Move to Jagran APP

श्रीनगर का भूगोल, संस्कृति और पर्यटन मकबूल जान ने चादर पर उकेरा, 5 अगस्‍त को यह तोहफा है खास

मकबूल जान ने कपड़े की चादर पर श्रीनगर शहर का मुकम्मल नक्शा उतारकर सबको चकित कर दिया है। नक्शा ऐसा कि चादर पर एक नजर डालते ही इस ऐतिहासिक शहर का भूगोल यहां की सभ्यता कला व संस्कृति पर्यटनस्थल आंखों के सामने घूम जाता है।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 04 Aug 2021 06:00 PM (IST)Updated: Wed, 04 Aug 2021 09:14 PM (IST)
श्रीनगर का भूगोल, संस्कृति और पर्यटन मकबूल जान ने चादर पर उकेरा, 5 अगस्‍त को यह तोहफा है खास
मकबूल जान और श्रीनगर शहर में कपड़े के चादर पर नक्‍काशी

रजिया नूर, श्रीनगर। इतिहास अमूमन कागजों पर लिखा जाता है, लेकिन क्या आपने किसी को कपड़े की चादर पर रंगों से वर्तमान और इतिहास उकेरते देखा है। कश्मीर के एक दस्तकार ने यह कर दिखाया है। उसने कपड़े की चादर पर श्रीनगर शहर का मुकम्मल नक्शा उतारकर सबको चकित कर दिया है। नक्शा ऐसा कि चादर पर एक नजर डालते ही इस ऐतिहासिक शहर का भूगोल, यहां की सभ्यता, कला व संस्कृति, पर्यटनस्थल, यहां तक कि प्रसिद्ध डल झील में तैरते शिकारों का हसीन मंजर आपकी आंखों के सामने घूम जाता है। जिन लोगों ने धरती का स्वर्ग कहलाने वाली घाटी का अभी तक रुख नहीं किया है, वह इस सात मीटर लंबी और पांच मीटर चौड़ी चादर पर बनी तस्वीरों के जरिये कश्मीर का दिल कहलाने वाले श्रीनगर की सैर कर सकते हैं। श्रीनगर की मुकम्मल तस्वीर उकेरने के लिए यह चादर खासतौर पर बनवाई गई। पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 समाप्त होने के दो साल पूरे हो रहे हैं। इस मौके पर मकबूल का यह तोहफा और भी खास हो जाता है।

loksabha election banner

लगा एक साल का वक्त

श्रीनगर शहर के लालबाजार इलाके के रहने वाले 49 वर्षीय दस्तकार मकबूल जान को कपड़े की चादर पर श्रीनगर शहर की तस्वीर बनाने में एक साल का वक्त लगा। उनका दावा है कि ऐसा करने वाले वह वादी के पहले दस्तकार हैं। अक्सर पेपरमाशी कागज या गत्ते पर की जाती है। उन्होंने इसे कपड़े की चादर पर किया है। दैनिक जागरण के साथ बातचीत में मकबूल जान ने कहा कि उन्हें यह विचार एक म्यूजियम में आया।

जान ने कहा, म्यूजियम में किसी ने एक कपड़े पर श्रीनगर शहर की ऐतिहासिक दरगाह हजरतबल, खानकाह जामिया मस्जिद को सुई-धागे से उकेरा था। बहुत पुराना होने के चलते कपड़ा जर्जर हो गया था और इस पर दरगाहों की तस्वीरें भी ठीक से दिख नहीं रही थीं। उसी वक्त मेरे मन में ख्याल आया कि मैं भी कपड़े पर अपने श्रीनगर शहर का नक्शा तैयार करूंगा। चूंकि पेपरमाशी की कला से जुड़ा हूं, लिहाजा मैं कपड़े पर अपने ब्रश से पूरे शहर का नक्शा व खाका उतारुंगा।

मैंने पिछले साल कोरोना लाकडाउन के दौरान जुलाई से काम करना शुरू कर दिया। शहर के नक्शे को कपड़े पर उतारने के लिए मैंने कुछ किताबों की मदद ली और आज मैं 15 लाख आबादी वाले अपने पूरे शहर को इस कपड़े पर समेटने में कामयाब हो गया।

संसद में कलाकृति पहुंचने का सपना

जान ने कहा कि मैं प्रतिदिन दो से तीन घंटे अपने इस ड्रीम प्रोजेक्ट पर काम करता था और मुझे खुशी है कि आज मैं इसे पूरा कर पाया हूं। अभी तक जितने भी लोगों ने मेरे इस प्रोजेक्ट को देखा, उन्हें यह बहुत अच्छा लगा। मेरा सपना है कि मेरी यह कलाकृति संसद तक पहुंच जाए।

कई बार किया जा चुका सम्मानित

मकबूल जान को पेपरमाशी कला के दिग्गज दस्तकारों में गिना जाता है। इस कला में बेहतरीन प्रदर्शन के लिए उन्हें कई बार सम्मानित भी किया जा चुका है। जान को वर्ष 2007 में पोटरी व ग्लास पेंटिंग प्रतियोगिता में अपने बेहतरीन प्रदर्शन के लिए साउथ एशिया अवार्ड से भी सम्मानित किया गया था।

अब दुनिया का नक्शा बनाने की तैयारी

जान का अगला सपना दुनिया का नक्शा बनाना है। उन्होंने कहा कि इस प्रोजेक्ट के बाद अब मैंने अपनी वादी के जंगलों, यहां के पेड़-पौधों, परिंदों व जंगली जानवरों को भी इसी तरह कपड़े की चादर पर ब्रश से तराशना शुरू कर दिया है। इस काम को मुकम्मल करने के बाद मेरा अगला मिशन विश्व का नक्शा होगा। यह भी मेरा ड्रीम प्रोजेक्ट है। हालांकि दुनिया का नक्शा कपड़े पर उतारना आसान बात नहीं, लेकिन मैंने इरादा कर लिया है और मैं यह एक दिन करके दिखाऊंगा।

कला को बढ़ावा देना पहला मकसद

मकबूल जान ने कहा कि मेरा अहम मकसद पेपरमाशी की कला को एक नई दिशा देना है। पेपरमाशी हमारी वादी की एक मशहूर पारंपरिक व प्राचीन हस्तकला है और बहुत से दस्तकार इस कला के माध्यम से अपनी रोजी-रोटी कमाते हैं। मैं चाहता हूं कि हमारी युवा पीढ़ी पेपरमेशी की इस नई कला से जुड़े और इसमें अपना भविष्य बनाए।

कश्मीर की पुरानी कला है पेपरमाशी

पेपरमाशी कश्मीर की बहुत पुरानी कला है। इसमें पहले पेपर या गत्ते को पानी में डालकर रख दिया जाता है। बाद में उसे निकालकर सुखाया जाता है। इसके बाद कागज व गत्ते को कांट-छांटकर आकार दिया जाता है। फिर उसपर रंगों से खूबसूरत पेंटिंग की जाती है। इससे पेन होल्डर, गमले, ज्वेलरी बाक्स आदि तैयार किए जाते हैं। इस सामान की बिक्री ज्यादातर श्रीनगर के डलगेट इलाके में होती है। इसे तैयार करने वाले ज्यादातर दस्तकार श्रीनगर के लाल बाजार और हबल इलाके में रहते हैं।

चादर की खासियत

चादर पर श्रीनगर की जामिया मस्जिद, शंकराचार्य मंदिर, दरगाहें, झेलम नदी, डल झील, शिकारे, चिनार के पेड़, डाउन-टाउन का गुंबद आदि छोटे-छोटे स्थानों को भी उभारा गया है, जिससे श्रीनगर पहचाना जाता है। चादर को पेंट करने में हल्के नीले व गुलाबी रंगों का प्रयोग किया गया है।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.