तेलंगाना में नौ जज निलंबित, विरोध में सामूहिक अवकाश पर गए 200 जज
हाईकोर्ट के इस फैसले के खिलाफ तेलंगाना में कार्यरत 100 से ज्यादा जज मंगलवार से 15 दिन के सामूहिक आकस्मिक अवकाश पर चले गए।
हैदराबाद, प्रेट्र। तेलंगाना की अदालतों में आंध्र प्रदेश के जजों की नियुक्ति के विरोध ने तूल पकड़ लिया है। आंदोलन कर रहे जजों को अनुशासनहीनता के आरोप में निलंबित किया जा रहा है। मंगलवार को हैदराबाद हाईकोर्ट ने जैसे ही नौ और जजों को निलंबित किया, वैसे ही राज्य में ऐतिहासिक हड़ताल शुरू हो गई। इससे पहले सोमवार को भी दो जजों को निलंबित किया गया था। इस तरह कुल 11 जजों के निलंबन के विरोध में तेलंगाना की विभिन्न अदालतों के 200 जज 15 दिनों के लिए सामूहिक अवकाश पर चले गए। जबकि जजों के एसोसिएशन ने बुधवार को हाईकोर्ट बंद का आह्वान किया है।
निलंबन की कार्रवाई के बाद मंगलवार को जजों के एसोसिएशन की आपात बैठक हुई। इसमें 15 दिनों के सामूहिक अवकाश पर जाने का फैसला लिया गया। साथ ही आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच न्यायिक अधिकारियों के अस्थायी आवंटन की सूची तुरंत वापस लेने की मांग करते हुए प्रस्ताव पारित किया गया। जजों के समर्थन में पूरे तेलंगाना में वकीलों ने अदालतों के बाहर विरोध प्रदर्शन किए।
इससे पहले रविवार को 100 जजों ने तेलंगाना जजेज एसोसिएशन के बैनर के तहत रैली निकाली और राज्यपाल को ज्ञापन सौंपा था। इसके अलावा 125 जजों ने एसोसिएशन के अध्यक्ष को इस्तीफा सौंप दिया था और मांगें न माने जाने पर इस्तीफों को राज्यपाल के पास भेजने को कहा था।
क्या है मामला
तेलंगाना के न्यायिक अधिकारी और वकील आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच जजों के अस्थायी आवंटन के खिलाफ छह जून से आंदोलन कर रहे हैं। -निचली अदालतों के जज आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के बीच अपने बंटवारे से खुश नहीं हैं।-इन्हें तेलंगाना में आंध्र के जजों के आने से प्रमोशन पर विपरीत असर का डर है।-अभी दोनों राज्यों के लिए एक ही हाईकोर्ट है और इसके जज भी इस मसले पर असंतुष्ट बताए जाते हैं।
केंद्र भी लपेटे में, दिल्ली में धरना देंगे सीएम
न्यायिक अधिकारियों के आंदोलन के बीच तेलंगाना में हाईकोर्ट स्थापित न होने के लिए टीआरएस ने केंद्र सरकार को जिम्मेदार ठहराया है। टीआरएस सांसद के. कविता ने कहा कि इस मुद्दे पर उनके पिता और तेलंगाना के मुख्यमंत्री के. चंद्रशेखर राव दिल्ली में धरना देकर विरोध जताएंगे।
हालांकि तेलंगाना सरकार मामले को इस हद तक नहीं ले जाना चाहती है। इसलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी खुद मामले में हस्तक्षेप करके राज्य में हाईकोर्ट बनवाने का रास्ता साफ करें। कविता ने बताया कि उनकी पार्टी ने संसद में दस बार मामले को उठाया।
मुख्यमंत्री ने भी प्रधानमंत्री से अपील की, लेकिन हाईकोर्ट का बंटवारा नहीं हुआ। इसके जवाब में केंद्र ने साफ किया कि हाईकोर्ट की स्थापना में उसकी कोई भूमिका नहीं है। केंद्रीय कानून मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा ने कहा कि नए हाईकोर्ट की स्थापना का फैसला मुख्यमंत्री और संबंधित राज्य के हाई कोर्ट के मुख्य न्यायाधीश करते हैं। टीआरएस के राजनीतिक कारणों से लगाए जा रहे आरोप अस्वीकार्य हैं।
उल्लेखनीय है कि जून 2014 में आंध्र प्रदेश से अलग कर तेलंगाना का गठन हुआ था, लेकिन हाईकोर्ट का बंटवारा नहीं किया गया।
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