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अगर ऐसा हुआ तो कई माइक्रो फाइनेंस कंपनियां दम तोड़ देंगी, जानें- क्‍या है पूरा मामला और एक्‍सपर्ट व्‍यू

वित्तीय सेवाओं के विस्तार के रूप में माइक्रो फाइनेंस की सुविधा बेहतर विकल्प की तरह है। बांग्लादेश में मोहम्मद युनूस ने वहां की ग्रामीण जरूरतों को ध्यान में रखकर छोटे कर्ज मुहैया कराने का ढांचा तैयार किया था।

By Kamal VermaEdited By: Published: Fri, 22 Jan 2021 07:56 AM (IST)Updated: Fri, 22 Jan 2021 07:59 AM (IST)
अगर ऐसा हुआ तो कई माइक्रो फाइनेंस कंपनियां दम तोड़ देंगी, जानें- क्‍या है पूरा मामला और एक्‍सपर्ट व्‍यू
विकास को गति देने के लिए खास है माइक्रो फाइनेंस

राहुल लाल। भारत में वित्तीय समावेशन के साथ विकासपरक कार्यो को अग्रसारित करने में माइक्रो फाइनेंस की महत्वपूर्ण भूमिका है। माइक्रो फाइनेंस की सुविधा बैंक रहित क्षेत्रों में प्रमुख वर्गो के लिए वित्तीय सेवाओं के विस्तार के रूप में बेहतर विकल्प के तौर पर है। ऐतिहासिक संदर्भ में देखा जाए तो बांग्लादेश में मोहम्मद युनूस ने वहां की ग्रामीण जरूरतों और सामाजिक ताने-बाने को ध्यान में रखकर छोटे कर्ज मुहैया कराने का ढांचा आज से चार दशक पहले तैयार किया था। यह मॉडल इतना कामयाब रहा कि वर्ष 2006 में उन्हें इसके लिए शांति का नोबेल पुरस्कार दिया गया। वर्ष 2010 के बाद से हमारे देश में यह प्रयोग पहले से तेज हुआ है। 

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यहां माइक्रो फाइनेंस कंपनियां भारतीय रिजर्व बैंक की निगरानी में काम करती हैं और वंचित आय वर्ग के लोगों को कर्ज देती हैं। इस तरह भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था के विकास में माइक्रो फाइनेंस कंपनियों की महत्वपूर्ण भूमिका रही है। उल्लेखनीय है कि ग्रामीण क्षेत्रों में औपचारिक रोजगार का अभाव ग्रामीण जनता को औपचारिक बैंकिंग कर्ज सेवाओं से दूरी बना देता है। माइक्रो फाइनेंस ने सफल व्यवसाय का सृजन कराकर न केवल देश में सूक्ष्म उद्यम को प्रोत्साहित किया है, अपितु रोजगार सृजन में भी योगदान दिया है।

कोरोना काल में हालात : सूक्ष्म वित्त संस्थाओं पर तीव्र नजर रखने वाले विशेषज्ञों के अनुसार महामारी से एमएफआइ (सूक्ष्म वित्त संस्था) के बैलेंस शीट पर कम से कम 10 हजार करोड़ रुपये का असर जरूर पड़ेगा। अगर ऐसा हुआ तो कई सूक्ष्म वित्त संस्थाएं दम तोड़ देंगी। गौरतलब है कि केंद्र सरकार ने एक जून 2020 को रेहड़ी-पटरी वालों के लिए स्ट्रीट-वेंडर आत्मनिर्भर कार्यक्रम का एलान किया था। आवास और शहरी विकास मंत्रलय के मुताबिक, इसके तहत 18 नवंबर तक ठेले और खोमचे वालों की ओर से कुल 27.33 लाख अर्जयिां मिलीं। इसमें 14.34 लाख अर्जयिों को मंजूरी मिली, जबकि 7.88 लाख कर्ज बांटे भी जा चुके हैं। इससे भी माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र में थोड़ी हलचल उत्पन्न हुई।

इन सबके बावजूद देश के अधिकांश हिस्सों में लॉकडाउन हटने के बाद भी आíथक गतिविधियां पूरी तरह पटरी पर नहीं लौटी हैं। इस क्षेत्र में कोविड से पहले तक छोटे कर्जो की वापसी दर 99 फीसद थी, जो अब 90 फीसद ही है। नए लोन की मांग आना शुरू हुई है, परंतु सब कुछ सामान्य होने में अभी समय लगेगा। कर्ज वापसी बहुत सुधरने के बाद भी 95 फीसद से ऊपर पहुंचने की उम्मीद नहीं है। वित्त वर्ष 2019-20 में भारत का माइक्रो फाइनेंस उद्योग 31 फीसद की दर से बढ़कर 2.36 लाख करोड़ रुपये तक पहुंच गया। इस हिसाब से इस क्षेत्र में करीब 11,800 करोड़ रुपये डूबने की आशंका जताई जा रही है।

भारतीय रिजर्व बैंक ने भी कोविड के चलते कुल डूबे कर्ज की संख्या और राशि के तेजी से बढ़ने का अंदेशा जताया था। भारतीय रिजर्व बैंक ने हाल ही में यह आशंका जताई है कि बैंकों के एनपीए मार्च 2020 में 8.5 फीसद के मुकाबले मार्च तक 12.5 फीसद तक पहुंच सकता है। इतना ही नहीं, यदि संकट गहराया तो यह आकड़ा 14.7 फीसद तक भी पहुंच सकता है। रिजर्व बैंक ने यह बात बैंकों के कुल पोर्ट फोलियो के लिहाज से कही थी, जिसमें छोटे कर्ज भी शामिल हैं।

अस्तित्व का संकट और विलय की स्थितियां : कोरोना संकट के बाद छोटी पूंजी वाली माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं के सामने बड़ा संकट है। वे अस्तित्व के लिए संघर्षरत हैं। जिन संस्थाओं के पास 20-25 फीसद ऐसी पूंजी है, जिसे घाटा पाटने में इस्तेमाल किया जा सके, वे ही इस संकट में खड़े रह पाएंगे। नियमों के तहत माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं को 15 फीसद पूंजी उपलब्धता रखनी जरूरी है। ऐसे में उन संस्थाओं के लिए मुश्किल खड़ी हो सकती है, जिनका पूंजी उपलब्धता अनुपात 20 फीसद से कम है। रिजर्व बैंक ने करीब 100 एनबीएफसी को एमएफआइ के लिए लाइसेंस दिए हैं।

पूंजी वाले एमएफआइ के सामने फिलहाल दो ही रास्ते हैं- एक तो यह कि वे जल्द और ज्यादा कर्ज वापसी पक्की करें, दूसरी कंपनी की हिस्सेदारी बेचकर नई पूंजी जुटाएं, क्योंकि मौजूदा हालात में फंसी कंपनियों को आसानी से नया कर्ज नहीं मिलेगा। करीब आधी कंपनियां इस संकट से उबर जाएंगी, बाकी को कड़ी मशक्कत करनी होगी। यह संकट माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र में कॉन्सोलिडेशन यानी छोटी कंपनियों के बड़ी में विलय की जमीन तैयार कर सकता है। ऐसे में हम लोग इस क्षेत्र में कई बड़ी-बड़ी कंपनियों के विलय को देख सकते हैं। इन सबके अतिरिक्त माइक्रो फाइनेंस कंपनियां जहां पूंजी की समस्या से जूझ रही हैं, वहीं उन पर ब्याज दर घटाने का भी भारी दबाव है।

असम और माइक्रो फाइनेंस : इस वर्ष असम में विधानसभा चुनाव होने हैं। चुनावी राजनीति के दौर में वहां हर तरफ माइक्रो फाइनेंस का मुद्दा छाया हुआ है। असम में माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं पर आरोप है कि उन्होंने उच्च ब्याज दर पर महिलाओं को करीब 12 हजार करोड़ रुपये का कर्ज दिया है। असम सरकार के अनुसार अधिकांश महिलाओं को बिना कर्ज वापस करने की क्षमता का आकलन किए बिना ही कर्ज दिया गया है। असम में सत्ता पक्ष और विपक्ष दोनों ही एमएफआइ पर आरोप लगा रहे हैं कि उनके वसूली एजेंट कर्ज वसूली के लिए महिलाओं पर काफी दबाव बना रहे हैं। असम सरकार का कहना है कि इन्हीं स्थितियों के लिए वह एमएफआइ के लिए कानून लेकर आई है।

आंध्र प्रदेश माइक्रो फाइनेंस बिल 2010 से तुलना : असम माइक्रो फाइनेंस कानून-2020 के कई प्रविधान आंध्र प्रदेश माइक्रो फाइनेंस बिल-2010 की याद दिलाते हैं। ज्ञात हो कि आंध्र प्रदेश माइक्रो फाइनेंस बिल-2010 काफी विवादों में रहा था। आंध्र प्रदेश में एमएफआइ पर कठोर प्रतिबंध के कारण कई एमएफआइ को राज्य छोड़ना पड़ा था और कई तो बंद ही हो गए थे। आंध्र प्रदेश एक्ट के बाद माइक्रो फाइनेंस के नियामकीय ढांचे में कई बदलाव सामने आए थे। माइक्रो फाइनेंस के लिए आरबीआइ ने अलग से एनबीएफसी-एमएफआइ का गठन किया था। माइक्रो फाइनेंस ने पिछले दशक में भारतीय ग्रामीण अर्थव्यवस्था को न केवल गति प्रदान की, बल्कि महिलाओं के सशक्तीकरण में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। कोरोना काल में इस क्षेत्र को कई गंभीर चुनौतियों का सामना करना पड़ रहा है। वहीं माइक्रो फाइनेंस सेक्टर पर अभी उच्च ब्याज दर और जबरन अमानवीय वसूली के आरोप भी लग रहे हैं। इससे निपटने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर आरबीआइ को रेगुलेशन का कार्य करना चाहिए।

अभी महामारी के बाद लोगों की क्रय क्षमता भी कम है। ऐसे में उच्च ब्याज दर की समस्या से नियामकों को निपटना ही होगा। इसके लिए इन्हें न्यूनतम दर पर ऋण मिलना चाहिए तथा इनकी गतिविधियों पर भी बारीकी से नजर नियामकों को रखनी चाहिए। असम में जिस तरह आरबीआइ के दिशा-निर्देशों का उल्लंघन कर कानून का निर्माण हुआ, उससे आरबीआइ एवं असम सरकार के बीच अनावश्यक टकराव की स्थिति बनी। असम में पहले कांग्रेस ने महिलाओं के माइक्रो फाइनेंस लोन माफ करने का वादा किया, तो बाद में असम सरकार ने ही माइक्रो फाइनेंस कर्जमाफी की बात कह दी।

वास्तव में असम की स्थिति ने माइक्रो फाइनेंस जैसे संवेदनशील क्षेत्र में हमारे नीति निर्माताओं के खोखलेपन को ही प्रकट किया है, जिससे छोटे कर्ज की संस्कृति पर भी बुरा असर पड़ेगा। माइक्रो फाइनेंस सेक्टर को मजबूत करने के लिए आरबीआइ और वित्त मंत्रलय के समन्वित प्रयास की आवश्यकता है। अस्तित्व के लिए संघर्षरत इस क्षेत्र को बजट से काफी उम्मीदें हैं। इस क्षेत्र को सरकारी मदद की जरूरत है। ग्रामीण अर्थव्यवस्था को गतिशील बनाने के लिए माइक्रो फाइनेंस को मजबूत बनाना होगा। सरकार ने कोरोना काल में रेहड़ी पटरी वालों के लिए विशेष सहयोग राशि जारी की थी। आगामी बजट में इस तरह की कुछ योजनाओं की घोषणा होती है, तो यह माइक्रो फाइनेंस क्षेत्र के लिए संजीवनी की तरह होगी।

असम में विधानसभा चुनाव की तैयारियों के बीच माइक्रो फाइनेंस का मामला गर्म है। दरअसल माइक्रो फाइनेंस को विनियमित करने के लिए असम विधानसभा ने हाल ही में असम माइक्रो फाइनेंस संस्थान विधेयक 2020 पारित किया है। वहां के मुख्य विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा माइक्रो फाइनेंस के तहत महिलाओं को दिए गए कर्जो को माफ करने का वादा करने की घोषणा करने के बाद राज्य के वित्त मंत्री ने भी एलान किया है कि सरकार जल्द ही महिलाओं द्वारा लिए गए माइक्रो फाइनेंस कर्ज को माफ करेगी

माइक्रो फाइनेंस पर नियमन का अधिकार आरबीआइ को है। आरबीआइ ने असम सरकार को इस कानून में संशोधन से संबंधित कुछ सुझाव भी दिए थे, परंतु राज्य सरकार ने उन सुझावों को दरकिनार करते हुए बिल को विधानसभा से पास किया। असम के वित्त मंत्री का कहना है कि आरबीआइ ने कुछ सुझाव दिए थे, जिसे मानने के लिए विधानसभा बाध्य नहीं है। उनके अनुसार इस संपूर्ण मामले में आरबीआइ कहां से आ जाती है। असम के वित्त मंत्री का कहना है, यदि आरबीआइ के पत्र को मैं विधानसभा में रख देता हूं, तो आरबीआइ को भी विशेषाधिकार प्रस्ताव का सामना करना होगा। इस संपूर्ण घटनाक्रम से आरबीआइ तथा असम सरकार में टकराव स्पष्ट दृष्टिगोचर हो रहा है। इसी बीच पिछले सप्ताह असम के कुछ बड़े एमएफआइ ने राज्य सरकार के इस कानून को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है।

देखा जाए तो असम में माइक्रो फाइनेंस की स्थिति बेहतर रही है। यहां औसत माइक्रो फाइनेंस कर्ज का आकार बंगाल के बाद सबसे अधिक यानी 47,263 रुपये है। असम सरकार के नए कानून तथा कांग्रेस व भाजपा के कर्ज माफी अभियान से वहां माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं में मायूसी है। इस नए कानून के अनुसार अब किसानों को एमएफआइ केवल 50 हजार रुपये तक का ही कर्ज दे सकती है। असम के माइक्रो फाइनेंस उद्योग से संबद्ध लोगों का कहना है कि कांग्रेस और भाजपा के कर्जमाफी अभियान से आगे कर्ज की मांग में कमी आएगी, जिससे उद्योग बुरी तरह प्रभावित होगा। साथ ही इसका दूसरा पक्ष भी है। अगर वर्तमान सरकार या आने वाली सरकार माइक्रो फाइनेंस कर्ज माफ करती है, तो एमएफआइ को डूबे कर्ज से उबरने का भी मौका मिलेगा।

जब कर्ज माफी होगी, तो वह राशि सरकार द्वारा दी जाएगी। लॉकडाउन के बाद काफी संख्या में लोग कर्ज चुकाने में सक्षम नहीं रहे। ऐसे कर्ज के डूबने से भी माइक्रो फाइनेंस संस्थाओं को भारी नुकसान उठाना पड़ता, जो कर्ज माफी के बाद नहीं उठानी पड़ेगी। ऐसे में सरकार या राजनीतिक दलों के माइक्रो फाइनेंस कर्ज माफी के निर्णय का आंशिक बचाव किया जा सकता है, परंतु इससे व्यवस्था में विसंगतियां पैदा हो जाती हैं। भविष्य में सरकार को अगर इस तरह का सहयोग करना हो तो वह ब्याज माफी तक ही सीमित रहनी चाहिए।

(लेखक आर्थिक मामलों के विशेषज्ञ हैं)

 


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