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Electoral Bonds: दिग्गज कंपनियों के नाम नहीं, IT व स्टार्ट अप भी नहीं; चुनावी चंदा देने में ये कंपनियां आगे

चुनावी बॉन्ड के जरिए चुनावी चंदा देने वाली जिन कंपनियों के नाम सामने आये हैं उसमें भारती एयरटेल वेदांता जिंदल जैसी कुछ बड़ी कंपनियों के नाम जरूर हैं लेकिन रिलायंस समूह टाटा समूह अदाणी समूह जैसी दिग्गज उद्योग समूहों के नाम नहीं है। बाजार पूंजीकरण के हिसाब से देश की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे रिलायंस टीसीएस एचडीएफसी आयसीआयसीआय इंफोसिस एलआईसी हिंदुस्तान लीवर का नाम इसमें नहीं है।

By Jagran News Edited By: Sonu Gupta Published: Sat, 16 Mar 2024 11:45 PM (IST)Updated: Sat, 16 Mar 2024 11:45 PM (IST)
चुनावी बॉन्ड: दिग्गज कंपनियों के नाम नहीं, आईटी व स्टार्ट अप भी नहीं। फाइल फोटो।

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। चुनावी बॉन्ड के जरिए चुनावी चंदा देने वाली जिन कंपनियों के नाम सामने आये हैं उसमें भारती एयरटेल, वेदांता, जिंदल जैसी कुछ बड़ी कंपनियों के नाम जरूर हैं, लेकिन रिलायंस समूह, टाटा समूह, अदाणी समूह जैसी दिग्गज उद्योग समूहों के नाम नहीं है। अगर पूंजी बाजार के आंकड़ों के हिसाब से देखा जाए तो देश की दिग्गज 10 कंपनियों में सिर्फ भारती समूह और आईटीसी के नाम ही इस सूची में है।

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कई कंपनियों के नाम नहीं है शामिल

बाजार पूंजीकरण के हिसाब से देश की सबसे बड़ी कंपनियां जैसे रिलायंस, टीसीएस, एचडीएफसी, आयसीआयसीआय, इंफोसिस, एलआईसी, हिंदुस्तान लीवर का नाम इसमें नहीं है। यह पड़ताल का विषय रहेगा कि बड़े औद्योगिक घरानों ने अपने कई दूसरी इकाइयों के जरिए चुनावी बॉन्ड खरीदे हैं। इसमें आदित्य बिड़ला, डीएलएफ, आर पी गोयनका समूह प्रमुख हैं, जिन्होंने अपनी कई सहयोगी कंपनियों के जरिए राजनीतिक पार्टियों को चंदा देने का इंतजाम किया है।

भारत में यूनिकॉर्न की संख्या पहुंची 115 के करीब

इसके साथ ही एसबीआई की तरफ से चुनाव आयोग को उपलब्ध कराई गई सूची से यह बात भी सामने आती है कि सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) क्षेत्र की कंपनियां या स्टार्टअप कंपनियां भी इसमें नहीं है, जबकि पिछले दो दशकों में भारतीय आईटी कंपनियों का वित्तीय प्रदर्शन सबसे मजबूत रहा है।

भारत में एक अरब डॉलर से ज्यादा मूल्यांकन वाली स्टार्ट अप (यूनिकॉर्न) की संख्या 115 के करीब पहुंच चुकी है। इसके बावजूद कंपनियों ने राजनीतिक दलों से दूरी बना कर रखी है। इसके पीछे एक वजह यह बताया जा रहा है कि आईटी और स्टार्ट अप कारोबार में सरकार का हस्तक्षेप न्यूनतम है और इन्हें सरकारी लाइसेंस की सबसे कम जरूरत होती है।

चुनावी चंदा देने में ये कंपनियां हैं आगे

दूसरी तरफ, सरकार की लाइसेंस पर निर्भर उद्योग क्षेत्र से जुड़ी कंपनियों के नाम चुनावी बॉन्ड सूची में सबसे ज्यादा है। मसलन, बिजली क्षेत्र, सड़क निर्माण, खनन क्षेत्र, इस्पात क्षेत्र की कंपनियां सबसे ज्यादा चुनावी चंदा देने में आगे हैं। इस क्षेत्र की कंपनियों में मूल प्रवर्तक कंपनी और इनकी दूसरी अनुसांगिक कंपनियों ने अलग-अलग चुनावी चंदा दिया है। भारती समूह इसका उदाहरण है।

भारती समूह ने दिया इतने का चंदा

भारतीय एयरटेल ने 183 करोड़ रुपये, भारती टेली मीडिया ने 37 करोड़ रुपये, भारती एयरटेल सीजीओ ने 15 करोड़ रुपये और भारती इंफ्राटेल ने 12 करोड़ रुपये के अलग अलग चुनावी बॉन्ड ्स खरीदे हैं। इस तरह के कई नाम है जिनमें आरपी गोयनका समूह, आदित्य बिड़ला समूह प्रमुख हैं।इसके अलावा चुनाव आयोग की वेबसाइट पर डाली गई उक्त सूची यह भी बताती है कि चुनावी चंदा देने के दौड़ में गुमनाम कंपनियां आगे हैं।

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कई चंदा देने वाली कंपनियों के नहीं है वेबसाइट

दर्जनों ऐसी कंपनियां हैं जिन्होंने 20-20 करोड़ रुपये के चुनावी चंदा दिए है लेकिन उनकी अपनी वेबसाइट तक नहीं है। महाराष्ट्र की क्विकसप्लाई ऐसी ही कंपनी है जिसने 410 करोड़ रुपये का बॉन्ड ्स खरीदा है। पहले यह सूचना आई थी कि यह रिलायंस उद्योग से जुड़ी कंपनी है लेकिन रिलायंस समूह ने बयान जारी कर यह कहा है कि इस तरह की किसी भी कंपनी के साथ उसकी किसी भी सब्सिडियरी का कोई लेन-देन नहीं है।

कई कंपनियों पर चल रही है जांच

कई कंपनियां ऐसी हैं जिन पर पहले से ही देश की जांच एजेंसियों की छानबीन चल रही है। केपी इंटरप्राइजेज ऐसी ही कंपनी है जिसने 27 करोड़ रुपये का चंदा दिया है। इस कंपनी का नाम वर्ष 2012 में तब सामने आया था तब कोयला घोटाले की जांच सीबीआइ कर रही थी।

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