खुर्शीद की नसीहत, अपनी समझ के मुद्दों पर ही बोलें मोदी
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। नरेंद्र मोदी पर केंद्र सरकार के हमलों का सिलसिला जारी है। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने मोदी को उन्हीं विषयों पर बोलने की सलाह दी है, जिनकी उन्हें समझ है। वर्ना विश्व मंच पर लगेगा कि हमारे पास विदेश नीति की समझ रखने वाले नेताओं की कमी है।
नई दिल्ली [जागरण ब्यूरो]। नरेंद्र मोदी पर केंद्र सरकार के हमलों का सिलसिला जारी है। विदेश मंत्री सलमान खुर्शीद ने मोदी को उन्हीं विषयों पर बोलने की सलाह दी है, जिनकी उन्हें समझ है। वर्ना विश्व मंच पर लगेगा कि हमारे पास विदेश नीति की समझ रखने वाले नेताओं की कमी है।
भाजपा की ओर से प्रधानमंत्री पद के उम्मीदवार के तौर पर उभरे मोदी पर तंज कसते हुए खुर्शीद ने कहा 'देश का अगर कोई मुख्य नेता बिना जानकारी के विदेश नीति के विषय पर बोलता है तो दिक्कत आती है।' पत्रकारों से रूबरू खुर्शीद ने कहा कि अच्छा हो कि विदेश नीति के मामलों पर हर नेता सोच-समझकर बोले और बोलने से पहले जरूरी हो तो विचार-विमर्श कर ले।
महत्वपूर्ण है कि बीते दिनों अमेरिका और कनाडा में बसे भारतीयों को वीडियो कांफ्रेंसिंग के जरिये संबोधित करते हुए मोदी ने सरकार की विदेश नीति पर हमला बोला था। इसके अलावा पाकिस्तानी जेल में सरबजीत की मौत व सीमा पर दो भारतीय जवानों के सिर काटे जाने की घटना को लेकर भी सरकार की विदेश नीति पर सवाल उठाए थे।
मोदी के खिलाफ आए सलमान खुर्शीद के बयान का भाजपा ने प्रतिकार किया। पार्टी प्रवक्ता सुधांशु त्रिवेदी ने कहा कि आश्चर्य है कि विदेश नीति पर सावधानी बरतने की सलाह ऐसी सरकार के नेता दे रहे हैं जिसमें सलमान के पूर्ववर्ती विदेश मंत्री संयुक्त राष्ट्र में दूसरे मुल्क का भाषण पढ़ आए थे। उल्लेखनीय है कि सलमान से पहले विदेश मंत्री रहे एसएम कृष्णा ने भूल से संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में पुर्तगाली विदेश मंत्री का भाषण पढ़ दिया था। हालांकि उन्होंने कुछ ही देर में भूल सुधार भी कर ली थी।
वैसे विदेश नीति को लेकर नरेंद्र मोदी और संप्रग सरकार के मंत्रियों के बीच जुबानी जंग बीते कुछ समय से चल रही है। मोदी ने दिसंबर 2012 में प्रधानमंत्री के नाम एक खुला पत्र लिखकर सरक्रीक पर पाकिस्तान के साथ बातचीत और सहमति पर देश को भरोसे में लेने की मांग की थी। मोदी के इस बयान पर भी सरकार की ओर से तीखी प्रतिक्रिया आई थी, जिसमें सरक्रीक मामले पर किसी तरह का समझौता होने जाने से इन्कार किया गया था।
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