क्या आप भी स्नैक खाते हुए टीवी देखते हैं?, जानिए सेहत के लिए कितना खतरनाक है ये करना
शोधकर्ता बीटिज चान ने कहा ‘स्क्रीन पर समय गुजारने को सीमित करना महत्वपूर्ण हो सकता है अगर ऐसा संभव नहीं है तो स्नैक से परहेज कर मेटाबोलिक सिंड्रोम से बचा जा सकता है।’
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। क्या आपके बच्चे घंटों बैठकर टीवी देखते हैं, कंप्यूटर या वीडियो गेम्स का इस्तेमाल करते हैं, तो सचेत हो जाएं। टीवी देखने के दौरान सेहत के लिहाज से पौष्टिक नहीं माने जाने वाले स्नैक्स के सेवन की आदत से किशोर उम्र के बच्चों में हृदय रोग और डायबिटीज का खतरा बढ़ सकता है। एक नए अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इसके प्रति आगाह किया है।
शोधकर्ताओं के अनुसार, अध्ययन में ऐसे किशोरों में मेटाबोलिक सिंड्रोम का खतरा पाया गया। यह ब्लड प्रेशर बढ़ने, हाई ब्लड शुगर, कमर के आसपास चर्बी जमा होने और असामान्य कोलेस्ट्रॉल के खतरे का कारक होता है। यह निष्कर्ष 12 से 17 साल की उम्र के 33,900 किशोरों पर किए गए अध्ययन के आधार पर निकाला गया है। ब्राजील की यूनिवर्सिटी फेडरल डो रियो ग्रांड डो सुल के शोधकर्ता बीटिज चान ने कहा, ‘स्क्रीन पर समय गुजारने को सीमित करना महत्वपूर्ण हो सकता है, अगर ऐसा संभव नहीं है तो स्नैक से परहेज कर मेटाबोलिक सिंड्रोम से बचा जा सकता है।’
क्यों होता है मेटाबॉलिक सिंड्रोम
विशेषज्ञ अभी तक यह नहीं जान पाए हैं कि आखिर मेटाबॉलिक सिंड्रोम क्यों विकसित होता है। यह जोखिम कारकों का मेल है और कोई अकेली बीमारी नहीं। तो, संभवत: इसके कई अलग कारण हो सकते हैं-
मेटाबॉलिक सिंड्रोम को समझें
मेटाबॉलिक सिंड्रोम अपने आप में कोई बीमारी नहीं है। दरअसल, यह जोखिम कारकों का एक समूह है- उच्च रक्तचाप, उच्च रक्त शर्करा, अस्वास्थ्यकर कोलेस्ट्रॉल की मात्रा और मोटापा, आदि मिलकर मेटाबॉलिक सिंड्रोम बनते हैं।
बैड कोलेस्ट्रॉल की अधिक मात्रा
यदि आपके रक्त में बॅड कोलेस्ट्रॉल की मात्रा 150 मिग्रा/डेलि है, अथवा आप कोलेस्ट्रॉल को कम करने की दवा ले रहे हैं, तो आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा काफी अधिक हो जाता है।
गुड कोलेस्ट्रॉल कम होना
पुरुषों में यदि रक्त में गुड कोलेस्ट्रॉल का स्तर 40 मिग्रा/डेलि है और महिलाओं में यह स्तर 50 मिग्रा/डेलि है, तो उन्हें मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा काफी बढ़ जाता है। इसके अलावा अगर आप कोलेस्ट्रॉल की दवा ले रहे हैं, तो भी आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा होता है।
उच्च रक्तचाप
हाई बीपी मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का एक बड़ा कारण माना जाता है। सामान्य व्यक्ति का रक्तचाप 120/80 माना जाता है। यदि यह इस सामान्य स्तर से अधिक हो, तो आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम हो सकता है। इसके अलावा अगर आप बीपी को काबू करने की दवा ले रहे हैं, तो भी आपको विशेष सावधानी बरतने की जरूरत होती है।
उच्च रक्त शर्करा
यदि आपकी फास्टिंग (खाने के करीब 9 घंटे बाद) रक्त में शर्करा की मात्रा 100 से अधिक है, तो यह वक्त आपके लिए सचेत होने वाला है। यह इस बात की ओर इशारा करता है कि आपको मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा है। यदि आपको इनमें से कम से कम तीन लक्षण दिखाई दें, तो समझ जाइए कि आप मेटाबॉलिक सिंड्रोम की शिकार हो सकते हैं।
मेटाबॉलिक सिंड्रोम के जोखिम कारक
अमेरिकन हार्ट एसोसिएशन और नेशनल हार्ट, लंग और ब्लड इंस्टीट्यूट के मुताबिक, मेटाबॉलिक सिंड्रोम को बढ़ाने के पांच जोखिम कारक हो सकते हैं।
कमर का अधिक साइज
मोटापा इसके लिए सबसे बड़ा कारक हो सकता है। मेटाबॉलिक सिंड्रोम में पुरुषों की कमर का माप यदि 40 इंच से अधिक हो और महिलाओं की कमर का माप यदि 35 इंच से ज्यादा हो तो उन्हें मेटाबॉलिक सिंड्रोम होने का खतरा अधिक होता है।
इंसुलिन प्रतिरोधकता
इंसुलिन वह हॉर्मोन होता है, तो शरीर को ग्लूकोज का उपयोग करने में सहायता प्रदान करता है। यह आपको ऊर्जा प्रदान करने में मदद करता है। ऐसे लोग जिनमें इंसुलिन प्रतिरोधकता पैदा हो जाती है, तो इंसुलिन सही प्रकार काम नहीं कर पाता है, तो हमारा शरीर ग्लूकोज के बढ़ते स्तर का सामना करने के लिए इसका इंसुलिन का अधिक से अधिक निर्माण करने लगता है। अंत में यही स्थिति डायबिटीज का कारण बनती है। पेट पर जमा अतिरिक्त चर्बी और इनसुलिन प्रतिरोधकता के बीच सीधा संबंध होता है।
मोटापा
मोटापा खासकर पेट के आसपास जमा अतिरिक्त चर्बी भी मेटाबॉलिक सिंड्रोम का एक संभावित कारण हो सकती है। जानकार कहते हैं कि मोटापा मेटाबॉलिक सिंड्रोम के फैलने के पीछे सबसे अहम कारण है। शरीर के किसी अन्य हिस्से की अपेक्षा पेट और उसके असापास जमा होने वाली चर्बी आपके लिए अधिक घातक सिद्ध होती है। अस्वस्थ्यकर जीवनशैली, उच्च वसायुक्त आहार और शारीरिक गतिविधियों में कमी इसका एक कारण हो सकता है।
हॉर्मोन असंतुलन
इसमें हॉर्मोन्स की भी एक भूमिका हो सकती है। उदाहरण के लिए, पॉलिसाइस्टिक ओवरी सिंड्रोम (पीसीओएस)- ऐसी परिस्थिति है, जो प्रजनन क्षमता को प्रभावित करती है- यह भी हॉर्मोन असंतुलन और मेटाबॉलिक सिंड्रोम को प्रभावित करती है।
अगर आपने अभी मेटाबॉलिक सिंड्रोम का निदान करवाया है, तो आप चिंतित हो सकते हैं। लेकिन, इसे एक खतरे की घंटी समझना चाहिए। यह अपनी सेहत के प्रति सचेत होने का समय है। रोजमर्रा की अपनी आदतों में जरूरी बदलाव लाइए इससे आप भविष्य में होने वाले गंभीर रोगों से बच सकते हैं।
(नोट- इस पर अमल करने से पूर्व डॉक्टर से परामर्श जरूर कर लें)