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अधिकांश फर्जी मुठभेड़ों के लिए सेना नहीं, पुलिस दोषी

जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में फर्जी मुठभेड़ों के आरोपों से घिरी सेना और अ‌र्द्धसैन्य बलों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बड़ी राहत दी है। आयोग का कहना है कि अधिकांश फर्जी मुठभेड़ों के लिए सेना के बजाय पुलिस ही जिम्मेदार है।

By Edited By: Published: Tue, 19 Nov 2013 08:14 PM (IST)Updated: Tue, 19 Nov 2013 08:17 PM (IST)
अधिकांश फर्जी मुठभेड़ों के लिए सेना नहीं, पुलिस दोषी

नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के राज्यों में फर्जी मुठभेड़ों के आरोपों से घिरी सेना और अ‌र्द्धसैन्य बलों के लिए राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग (एनएचआरसी) ने बड़ी राहत दी है। आयोग का कहना है कि अधिकांश फर्जी मुठभेड़ों के लिए सेना के बजाय पुलिस ही जिम्मेदार है।

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गौरतलब है कि फर्जी मुठभेड़ों की आड़ लेकर मणिपुर समेत पूर्वोत्तर के राज्यों और जम्मू-कश्मीर से सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून (अफस्पा) को हटाने की मांग हो रही है। एनएचआरसी के सदस्य सत्यब्रत पॉल का कहना है कि आयोग के निष्कर्षो से यह साफ हो जाता है कि तमाम राज्यों की पुलिस अधिकांश फर्जी मुठभेड़ों को अंजाम देती है और उन्हें अपनी सरकारों का संरक्षण प्राप्त होता है। उन्होंने बताया कि आयोग को 2005 से 2010 के बीच मणिपुर में 44 फर्जी मुठभेड़ों की जानकारी प्राप्त हुई, जिनमें राज्य सरकार ने महज तीन मामले में ही मुआवजा दिया। यही नहीं राज्य सरकार दोषियों को दंडित करने के बारे में भी गंभीर नहीं है। उनका मानना है कि फर्जी मुठभेड़ों की घटनाओं को तभी कम किया जा सकता जब दोषी पुलिस अधिकारी दंडित किया जाएं। दोषियों के खिलाफ कार्रवाई में आयोग की लाचारी जताते हुए पॉल ने कहा कि अफस्पा के कारण सैन्यबलों और राजनीतिक संरक्षण के कारण पुलिस के खिलाफ आयोग कोई कदम नहीं उठा सकता। मणिपुर और असम की फर्जी मुठभेड़ों के बारे में चिंता जताते हुए पॉल ने कहा कि पूर्वोत्तर के अन्य राज्यों में स्थिति शांतिपूर्ण है।

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