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कारगिल विजय दिवस: शहादत ने दी हौसलों को हवा

इसी जज्बे से सरहदें सलामत हैं। पहले पिता ने प्राणों की आहूति दी और अब बेटा देश का प्रहरी बन सरहद पर सीना ताने खड़ा है। सही से दुनिया भी नहीं देखी थी, जब पिता का साया सर से उठ गया, मगर कदम लड़खड़ाए नहीं। निगाह लक्ष्य पर थी और मन में ख्वाहिश पिता के नक्शे कदम पर चलने की। शहादत ने हौसलों को हवा दी और

By Edited By: Published: Fri, 26 Jul 2013 11:56 AM (IST)Updated: Fri, 26 Jul 2013 11:58 AM (IST)

देहरादून, [सुकांत ममगाई]। इसी जज्बे से सरहदें सलामत हैं। पहले पिता ने प्राणों की आहूति दी और अब बेटा देश का प्रहरी बन सरहद पर सीना ताने खड़ा है। सही से दुनिया भी नहीं देखी थी, जब पिता का साया सर से उठ गया, मगर कदम लड़खड़ाए नहीं। निगाह लक्ष्य पर थी और मन में ख्वाहिश पिता के नक्शे कदम पर चलने की। शहादत ने हौसलों को हवा दी और चल पड़े एक नई इबारत लिखने।

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यह कारगिल शहीदों के परिजनों का देश सेवा का जज्बा ही है कि वे अपने बच्चों को भी सेना में भेज रहे हैं। ऐसा ही एक परिवार है बालावाला निवासी शहीद हीरा सिंह का। लांस नायक हीरा सिंह की पत्नी गंगी देवी ने बताया कि उनके पति नागा रेजीमेंट में तैनात थे। वे 30 मई 1999 को कारगिल में शहीद हो गए।

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शहादत की खबर मिली तो लगा कि जैसे सब खत्म हो गया है, लेकिन कदम रुके नहीं। चमोली जनपद के देवाल गांव का यह परिवार वर्ष 2000 में बालावाला में आकर बस गया।

शहीद हीरा सिंह का बड़ा बेटा वीरेंद्र नया गांव पेलियो में गैस एजेंसी चला रहा है। मझला बेटा सुरेंद्र प्राइवेट नौकरी करता है। जबकि छोटे बेटे धीरेन्द्र ने पिता की ही तरह फौज में अपना कॅरियर चुना। धीरेंद्र ने 12वीं की परीक्षा का बस एक ही पेपर दिया था। तभी सेना की भर्ती रैली आयोजित हुई। एक तरफ परीक्षा थी और दूसरी तरफ फौजी जच्बा। धीरेंद्र ने पिता की ही तरह देश सेवा को अपना फर्ज समझते हुए फौज को चुना। यह नौजवान कुमाऊं रेजीमेंट का हिस्सा बन गया। फौजी वर्दी पहने ढाई साल बीत चुके हैं। उसी सरहद पर तैनात है, जहां कभी पिता ने अपना सर्वोच्च बलिदान दिया था। पिछले डेढ़ साल से ड्यूटी कारगिल क्षेत्र में है। जिस मोर्चे पर पिता ने जान दी, वहीं अब बेटा जी जान से सरहद की हिफाजत कर रहा है। मां गंगी देवी कहती हैं कि उनकी ख्वाहिश भी यही थी। वह चाहती थी कि उनका एक बेटा फौज में भर्ती होकर देश की सेवा करे।

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