लंदन के इस स्कूल में पिछले 43 वर्षोंं से संस्कृत अनिवार्य पाठ्यक्रम
लंदन के स्कूल में पिछले 43 वर्षो से संस्कृत पढ़ाई जा रही है। पाठ्यक्रम में राम-कृष्ण की कहानियों से लेकर रामायण-महाभारत जैसे महाकाव्य भी सम्मिलित हैं।
जितेंद्र पंडित (भोपाल)। सभ्यता को प्रकृति के सापेक्ष और समग्रता में समझने का सर्वोत्कृष्ट स्रोत कोई है, तो वह संस्कृत साहित्य है। वेद-वेदांत-उपनिषद, पुराण-रामायण-महाभारत, संपूर्ण संस्कृत साहित्य हमें मनुष्य के सर्वांगीण विकास, आत्मिक, मानसिक और सांसारिक विकास को बारीकी से समझने का साधन प्रदान करता है..। यह बात भारतीय संस्कृति मंत्रालय, आरएसएस या भाजपा नहीं, लंदन का सेंट जेम्स स्कूल कह रहा है। गत 43 वर्षो से संस्कृत जिसके पाठ्यक्रम का अनिवार्य हिस्सा है।
संस्कृत ही क्यों? यह बात स्कूल की वेबसाइट पर स्पष्ट की गई है। कहा गया है, संस्कृत साहित्य और संस्कृत में रचित दर्शन इस मायने में अति विशिष्ट है कि यह प्रकृति से हमारे रिश्ते का मर्म हमें भलीभांति समझा देता है। यह हमें सिखाता है कि हम जीवन को आदर्श रूप में किस तरह जी सकते हैं। अनेक कारणों में एक कारण यह भी बताया गया है कि विश्व की प्राचीनतम भाषा संस्कृत न केवल इंग्लिश बल्कि यूरोप की अन्य भाषाओं की जननी है।
स्कूल के पाठ्यक्रम में राम-कृष्ण की कहानियों से लेकर रामायण-महाभारत जैसे महाकाव्य भी सम्मिलित हैं। भोपाल, मध्य प्रदेश स्थित मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन सेंट जेम्स स्कूल को संस्कृत की किताबें उपलब्ध कराता आया है। पढ़ाई का स्तर ऐसा कि स्कूल के बच्चों के मुंह से वैदिक ऋचाओं, गीता के श्लोकों, पौराणिक कथाओं और अन्य भारतीय धर्मग्रंथों के श्लोकों का उच्चारण सुन किसी भी भारतीय का मन गदगद हो जाए।
सेंट जेम्स स्कूल की स्थापना 1975 में हुई थी। 1993 में कैंब्रिज यूनिवर्सिटी में संस्कृत को विषय के रूप में शामिल करने में सेंट जेम्स स्कूल ने ही मदद की थी। इंग्लैंड में संस्कृत भाषा को बढ़ावा देने के लिए इंटरनेशनल जनरल सर्टिफिकेट ऑफ सेकेंडरी एजुकेशन (आइजीसीएसइ) और यूनिवर्सिटी ऑफ कैंब्रिज इंटरनेशनल एग्जामिनेशन (सीआइई) द्वारा अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पाठ्यक्रम उपलब्ध कराया गया है। 2008 में इंटरनेशनल संस्कृत एग्जामिनेशन रिसोर्स सोसाइटी (आइएसइआर) का भी गठन किया गया। इसका उद्देश्य संस्कृत के प्रति लोगों को जागरूक करना व आगे पढ़ने वालों को आर्थिक मदद उपलब्ध करना है। यह सोसाइटी अब इसी स्कूल का हिस्सा है।
मोतीलाल बनारसीदास प्रकाशन के मुख्य संपादक वाचस्पति पाण्डेय ने बताया कि स्कूल की डिमांड के अनुसार हम किताब छापते हैं और स्कूल तक उपलब्ध कराते हैं। किताबें हमारे यहां छपती भर हैं, जबकि किताबों के लेखक वहीं के हैं। कुछ किताबों का लिप्यंतरण किया गया है।
भोपाल में राष्ट्रीय संस्कृत संस्थान के प्राचार्य प्रो. एम. चंद्रशेखर का कहना है कि हमारा देश पूरी तरह पश्चिमी सभ्यता अपनाने को आतुर है। यह खबर देश को आईना दिखाने वाली है। किसी विदेशी स्कूल में संस्कृत अनिवार्य रूप से पढ़ाई जाती है और वे इसकी जरूरत समझते हैं। हमें इससे सबक लेना चाहिए।
संस्कृत ही क्यों?
लंदन के सेंट जेम्स कॉन्वेंट स्कूल की वेबसाइट पर लिखा हुआ है- संस्कृत समृद्ध है; शब्दावली में समृद्ध, साहित्य में समृद्ध, विचारों और व्यवहार में समृद्ध, अर्थ और मूल्यों में समृद्ध। इसमें पुरातनता है, एक अद्भुत संरचना; ग्रीक की तुलना में अधिक परिपूर्ण, लैटिन की तुलना में अधिक प्रचलित, अधिक सटीक, हर रूप में परिष्कृत। आज संस्कृत के ज्ञान को अंतरराष्ट्रीय अकादमिक समुदाय द्वारा अत्यधिक सम्मान प्राप्त है। संस्कृत व्याकरण की जटिलताओं पर महारत हासिल करना सामान्य रूप से सभी भाषा संरचनाओं में बड़ी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है। संस्कृत साहित्य हमें विशाल दृष्टिकोण प्रदान करता है। अभूतपूर्व परिवर्तन और अनिश्चितता के इस युग में, वर्तमान सामाजिक परिदृश्य के आकलन और इसे देखने-समझने के लिए यह एक महत्वपूर्ण उपकरण हो सकता है। मानस में कालातीत अंतर्दृष्टि प्रदान करने के लिए इस भाषा को कुशलता से तैयार किया गया है।
जर्मनी में भी संस्कृत की धूम
इंग्लैंड में जहां चार विश्वविद्यालयों में संस्कृत पाठ्यक्रम में शामिल है, वहीं जर्मनी में 14 में। इस मामले में जर्मनी यूरोप में सबसे आगे है। यहां के विश्वविद्यालयों में संस्कृत पढ़ने वालों की खासी संख्या रहती है।