रम कानून हैं, जो तमाम औद्योगिक गतिविधियों को नियंत्रित करते हैं। सरकार का मानना है एक तो इन कानूनों की संख्या जरूरत से ज्यादा है। दूसरा, इनके अनेक प्रावधान गुजरते वक्त के साथ अप्रासंगिक होते गए हैं और उनमें संशोधन जरूरी हो गया है। इनमें कई प्रावधान सरकार के न्यू इंडिया के विजन के एकदम विपरीत हैं, जिन्हें बदले बगैर काम नहीं चलेगा।

चार संहिताओं में समेटने जा रही सरकार
मोटे तौर पर मौजूदा 44 श्रम कानूनों का संबंध औद्योगिक गतिविधियों से जुड़े चार मूलभूत पहलुओं से है। इनमें पहला फैक्टि्रयों के पंजीकरण और प्रक्रियाओं से, दूसरा कर्मचारियों के वेतन और सामाजिक सुरक्षा से, तीसरा कर्मचारियों की सुरक्षा और कार्यदशाओं से और चौथा कर्मचारी-नियोक्ता संबंधों से जुड़ा है। सरकार इन कानूनों की संख्या घटाने और इन्हें आर्थिक एवं औद्योगिक विकास के वर्तमान आवश्यकताओं के अनुसार अव्यावहारिक रूप देने के लिए इन्हें चार संहिताओं में समेटने जा रही है।

बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की राह
इसके लिए कर्मचारी भविष्य निधि एवं विविध प्रावधान, कर्मचारी राज्य बीमा निगम, मातृत्व लाभ, भवन एवं अन्य निर्माण श्रमिक तथा कर्मचारी क्षतिपूर्ति जैसे कानूनों को सामाजिक सुरक्षा संहिता में समाहित किया जा रहा है। इससे सामाजिक सुरक्षा से जुड़ी स्कीमों को बचतमूलक के बजाय निवेश और विकास को सहायक उपकरणों का रूप देने में मदद मिलेगी। इससे अंतत: कर्मचारियों को बेहतर सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने की राह खुलेगी।

कई वर्तमान कानूनों का समावेश
दूसरी संहिता जिसे औद्योगिक सुरक्षा एवं कल्याण संहिता नाम दिये जाने के संकेत हैं, में आज के फैक्ट्री एक्ट, खान एक्ट, गोदी श्रमिक (सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कल्याण) एक्ट जैसे विभिन्न कानूनों का समावेश किया जाएगा। इसी प्रकार वेतन संहिता के नाम से तैयार की जा रही तीसरी संहिता में न्यूनतम वेतन कानून, मजदूरी भुगतान कानून, बोनस भुगतान कानून तथा समान परिलब्धियां जैसे कानूनों का विलय होगा। जबकि चौथी संहिता में औद्योगिक विवाद कानून, ट्रेड यूनियन कानून, औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) जैसे कई वर्तमान कानूनों का समावेश होगा और इन अलग-अलग अधिनियमों के प्रावधानों को एक सारगर्भित कानून में समेट दिया जाएगा।


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