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मोदी सरकार ने अपनायी अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने की नीति, महंगाई पर लगाया ब्रेक

अर्थव्यवस्था की सेहत का सबसे प्रमुख सूचक विकास दर है। मोदी सरकार से पहले 2013-14 में विकास दर 6.4 प्रतिशत थी जो 2015-16 में 8.1 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद 2017-18 में 6.7 प्रतिशत पर आ गयी है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Wed, 20 Jun 2018 01:31 PM (IST)Updated: Wed, 20 Jun 2018 02:32 PM (IST)
मोदी सरकार ने अपनायी अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने की नीति, महंगाई पर लगाया ब्रेक

नई दिल्ली [हरिकिशन शर्मा]। पूर्ववर्ती यूपीए सरकार के कुछ वर्ष उच्च विकास दर और उच्च महंगाई दर की नीति से हटकर मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था को संतुलित रखने की नीति अपनायी। इससे चार साल में सालाना औसत विकास दर न सिर्फ सात प्रतिशत से अधिक रही बल्कि मुद्रास्फीति पूरी तरह काबू रही। इससे आम लोगों को आसमान छूती महंगाई से राहत मिली। साथ ही राजकोषीय अनुशासन बरतते हुए राजकोषीय घाटे को भी नीचे लाने का काम किया गया। अर्थव्यवस्था की सेहत का सबसे प्रमुख सूचक विकास दर है। मोदी सरकार से पहले 2013-14 में विकास दर 6.4 प्रतिशत थी जो 2015-16 में 8.1 प्रतिशत पर पहुंचने के बाद 2017-18 में 6.7 प्रतिशत पर आ गयी है। वित्त वर्ष 2017-18 की अंतिम तिमाही (जनवरी-मार्च) में देश की विकास दर 7.7 प्रतिशत रही है जो कि विश्वभर में प्रमुख उभरती अर्थव्यवस्थाओं में सर्वाधिक है। मोदी सरकार ने अर्थव्यवस्था में संतुलन स्थापित किया है।

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महंगाई पर लगाम

इसका परिणाम यह है कि गरीबों को सताने वाली महंगाई पर लगाम लग गयी है। महंगाई को थामने के लिए मौद्रिक नीति समिति (एमपीसी) के रूप में न सिर्फ एक तंत्र बनाया बल्कि राजकोषीय अनुशासन बनाए रखाजिससे मुद्रास्फीति पर अंकुश लगाना संभव हुआ। वित्त वर्ष 2012-13 में औसतन 10 प्रतिशत और 2013-14 में 9.4 प्रतिशत के स्तर पर रहने वाली खुदरा महंगाई दर 2016-17 में साढ़े चार प्रतिशत तथा पिछले वित्त वर्ष में चार प्रतिशत के आस-पास आ गयी है। थोक महंगाई दर भी इस अवधि में छह-सात प्रतिशत के स्तर कम होकर एक-दो फीसद के आस-पास आ गयी है। हालांकि बीते कुछ महीनों से महंगाई दर में फिर बढ़ोत्तरी का ट्रेंड देखने को मिला है।

चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिश

चौदहवें वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुरूप केंद्रीय करों में राज्यों की हिस्सेदारी 32 प्रतिशत से बढ़ाकर 42 प्रतिशत करने और आम बजट का आकार 20 लाख करोड़ रुपये से अधिक होने के बावजूद सरकार ने अपने खजाने के प्रबंधन में राजकोषीय संतुलन का परिचय दिया है। 2013-14 में राजकोषीय घाटा जीडीपी का 4.4 प्रतिशत था जिसे चालू वित्त वर्ष में 3.3 प्रतिशत का लक्ष्य रखा गया है। राजस्व घाटा वर्ष 2013-14 में जीडीपी के 3.1 प्रतिशत से चालू वित्त वर्ष में 2.2 प्रतिशत का लक्ष्य है। राजस्व संग्रह में कमी को पूरा करने के लिए सरकार को बाजार उधारी में कटौती की अपनी नीति को त्यागना पड़ा और पीएसयू डिविडेंड और विनिवेश पर जोर देना पड़ा। डॉलर के मुकाबले रुपये की कीमत घटने की वजह से चालू खाता 2017-18 में जीडीपी का 1.9 प्रतिशत हो गया है। विदेशी निवेश आकर्षित करने में भी सरकार ने अहम उपलब्धि हासिल की है।

विवाद में रहा हुनर और रोजगार

रोजगार और स्वरोजगार का विवाद ऐसा मुद्दा है जिसपर कुछ भी ठोस रूप से जांच परख कर नहीं कहा जा सकता है। दरअसल रोजगार को लेकर कोई तथ्यपरख सौ फीसद पुष्ट आंकड़ा ही नहीं है। सरकार के दावे और विपक्ष के आरोपों के बीच लड़ाई फिसलन भरी जमीन पर लड़ी जा रही है। नोटबंदी के बाद रोजगार में कमी दिखी। मुद्रा के जरिए लगभग पांच करोड़ लोगों को स्वरोजगार के लिए लोन दिया गया। अगर इनमें से हर किसी ने एक भी नौकरी दी तो यह आंकड़ा दस करोड़ तक पहुंच सकता है।

स्वरोजगार का खाका 

माना गया कि नोटबंदी ने मध्यम और छोटे कारोबार की कमर तोड़ दी और असंगठित क्षेत्र में नौकरियों पर तलवार चली। लेकिन प्रधानमंत्री ने पहले ही स्वरोजगार का खाका बुन लिया था। 8 अप्रैल 2015 को प्रधानमंत्री ने मुद्रा योजना लांच करते हुए कहा था, ‘बड़े-बड़े उद्योग सिर्फ एक करोड़ 25 लाख लोगों को रोजगार देते हैं, 5 करोड़ 70 लाख छोटे व मझोले उद्यमी 12 करोड़ लोगों को रोजगार देते हैं।’ मुद्रा योजना से अब तक 12 करोड़ से अधिक उद्यमियों को लाभ मिल चुका है। मोदी सरकार ने आम बजट 2018-19 में एमएसएमई श्रेणी की कंपनियों को बड़ी राहत दी।

कारपोरेट टैक्स

सरकार ने उन कंपनियों के लिए कारपोरेट टैक्स की दर 30 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करने की घोषणा की जिनका सालाना टर्नओवर 2016-17 में 250 करोड़ रुपये तक था। सरकार के इस निर्णय से सूक्ष्म, लघु और मध्यम श्रेणी की शत प्रतिशत कंपनियों को लाभ मिला। कौशल विकास को अलग मंत्रालय बनाकर मोदी सरकार ने यह मंशा स्पष्ट कर दी थी कि वह रोजगार को लेकर गंभीर है। खासकर तब जबकि भारत में प्रशिक्षित कामगारों का आंकड़ा मात्र 2.3 प्रतिशत है। पर यह बहुत परवान चढ़ती नहीं दिखी। बल्कि कौशल विकास खुद कौशल के अभाव में विवादों में भी घिरा रहा।


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