मोरारी बापू श्रीराम कथा में बोले- हमारा कर्तव्य है जिसके पास जो क्षमता हो उसमें से दशांश का दान करें
बापू ने करुणा से भरे आर्द्र वचनों से कहा कि मजबूरी और परिस्थितियों के शिकार हुए लोगों के प्रति हमारा कर्तव्य है कि जिसके पास जो क्षमता हो उसमें से दशांश का दान करें क्षमता चाहे पैसे की हों बुद्धि की हों या पद-प्रतिष्ठा की हों।
रामेश्वरम, जेएनएन। रामायण कालीन धार्मिक एवं पौराणिक स्थल धनुषकोड़ी रामसेतु रामेश्वरम में पिछले नौ दिन से चल रही रामकथा का आज विराम दिन था। मोरारीबापू ने आज कथा के आरंभ में गीतावली रामायण से शिव पार्वती के एक प्रसंग के संदर्भ में कहा कि हर चीज के 'अर्थ' खोजने से अच्छा है उसमें से 'परमार्थ' खोजा जाये क्योंकि राम परमार्थ रूप हैं, राम संकीर्ण नहीं हैं। रामायण में चारों भाइयों के नामकरण विधि को तुलसीदासजी ने मानो राम-नाम जपने वालों के लिए एक प्रक्रिया बताई है कि रामनाम जपने वाला किसी का शोषण न करें, भरत की तरह पोषण करें, शत्रुघ्न की तरह शत्रु-बुद्धि का नाश करें और लक्ष्मण की तरह सबका आधार बनें।
बापू ने करुणा से भरे आर्द्र वचनों से कहा कि इस सृष्टि में कोई भी चेतना को भीख मांगना अच्छा नहीं लगता। मजबूरी और परिस्थितियों के शिकार हुए लोगों के प्रति हमारा कर्तव्य है कि जिसके पास जो क्षमता हो उसमें से दशांश का दान करें : क्षमता चाहे पैसे की हों, बुद्धि की हों या पद-प्रतिष्ठा की हों। गरीबी हटाओ की बातें बहुत हुई, फिर भी, अभी भी बहुत गरीबी है। वस्तु की गरीबी कभी नहीं होनी चाहिए, स्वभाव की गरीबी होनी चाहिए। भौतिकता की केवल आलोचना करने से या गरीबी हटाने की बड़ी-बड़ी आध्यात्मिक बातें करने से कुछ नहीं होगा। जो धरा पर हैं, उनको भौतिकता जरूरी है। हर गरीब को अपना एक मकान होना चाहिए। सरकार कर रही हैं, लेकिन बहुत काम अभी भी बाकी है। राजपीठ भी करें, व्यासपीठ भी करें। कोई नहीं करेगा तो काल करेगा, काल का काल महाकाल,महादेव करेगा। इस तरह हम सब से जुड़े और वृत्ति के रूप में सेतुबंध को सार्थक करें। स्थूल रूप में रामसेतु बने या ना बने, राम राज्य में एक दूसरे के बीच प्रीति का सेतु बना था, वैसा प्रीति का सेतु बन जाएं तो भी बहुत है। आज यह, मैं कोई प्रासंगिक घटना देखकर नहीं बोल रहा हूं, मेरी 60 साल की कथा-कथन में,पहले से ही मेरा बेज़, मेरा स्टैंड यही था और आज भी है। मेरी व्यासपीठ राम-नाम और राम-काम दोनों कर रही है। मैंने अपनी कथा को जान डाल कर सींची है और यह बेल आज फली-फूली है।
रामेश्वर भगवान की स्थापना करके वहां उपस्थित समाज को निमित्त बनाकर रामजी ने विश्व को मैसेज दिया कि जो शिव को मानेगा और मेरी निंदा करेगा या मुझे मानेगा और शिव की निंदा करेगा, उसकी दुर्गति होगी। यह शैवों और वैष्णवों के बीच सेतु था। मेरे देश का पक्षी चाहता है कि सेतुबंध हो, मेरे देश का ऋषि चाहता है कि सेतुबंध हो, मेरे देश का महादेव चाहता है कि सेतुबंध हो। धनुषकोडी़ की यह कथा को बापू ने ऐतिहासिक और आध्यात्मिक, स्थूल और सूक्ष्म, दोनों के बीच का सेतु कहा। हर एंगल से कथा सफल रही, सुफल रही।
कोरोना की वैक्सीन के बारे में बताते हुए बापू ने कहा कि हमारे यशस्वी प्रधानमंत्री श्री को मैं साधुवाद देता हूं, उन्होंने वैक्सिन के लिए बहुत काम किया है। जहां शुभ होता हो वो सराहनीय है। मेरा सब से एक प्रामाणिक डिस्टेंस है। राजपीठ से मुझे कुछ लेना देना नहीं है। आज, रामकथा के विराम के दिन, बापू ने रामकथा के प्रसंगों से गुजरते हुए, प्रत्येक प्रसंग में से सेतुबंध का सूक्ष्म दर्शन कराया। इस कथा के सुचारु आयोजन और सेवा के राम-कार्य की सराहना करते हुए, बड़ी प्रसन्नता के साथ बापू ने कहा कि इस कथा ने बहुत सारी स्मृतियों की नींव डाली है। गत दिन, 1008 पोंगल-बधाई देने के सेवा-कार्य को लेकर बापू ने प्रसन्नता व्यक्त की और बताया कि उन्होंने वहां से भिक्षा भी ली थीं। बापू ने आगामी पर्व मकर संक्रांति और पोंगल की सबको बधाई दी। सब संपन्न रहें, प्रसन्न रहें और सत्य, प्रेम, करुणा के चरणों में प्रपन्न रहे ऐसी आशीष के साथ इस नौ दिवसीय रामकथा को विराम दिया।