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शिक्षा के क्षेत्र में बड़े मिथक को तोड़ने की मोदी सरकार की कोशिश

भारत सरकार का उद्देश्य साफ है कि अपने संस्थान विश्वस्तरीय हों, तो इससे दुनिया में भारत की साख बढ़ेगी। बाहर के छात्र भारत पढ़ने आएंगे। भारत इससे विदेशी पूंजी भी जुटा सकेगा।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 13 Jun 2018 03:22 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jun 2018 03:22 PM (IST)
शिक्षा के क्षेत्र में बड़े मिथक को तोड़ने की मोदी सरकार की कोशिश
शिक्षा के क्षेत्र में बड़े मिथक को तोड़ने की मोदी सरकार की कोशिश

नई दिल्‍ली। शिक्षा का क्षेत्र सिर्फ निवेश का ही क्षेत्र माना जाता रहा है, लेकिन मोदी सरकार ने इस मिथक को तोड़ने की कोशिश की है। उसने अपने संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने जैसी एक बड़ी योजना पेश की है। सरकार का मानना है कि दुनिया के दूसरे देश जब उच्च शिक्षा के क्षेत्र में विकास कर अच्छा पैसा कमा सकते हैं, तो वह भी ऐसा क्यों नहीं कर सकते हैं। हालांकि, इस लक्ष्य को हासिल करना आसान नहीं है। अभी बड़ी संख्या में भारतीय छात्र उच्च शिक्षा के लिए अमेरिका-इंग्लैंड जैसे देशों में जाते हैं। एक रिपोर्ट के मुताबिक उच्च शिक्षा के लिए विदेश जाने वाले यह छात्र हर साल करीब 66 हजार करोड़ रुपए खर्च करते हैं। अमेरिका जैसे देशों की अर्थव्यवस्था में दूसरे देशों से आने वाले छात्रों की बड़ी भागीदारी है। 

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भारत सरकार का उद्देश्य साफ है कि अपने संस्थान विश्वस्तरीय हों, तो इससे दुनिया में भारत की साख बढ़ेगी। बाहर के छात्र भारत पढ़ने आएंगे। भारत इससे विदेशी पूंजी भी जुटा सकेगा। अपने छात्र लाभान्वित होंगे और वह जो धन विदेश में खर्च करते हैं, अपने देश में रह जाएगा। इस बदलाव के लिए संस्थानों के इंफ्रास्ट्रक्चर की मजबूती के साथ-साथ उनकी स्वायत्तता और गुणवत्ता पर जोर है। शोध को बढ़ावा दिया जा रहा है। एक हजार करोड़ का एक फंड बना है। हेफा जैसे वित्तीय सहायता देने वाली एजेंसी का भी गठन किया है। इसके जरिए संस्थानों को अब शोध के लिए भरपूर पैसा दिया जा रहा है। सरकार 20 संस्थानों को विश्वस्तरीय बनाने की योजना पर काम कर रही है। 

जवाबदेही की डोर से बंधेंगे स्‍कूल 
पिछले कुछ सालों में स्कूली शिक्षा को लेकर हमारी जो नीति रही, उसके चलते ज्यादातर स्कूल मिड-डे मील सेंटर में तब्दील हो गए थे। जहां बच्चों के आने, खाने और जाने तक ही सारी गतिविधियां सीमित हो गई थीं। आठवीं तक बच्चों को फेल न करने की नीति से हालत और बिगड़ी। पढ़ाई छात्रों और शिक्षकों दोनों की ही प्राथमिकता से गायब हो गई। ज्यादातर स्कूलों में आठवीं के बच्चे तीसरी और दूसरी के गणित के सवाल नहीं हल कर पा रहे थे। इसी से आठवीं के बाद फेल होने की रफ्तार तेज हो गई। सरकार ने छात्रों के पूर्ण विकास की एक योजना पर काम शुरू किया। हाल में समग्र शिक्षा अभियान लांच किया है। दावा है कि इससे स्कूलों की हालत सुधरेगी। जोर गुणवत्ता सुधारने पर है। छात्रों को कब-क्या आना चाहिए, इस पर पूरा जोर दिया गया है। लर्निंग आउटकम का मॉड्यूल विकसित किया गया है। इससे प्रत्येक छात्र और अध्यापक को जोड़ा जा रहा है।

रटकर पास होने की प्रवृत्ति को खत्म करने की भी पहल की गई है। बच्चों में सोचने, समझने और कुछ नया करने की प्रवृत्ति को विकसित किया जा रहा है। अटल टिंकरिंग लैब इसी से जुड़ी एक पहल है। ब्लैक बोर्ड को स्मार्ट बोर्ड से लैस करने और प्रत्येक स्कूल में पुस्तकालय और खेलने की सुविधाओं को जुटाने की पहल की गई है। यह पहल कारगर रही तो प्रत्येक छात्र के जीवन में कुछ बदलाव जरूर लगाएगी। सरकार ने 12 वीं के बाद पढ़ा रहे अप्रशिक्षित शिक्षकों को प्रशिक्षण देने की भी पहल की है। मार्च 2019 तक स्कूलों में पढ़ा रहे करीब 15 लाख शिक्षकों को प्रशिक्षित कर दिया जाएगा। अगर यह पूरा होता है तो सरकार स्कूली शिक्षा में सुधार के लिए अपनी पीठ थपथपा पाएगी।


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