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    नदी में उगने वाली इस घास से बन रही चटाई और दवाई, हजारों ग्रामीणों को मिल रहा रोजगार

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Wed, 06 Mar 2019 12:18 PM (IST)

    छत्तीसगढ़ के एक हिस्से से निकलकर 290 किलोमीटर का सफर करते हुए महानदी में मिलने वाली शिवनाथ नदी भी हजारों ग्रामीणों को रोजगार दे रही है।

    नदी में उगने वाली इस घास से बन रही चटाई और दवाई, हजारों ग्रामीणों को मिल रहा रोजगार

    रायपुर/जगदलपुर (हिमांशु शर्मा/हेमंत कश्यप)। नदियों को जीवन का आधार माना जाता है। नदियों के तटों पर ही विश्व की महानतम सभ्यताओं का विकास हुआ। नदी के मैदानों की उपजाऊ जमीन जहां खेती के लिए उपयुक्त मानी जाती है, वहीं नदी के अंदर मिलने वाले कई संसाधन भी लोगों के रोजगार का जरिया बनते हैं। छत्तीसगढ़ के एक हिस्से से निकलकर 290 किलोमीटर का सफर करते हुए महानदी में मिलने वाली शिवनाथ नदी भी हजारों ग्रामीणों को रोजगार दे रही है। यहां पाई जाने वाली एक विशेष प्रकार की घास ग्रामीणों के लिए आय का अच्छा जरिया बनी है। ग्रामीण इसे गोंदला के नाम से जानते हैं और यह इन दिनों नदी में उगी नजर आ रही है। इससे चटाई बनाने के साथ ही इसके कंद से आयुर्वेदिक औषधि, अगरबत्ती और हवन सामग्री बनाई जाती है। ग्रामीण दिन भर जुटकर नदी से गोंदला निकाल रहे हैं और इसे 13 सौ स्र्पये क्वींटल की दर से व्यापारियों को बेच रहे हैं। व्यापारी खुद ही यह घास लेने यहां आते हैं।

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    क्या है गोंदला?
    गोंदला का वैज्ञानिक नाम साइपरस डिस्टैंस है जिसे स्लेंडर साइपरस के रूप में भी जाना जाता है। यह उप-सहारा अफ्रीका, एशिया, मेडागास्कर, न्यू गिनी, ऑस्ट्रेलिया, लैटिन में उष्णकटिबंधीय और उपोष्णकटिबंधीय आर्द्रभूमि के लिए मूल निवासी की एक प्रजाति है। अमेरिका, वेस्ट इंडीज और विभिन्न् समुद्री द्वीपों पर भी यह पाया जाता है। यह एक बारहमासी पौधा है, जो 140 सेमी (55 इंच) तक की ऊंचाई तक पहुंच सकता है। इसे प्राचीन मिस्र, माइसेनियन ग्रीस और अन्य जगहों पर एक सुगंधित घास के रूप में और पानी को शुद्ध करने के लिए उपयोग किया जाता था। इसके इत्र का उपयोग प्राचीन यूनानी चिकित्सा में किया जाता है।

    चरक संहिता में भी मिलता है इस घास का उल्लेख
    इस घास का उल्लेख प्राचीन भारतीय आयुर्वेदिक चिकित्सा की पुस्तक चरक संहिता (लगभग 100 ईस्वी) में भी किया गया है। इससे आधुनिक आयुर्वेदिक दवा बनाई जाती है जिसे मावे या मुन मूना चूर्ण के रूप में जाना जाता है। यह बुखार, पाचन तंत्र के विकार, कष्टार्तव और अन्य विकृतियों के लिए लाभकारी है। कंद के जीवाणुरोधी गुणों के चलते इसे 2000 साल पहले सूडान में रहने वाले लोगों ने दांतों के क्षय को रोकने के लिए उपयोग किया था और वे आज भी इसका उपयोग करते हैं। इसमें कई रासायनिक पदार्थों की पहचान की गई है। इसके कंद का उपयोग अगरब्त्ती और हवन सामग्री बनाने में भी हो रहा है। इसके साथ ही घास से आकर्षक चटाइयां बनाई जाती हैं।

    नदी से हो रही आमदनी
    ग्रामीणों और व्यापारियों को मुताबिक प्रतिदिन करीब 4 टन गोंदला घास नदी से निकाली जाती है। इसे ग्रामीण 13 स्र्पये प्रति किलो की दर से व्यापारियों को बेचते हैं। शिवनाथ नदी महानदी की प्रमुख सहायक नदी है। यह राजनांदगांव जिले की अंबागढ़ तहसील की 625 मीटर ऊंची पानाबरस पहाड़ी क्षेत्र से निकलकर शिवरीनारायण (जिला जांजगीर चांपा) के पास महानदी में मिल जाती है। इसकी कुल लम्बाई 290 किमी है। यह नदी राजनांदगांव जिले से लेकर दुर्ग, बालोद, महासमुंद, जांजगीर-चांपा जैसे जिलों से होकर गुजरती है। जहां-जहां से नदी गुजरती है, उसके किनारे के गांवों के ग्रामीण गोंदला संग्रह करते हैं। शिवनाथ की सहायक नदियों इसकी प्रमुख सहायक नदियां लीलागर, मनियारी, आगर, हांप, खारून, अरपा, आमनेर, सकरी, खरखरा, तांदुला और जमुनिया में भी गोंदला घास पाई जाती है। इस तरह नदी अपनी इस पैदावार के चलते लोगों के लिए आय का बड़ा जरिया बन रही है।