सामाजिक सुरक्षा संहिता पर बैठक बेनतीजा रही, ट्रेड यूनियन व सरकार में खींचतान जारी
सामाजिक सुरक्षा संहिता पुराने कानूनों को कट-पेस्ट कर बनाई गई है। कर्मचारी भविष्य निधि और कर्मचारी पेंशन योजना के साथ छेड़छाड़ पर गहरी आपत्ति जताई गई है।
जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। सामाजिक सुरक्षा संहिता विधेयक के मसौदे को लेकर ट्रेड यूनियनों के साथ सरकार की पटरी नहीं बैठ पा रही है। यूनियनों ने सरकार की ओर से तैयार संहिता के चौथे मसौदे को भी अस्वीकार कर दिया है। इससे निकट भविष्य में सामाजिक संहिता विधेयक पेश होने की संभावनाएं धूमिल हो गई हैं।
संहिता के चौथे मसौदे पर चर्चा के लिए श्रम मंत्रालय के साथ बैठक विफल
सामाजिक सुरक्षा से संबंधित वर्तमान कानूनों को समेट कर एक सामाजिक सुरक्षा संहिता कानून का रूप देने के लिए श्रम मंत्रालय ने मंगलवार को ट्रेड यूनियनों और नियोक्ताओं समेत स्टेकहोल्डर्स की बैठक बुलाई थी। इसमें प्रधानमंत्री कार्यालय की सलाह पर तैयार संहिता के चौथे मसौदे को चर्चा के लिए पेश किया गया। लेकिन यूनियनो ने इसे पूरी तरह अस्वीकार कर दिया।
श्रम मंत्रालय द्वारा तैयार तीन मसौदों को ट्रेड यूनियने पहले ही अस्वीकार कर चुकी
श्रम मंत्रालय द्वारा तैयार तीन मसौदों को ट्रेड यूनियने पहले ही अस्वीकार कर चुकी है। जबकि तीसरे मसौदे पर पीएमओ ने भी यह कहते हुए आपत्ति जता दी थी कि इसमें सामाजिक सुरक्षा की मौजूदा तमाम स्कीमों को मिलाकर एक समग्र और एकीकृत स्कीम तैयार करने के सरकार के उद्देश्य को पूरा नहीं किया गया गया है। लिहाजा मंगलवार की बैठक में चौथे मसौदे को चर्चा के लिए पेश किया गया, लेकिन इसमें भी असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले 93 फीसद कामगारों में सबसे कमजोर कामगारों की सामाजिक सुरक्षा के लिए पर्याप्त प्रावधान नहीं होने से यूनियनों ने इसे खारिज कर दिया। आरएसएस से जुड़ी यूनियन भारतीय मजदूर संघ यानी बीएमएस ने कहा कि इससे बेहतर तो पहले के मसौदे थे।
बैठक विफल रही, कानून पारित नहीं हो सकता
बीएमएस के महासचिव विरजेश उपाध्याय ने कहा कि बैठक विफल रही। इस रूप में ये कानून पारित नहीं हो सकता। इसमें सरकार की ओर से ईपीएस में 1.16 फीसद योगदान के प्रावधान को भी हटा दिया गया है।
ईपीएफ और ईपीएस के साथ छेड़छाड़
बीएमएस ने कर्मचारी भविष्य निधि (ईपीएफ) और कर्मचारी पेंशन योजना (ईपीएस) के साथ छेड़छाड़ पर गहरी आपत्ति जताई है। उसका कहना है कि पूरी सामाजिक सुरक्षा संहिता पुराने कानूनों को कट-पेस्ट कर बनाई गई है।
असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों की उपेक्षा
इस तरह कानूनों को मिलाने का कोई मतलब नहीं है। इसमें असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले सबसे कमजोर श्रमिक की पूरी तरह उपेक्षा की गई है।
40 पुराने श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समेटा गया है
सामाजिक सुरक्षा संहिता 40 पुराने श्रम कानूनों को चार संहिताओं में समेटने की कड़ी में तीसरी संहिता है। जिसके तहत सामाजिक सुरक्षा से जुड़े आठ वर्तमान कानूनों को समाहित कर एक कानून बनाने का प्रस्ताव है। इससे पहले न्यूनतम वेतन संबंधी पुराने कानूनों से जुड़ी वेतन संहिता के विधेयक को सरकार अगस्त में संसद से पारित करा चुकी है। अब इसके नियम बनाए जा रहे हैं। जबकि व्यावसायिक सुरक्षा, स्वास्थ्य एवं कार्यदशाएं संहिता विधेयक 2019 लोकसभा में पेश होने के बाद विचारार्थ स्थायी समिति को भेजा जा चुका है। चौथी और अंतिम संहिता में फैक्ट्री एक्ट और औद्योगिक विवाद कानूनो कर्मचारी नियोक्ता संबंधों से जुड़े कानूनों को समाहित करने का प्रस्ताव है।