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155 वर्ष बाद आजाद हुई आत्माएं

अट्ठारह सौ संतावन के संग्राम में अजनाला के कालियां वाला खूह में शहीद हुए 282 शहीदों को 155 वर्ष के बाद 'आत्मिक आजादी' मिली है। मंगलवार को इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ व उसके साथियों ने इस खूह [एक बड़ा कुआं] के एक कोने की खुदाई की। थोड़ी खुदाई के दौरान ही शहीदों की अस्थियां मिल गई। कोछड़ के अनुसार खूह काफी गहरा है। यह खूह मुगलई ईटों से बना है। इसकी दीवारें दो से तीन फुट चौड़ी हैं। उन्होंने कहा कि खुदाई के दौरान खूह मिलने पर गुरुद्वारा साहिब में शुकराने की अरदास की गई।

By Edited By: Published: Wed, 05 Dec 2012 08:44 AM (IST)Updated: Wed, 05 Dec 2012 05:38 PM (IST)

अमृतसर, जागरण संवाददाता। अट्ठारह सौ संतावन के संग्राम में अजनाला के कालियां वाला खूह में शहीद हुए 282 शहीदों को 155 वर्ष के बाद 'आत्मिक आजादी' मिली है। मंगलवार को इतिहासकार सुरिंदर कोछड़ व उसके साथियों ने इस खूह [एक बड़ा कुआं] के एक कोने की खुदाई की। थोड़ी खुदाई के दौरान ही शहीदों की अस्थियां मिल गई। कोछड़ के अनुसार खूह काफी गहरा है। यह खूह मुगलई ईटों से बना है। इसकी दीवारें दो से तीन फुट चौड़ी हैं। उन्होंने कहा कि खुदाई के दौरान खूह मिलने पर गुरुद्वारा साहिब में शुकराने की अरदास की गई।

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गुरुद्वारा शहीदगंज कालियां वाला के अध्यक्ष अमरजीत सिंह सरकारिया, मास्टर हरपाल सिंह, हरभजन सिंह, काबल सिंह, दलविंदर सिंह, प्रगट सिंह, गुलजार सिंह, जसबीर सिंह, जसबीर सिंह चोगावां, मनजीत सिंह छीना, पूरन सिंह ने कहा कि खूह से शहीदों की अस्थियों को निकालकर गंगा में जल प्रवाहित किया जाएगा। खूह के नजदीक शहीदी मीनार का निर्माण किया जाएगा। कोछड़ ने बताया कि मई 1857 में लाहौर की मियां मीर छावनी में तैनात 26 नंबर नेटिव इन्फेंटरी हिंदुस्तानी पलटन के बिना हथियार सैकड़ों फौजी जिनका संबंध असम, बंगाल राज्यों के साथ था, 30 जुलाई, 1857 को ब्रिटिश हुकूमत के विरुद्ध बगावत कर वहां से भाग निकले थे। 31 जुलाई को जब ये सैनिक तहसील अजनाला के पास दरिया रावी के किनारे पहुंचे तब गांव वालों ने भूखे-प्यासे फौजियों को दाल-रोटी का लालच देकर उन्हें वहां रोक लिया। इसकी सूचना उन्होंने तहसीलदार को भेजी। तहसीलदार ने अपने सिपाहियों समेत मौके पर पहुंचकर 150 के लगभग फौजियों को गोलियों से शहीद कर दिया। कुछ फौजियों ने रावी नदी में छलांग लगा दी। शेष बचे 282 सैनिकों को अमृतसर का डिप्टी कमिश्नर फ्रेडरिक कूपर गांववासियों की मदद से रस्सों से बांधकर अजनाला ले आया। इनमें से 237 को थाने में बंद कर दिया। शेष को तहसील के बुर्ज में ठूंस दिया। सुबह थाने में सभी कैद फौजियों को गोलियों से भून दिया गया। उधर, जब बुर्ज का दरवाजा खोला गया तो बहुत से सैनिकों का दम घुटने से मौत हो चुकी थी। जो बेहोशी की हालत में थे, उन्हें भी शहीद किए गए सैनिकों के साथ ही कुएं में फेंक कर उसे मिट्टी से भर दिया गया था।

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