Move to Jagran APP

रिवर फ्रंट के चलते गंदा नाला बन कर रह गई गोमती, शाम-ए-अवध की रंगत हुई गायब

रिवर फ्रंट के नाम पर गोमती को बांधने का खामियाजा आज ये नदी उठा रही है। इसकी वजह से ये अब एक गंदा नाला बनकर रह गई है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sat, 01 Feb 2020 10:44 AM (IST)Updated: Sat, 01 Feb 2020 10:44 AM (IST)
रिवर फ्रंट के चलते गंदा नाला बन कर रह गई गोमती, शाम-ए-अवध की रंगत हुई गायब
रिवर फ्रंट के चलते गंदा नाला बन कर रह गई गोमती, शाम-ए-अवध की रंगत हुई गायब

पंकज चतुर्वेदी। कभी गोमती लखनऊ के बाशिंदों के जीवन-जगत का मुख्य आधार हुआ करती थी। सूर्य की अस्ताचलगामी किरणों इस नदी की जलनिधि से परावर्तित होकर पूरे शहर को सुनहरे लाल रंग से सराबोर कर देती थीं। लखनऊ में गोमती के बहाव की दिशा पूर्व-पश्चिम है सो डूबते सूरज की किरणों का सीधा परावर्तन होता है। लेकिन रिवर फ्रंट के नाम पर जैसे ही नदी को बांधा, गोमती गंदा नाला बन कर रह गई है। नदी में पानी कम और काई अधिक दिखाई देती है। सूरज की रोशनी वही है, उसके अस्त होने की दिशा भी वही है, लेकिन शाम-ए-अवध का सुनहरा सुरूर नदारद है।

loksabha election banner

पीलीभीत से 32 किमी दूर पूर्व दिशा में ग्राम बैजनाथ की फुल्हर झील गोमती का उद्गम स्थल है। करीब 20 किमी तक इसकी चौड़ाई किसी छोटे से नाले सरीखी संकरी है, जहां गरमियों में अक्सर पानी नाममात्र होता है। फिर इसमें गैहाई नाम की छोटी सी नदी मिलती है और एक छिछला जल-मार्ग बन जाता है। उद्गम से 56 किमी का सफर तय करने के बाद जब इसमें जोकनई नदी मिलती है तब इसका पूरा रूप निखर आता है। शाहजहांपुर और खीरी होकर यह आगे बढ़ती है। मुहमदी से आगे इसका स्वरूप बदल जाता है और इसका पाट 30 से 60 मीटर चौड़ा हो जाता है। जब यह नदी लखनऊ पहुंचती है तो इसके तट 20 मीटर तक ऊंचे हो जाते हैं। फिर यह बाराबंकी, सुल्तानपुर और जौनपुर जिलों से गुजरती हुई जौनपुर के करीब सई नदी में मिल जाती है।

केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के आंकड़ों के अनुसार गोमती नदी लखनऊ आने तक काफी हद तक निर्मल रहती है। लेकिन लखनऊ के बाद इसमें ‘डी’ व ‘ई’ स्तर का प्रदूषण रहता है। बोर्ड के मानदंडों के मुताबिक ‘डी’ स्तर का पानी केवल वन्य जीवों और मछली पालन योग्य होता है, जबकि ‘ई’ स्तर के पानी को मात्र सिंचाई, औद्योगिक शीतकरण व नियंत्रित कचरा डालने लायक माना जाता है। वैसे गोमती नदी में प्रदूषण की शुरुआत लखनऊ से 50 किमी पहले सीतापुर जिले के भट्टपुर घाट से हो जाती है। यहां गोमती की एक प्रमुख सहायक नदी सरिया इसमें आकर मिलती है। सरिया के पानी में सीतापुर जिले में स्थित शक्कर और शराब के कारखानों का प्रदूषित स्त्रव होता है। जैसे-तैसे गोमती लखनऊ तक शुद्ध हो पाती है, लेकिन इस राजधानी शहर में पहुंचते ही यह नाले के स्वरूप में आ जाती है। करीब 28 लाख आबादी वाले इस शहर का लगभग 1,800 टन घरेलू कचरा और 33 करोड़ लीटर गंदा पानी हर रोज गोमती में घुलता है। लखनऊ में बीकेटी से इंदिरा नहर तक कुल 28 नाले नदी में गिरते हैं।

लगभग 1,500 करोड़ रुपये खर्च करके महानगर के साढ़े आठ किलोमीटर में गोमती को संवारने की योजना ने गोमती को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाया। गोमती किसी ग्लेशियर से निकलने वाली नदी नहीं है, इसका उद्गम व संवर्धन भूजल से ही होता है। रिवर फ्रंट के नाम पर गोमती की धारा को संकरा कर दिया गया। इसके दोनों तरफ कंक्रीट की दीवार बना दी गई। जाहिर है कि इस दीवार को टिकाकर रखने के लिए गहराई में भी दीवार उतारी गई होगी। हर नदी के तट की मिट्टी, उसकी नमी, उसके लिए ऑक्सीजन उपजाती है, उसके पानी को शुद्ध करती है। गोमती को घेर कर खड़ी दीवारों ने नदी के जीवन को ही समाप्त कर दिया। शहर के भीतर स्थित कई कारखाने बगैर ट्रीटमेंट प्लांट लगाए अपशिष्ट निकास गोमती में कर रहे हैं।

साबरमती 

इसी प्रकार गुजरात के अहमदाबाद में साबरमती नदी के दोनों किनारों पर कंक्रीट की दीवार खड़ी करके जिस तरह से रिवर फ्रंट बनाया गया है उससे नदी का प्राकृतिक स्वरूप बिगड़ रहा है। हमें नदियों के प्राकृतिक स्वरूप को बचाए रखना होगा ताकि उसके अस्तित्व को कायम रखा जा सके।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.