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मौसम विभाग का पूर्वानुमान आज बरसते बादल कल तरसाएंगे

बेमौसम बरस चुके बादल अब जरूरत के समय कम बरसेंगे। इस बार मानसूनी हवाओं के कमजोर रहने का अंदेशा है। आशंका है कि रबी फसलों में भारी नुकसान उठा चुके किसानों के लिए खरीफ की खेती भी घाटे का सौदा साबित होगी। भारतीय मौसम विभाग के पूर्वानुमान में कहा गया

By Sumit KumarEdited By: Published: Thu, 23 Apr 2015 09:05 AM (IST)Updated: Thu, 23 Apr 2015 10:15 AM (IST)
मौसम विभाग का पूर्वानुमान आज बरसते बादल कल तरसाएंगे

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। बेमौसम बरस चुके बादल अब जरूरत के समय कम बरसेंगे। इस बार मानसूनी हवाओं के कमजोर रहने का अंदेशा है। आशंका है कि रबी फसलों में भारी नुकसान उठा चुके किसानों के लिए खरीफ की खेती भी घाटे का सौदा साबित होगी। भारतीय मौसम विभाग के पूर्वानुमान में कहा गया है कि मानसून की बारिश औसत से कम होगी। इसका सबसे अधिक असर देश के उत्तरी, पश्चिमी और मध्य भारत की खेती पर पड़ेगा।

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केंद्रीय विज्ञान, प्रौद्योगिकी और पृथ्वी विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन ने बुधवार को प्रेसवार्ता में यह घोषणा की। उन्होंने कहा,दीर्घकालिक मानसून के औसत की 93 फीसद बारिश होगी। मौसम विभाग का यह पहला पूर्वानुमान है। दूसरा पूर्वानुमान जून में होता है, जो काफी सटीक होता है। मौसम विभाग ने 2014 के अपने पहले अनुमान में मानसून के सामान्य से 95 फीसद रहने का अनुमान लगाया था, लेकिन बारिश 88 फीसद पर सिमट गई थी। इससे साफ है कि खरीफ सीजन की फसलें प्रभावित जरूर होंगी।

पहले से थी आशंका : प्रशांत महासागर में अल नीनो के प्रभाव को देखते हुए कई अंतरराष्ट्रीय एजेंसियों ने मानसून प्रभावित होने का अंदेशा जताया था। जून से सितंबर के बीच भारत में कुल बरसात की तीन चौथाई मानसूनी बारिश होती है।

विज्ञान मंत्री हर्षवर्धन ने कहा कि कम बारिश की आशंका के बावजूद चिंता की कोई बात नहीं है। केंद्र सरकार पूरी तरह मुस्तैद है। कमजोर मानसून से निपटने के लिए तमाम इंतजाम किए जा रहे हैं।

कृषि मंत्री राधामोहन सिंह ने कहा कि मौसम विभाग के पूर्वानुमान पर कृषि मंत्रलय की पैनी नजर है। जरूरत के अनुरूप तैयारी शुरू कर दी जाएगी। किसी भी आपदा में केंद्र सरकार किसानों के साथ है।

अल नीनो का ग्रहण
ऐसी मौसमी दशा जिसमें भूमध्य रेखा पर प्रशांत महासागर की सतह का तापमान औसत से अधिक हो जाता है। असामान्य वाष्पीकरण व संघनित बादल दक्षिण अमेरिका में भारी बारिश करते हैं, पर प्रशांत महासागर का दूसरा उष्ण कटिबंधीय छोर अछूता रहता है। नतीजा कम बारिश-सूखे की स्थिति बनती है। यही स्थिति दक्षिण पश्चिमी मानसून को प्रभावित करती है।

विरोधाभास भी कम नहीं
>> आंकड़े बताते हैं कि सूखे वाले साल में अल नीनो स्थिति बन सकती है पर जरूरी नहीं है कि अल नीनो वाले साल में सूखा पड़े।

>> मानसून प्रभावित करने के लिए सिर्फ अल नीनो ही नहीं जिम्मेदार होता है। 1997 में बहुत ताकतवर अल नीनो दशा बनी थी, लेकिन देश में 2.2 फीसद अधिक वर्षा हुई।

>> भारत में 1982, 1986, 1987, 2002, 2004 व 2009 सूखा रहा। अल नीनो भी रहा। 1994 में औसत,1997 में ताकतवर अल नीनो के बावजूद जमकर बारिश हुई। 2006 में अल नीनो कमजोर रहा फिर भी मानसून सामान्य रहा।

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