वैश्विक स्तर पर बढ़ा भारत का कद, भारत को तेल व गैस ब्लाक देने को तैयार ये मुल्क
ओएनजीसी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल व गैस ब्लाकों में निवेश करने के हालात काफी बदल गये हैं।
जयप्रकाश रंजन, नई दिल्ली। इसे आप वैश्विक स्तर पर भारत की बढ़ती साख का असर कहिए या फिर कच्चे तेल की कीमतों में हाल के वर्षो में नरमी का असर। हो सकता है कि उक्त दोनो कारण ही वजह हो। जो भी हो लेकिन हकीकत यह है कि कुछ वर्ष पहले तक तेल व गैस ब्लाक खरीदने के लिए दुनिया के दूसरे देशों से मनुहार करने वाले भारत के पीछे अब तमाम देश पड़े हुए हैं कि वह उनके हाइड्रोकार्बन ब्लाक खरीद ले। कतर, कुवैत, इराक जैसे बड़े तेल उत्पादक देशों के अलावा म्यांमार, विएतनाम, लीबिया, मोजाम्बिक जैसे कई छोटे लेकिन बड़े हाइड्रोकार्बन भंडार रखने वाले देश भारत सरकार को मनाने में जुटी हैं।
देश की सबसे बड़ी तेल उत्पादक कंपनी ओएनजीसी के उच्चपदस्थ अधिकारियों ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय स्तर पर तेल व गैस ब्लाकों में निवेश करने के हालात काफी बदल गये हैं। अगर भारत चाहे तो बहुत जल्द कतर, कुवैत समेत चार-पांच देशों में तेल ब्लाकों को खरीदने का फैसला कर सकता है क्योंकि इन देशों की सरकारें पूरी तरह से तैयार है।
अब वे दिन नहीं रहे जब इन देशों में तेल व गैस ब्लाक खरीदने के लिए चीन व भारतीय कंपनियों के बीच होड़ लगी रहती थी। अब ये देश चाहते हैं कि हम उनके यहां ज्यादा से ज्यादा निवेश करे। लेकिन हमें देश में हाइड्रोकार्बन की मांग, कुल ऊर्जा में हाइड्रोकार्बन की हिस्सेदारी, पर्यावरण समेत कुछ अन्य बातों को ध्यान में रखते हुए फैसला करना होगा। केंद्र सरकार ने वर्ष 2030 तक आयातित तेल में 20 फीसद की कमी करने का भी लक्ष्य रखा है। देश में रिनीवल इनर्जी को बहुत तेजी से बढ़ावा दिया जा रहा है और इस क्षेत्र में नई तकनीकी से काफी बदलाव आने की उम्मीद है। इसी तरह से वर्ष 2030 से सिर्फ इलेक्टि्रक कारों को बेचने का लक्ष्य रखने की बात हो रही है। हमें इन सभी तथ्यों को ध्यान में रखते हुए दूसरे देशों में हाइड्रोकार्बन ब्लाक खरीदने का फैसला करना होगा।
हाल के दिनों में कई देशों के साथ हाइड्रोकार्बन सहयोग पर होने वाली बैठक में भारतीय दल का हिस्सा रहने वाले पेट्रोलियम मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि, पिछले डेढ़ दशक का रिकार्ड देखने पर साफ होता है कि भारत में तेल की मांग वैश्विक मांग के मुकाबले तीन से चार गुणा ज्यादा रही है। वर्ष 2005 से वर्ष 2015 के बीच दुनिया में क्रूड की मांग में सिर्फ एक फीसद की वृद्धि हुई है जबकि भारत की मांग में 4.9 फीसद बढ़ोतरी हुई है। इसके बाद इसमें और तेजी आने की बात कही जा रही है।
वर्ष 2016 में अपेक्षाकृत सुस्त आर्थिक विकास दर के बावजूद क्रूड की मांग 8 फीसद से ज्यादा रही जबकि वैश्विक स्तर पर यह दो फीसद से कम थी। दूसरी तरफ जापान और चीन जैसे बड़े तेल आयातक देशों में भी मांग कम होने लगी है। भारत में अभी मांग तेज ही बने रहने के आसार हैं। ऐसे में तेल उत्पादक देशों को मालूम हो कि भारत उनके तेल ब्लाकों के लिए सबसे उपयोगी उम्मीदवार है। यही वजह है कि दूसरे देश अब भारत पर इस बात के लिए डोरे डाल रही हैं। खाड़ी के कुछ देश तो भारत के अनाज के बदले अब तेल ब्लाक देने का प्रस्ताव दे रहे हैं। तेल के मामले में धनी खाड़ी के देशों के लिए खाद्यान्न बड़ी समस्या है। इसलिए वे चाहते हैं कि भारत उनकी खाद्य सुरक्षा का ध्यान रखे तो वह भारत की ऊर्जा सुरक्षा का ध्यान रखेंगी।
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