बंगाल विधानसभा में माइकल सेन कलवर्ट एंग्लो इंडियन संप्रदाय के आखिरी सदस्य होंगे
एंग्लो इंडियन समुदाय के लोगों को अब आगे मनोनयन के जरिए विधानसभा में बैठने का मौका नहीं मिलेगा।
कोलकाता। बंगाल विधानसभा में माइकल सेन कलवर्ट एंग्लो इंडियन संप्रदाय के आखिरी सदस्य होंगे। उनके बाद इस संप्रदाय से किसी और को मनोनयन के जरिये विधानसभा में बैठने का अवसर नहीं मिलेगा। लोकसभा और राज्यसभा से यह विधेयक पारित होने के बाद देश के कई राज्यों ने भी इसकी औपचारिकता पूरी कर दी है। बंगाल विधानसभा में भी यह प्रक्रिया पूरी की जानी है। हालांकि गुरुवार के विशेष सत्र में इसे अमलीजामा पहनाया नहीं जा सका, लेकिन यह प्रक्रिया पूरी होने के बाद विधानसभा में सदस्यों की संख्या 293 रह जाएगी।
दरअसल लोकसभा से लेकर देश भर की विधानसभाओं से एंग्लो इंडियन सदस्यों के मनोनयन की व्यवस्था केंद्र सरकार ने समाप्त कर दी। संसद के दोनों सदनों में दस और 12 दिसंबर को इस सिलसिले में एक विधेयक पारित किया गया। तभी केंद्र ने राज्यों की विधानसभा से अपेक्षा की थी कि दस जनवरी तक राज्य से भी इसे समाप्त करने के लिए विधेयक पारित कर भेजें। यह प्रक्रिया पूरी होते ही बंगाल में भी 70 वर्ष पुरानी व्यवस्था समाप्त हो जाएगी।
एंग्लो इंडियन की परिभाषा भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (दो) में दी गई है। इसके अनुसार एंग्लो भारतीय से आशय ऐसे व्यक्ति से है, जिसका पिता या पितृ परंपरा में कोई यूरोपीय है या था, पर वह भारत के राज्य क्षेत्र में निवास करता है। इस परिभाषा के अनुसार यह साफ है कि हर ईसाई एंग्लो इंडियन नहीं होता है। इसके लिए पितृ परंपरा में किसी को यूरोपीय मूल का होना चाहिए। नियमत: लोकसभा की 543 सीटों में से 84 सीटें अनुसूचित जाति और 47 अनुसूचित जनजातियों के लिए आरक्षित हैं। इसके अलावा सरकार एंग्लो-इंडियन समुदाय के दो सदस्यों को नामित करती रही है। जिसके बाद 545 सदस्यों का हाउस पूरा होता है।
मोदी सरकार के पहले कार्यकाल में जॉर्ज बेकर और रिचर्ड हे को एंग्लो-इंडियन सदस्यों के तौर पर नामित किया गया था। जो जून 2019 तक सांसद रहे, लेकिन वर्तमान में यानी कि दूसरे कार्यकाल में कोई नामांकन नहीं किया गया है। वहीं विधानसभा में एंग्लो इंडियन के मनोनयन का अधिकार राज्यपाल के पास निहित है। अभी तक यह तथ्य भी आया कि पूरे देश में इस संप्रदाय के सिर्फ 296 लोग ही बचे हैं, लेकिन पक्ष में तर्क दिया जा रहा है कि इनकी बड़ी संख्या है। एंग्लो इंडियन समाज के लोग अब यह मांग उठा रहे हैं कि विधानसभा और लोकसभा में इनका मनोनयन जारी रहना चाहिए। इनके प्रवक्ता का कहना है कि ‘पूरे देश में हमारा समुदाय स्कूल और अस्पताल स्थापित करता है और देश की सेवा में लगा है। सरकार की समस्त योजनाओं का लाभ जनता तक पहुंचाने के लिए तत्पर रहता है। ऐसे में हमारा प्रतिनिधित्व होना ही चाहिए।’
यद्यपि देश के कई विधि विशेषज्ञों की यह भी दलील है कि जब बाकी सभी सदस्य जनता से चुन कर आते हैं तो केवल एक संप्रदाय के लिए मनोनयन की व्यवस्था क्यों होनी चाहिए। अनुसूचित जातियों के लिए भी आरक्षण का प्रावधान है, लेकिन उनका भी चुनाव होता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि 70 वर्षो बाद सदस्यता के लिए मनोनयन का पैमाना खत्म कर पूरी व्यवस्था मतदाताओं के हवाले की जानी है।