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1947 में सरगुजा महाराज ने किया था अंतिम चीतों का शिकार, जानें इनसे जुड़ी रोचक जानकारियां

जुओलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन और पैंथरा एंड वाइल्डलाइफ कंजरवेशन सोसायटी की रिपोर्ट की मानें तो दुनिया से चीतों की करीब 91 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Wed, 29 Jan 2020 08:54 AM (IST)Updated: Wed, 29 Jan 2020 10:56 PM (IST)
1947 में सरगुजा महाराज ने किया था अंतिम चीतों का शिकार, जानें इनसे जुड़ी रोचक जानकारियां
1947 में सरगुजा महाराज ने किया था अंतिम चीतों का शिकार, जानें इनसे जुड़ी रोचक जानकारियां

नई दिल्‍ली [जागरण स्‍पेशल]। सुप्रीम कोर्ट ने भारत में अफ्रीकी चीतों को लाने की मंजूरी तो दे दी लेकिन सवाल यह है कि इसकी जरूरत क्यों पड़ी? पिछले कुछ सालों में फुर्ती और रफ्तार के लिए पहचाना जाने वाला चीता विश्व के कुछ देशों को छोड़कर लगभग विलुप्त हो चुका है।

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जुओलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन और पैंथरा एंड वाइल्डलाइफ कंजरवेशन सोसायटी की रिपोर्ट की मानें तो इनकी करीब 91 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है। पहले तो इंसानों ने इनका जमकर शिकार किया। इनके आवासों पर कब्जा कर लिया। खाने के लाले और प्रतिकूल हालातों के बीच इनकी चीत्कार निकलती रही। अब भी यदि इन जीवों की पुकार नहीं सुनी गई तो दुनिया सिर्फ तस्वीरों में इस खूबसूरत जीव को देख पाएगी। पेश है एक नजर...

सिर्फ 7100 चीते बचे

जुओलॉजिकल सोसायटी ऑफ लंदन और पैंथरा एंड वाइल्डलाइफ कंजरवेशन सोसायटी की संयुक्त रिपोर्ट के अनुसार दुनिया भर में सिर्फ 7100 चीते बचे हैं। इस प्रजाति की 91 फीसद आबादी खत्म हो चुकी है।

यहां बची है इनकी संख्या

अंधाधुंध शिकार, तस्करी और प्राकृतिक आवास में गिरावट के चलते एशियाई चीते सबसे अधिक प्रभावित हुए हैं। एशिया में केवल ईरान ही है, जहां 50 चीते बचे हैं। इसके अलावा सिर्फ अफ्रीका महाद्वीप में चीते पाए जाते हैं। 20वीं सदी में चीते अफगानिस्तान, इजरायल जैसे देशों में भी मौजूद थे।

दुनिया भर में चिंता जर्सी पर चित्र: 2014 के फुटबाल विश्वकप और एशियन गेम्स में ईरान की जर्सी पर चीते का चित्र था। तभी लोग जान सके कि चीता खतरे में है।

क्लोन तैयार करने की योजना: 2000 के शुरुआती वर्षों में हैदराबाद के सेंटर फॉर सेलुलर एंड मॉलीकुलर बायोलॉजी के वैज्ञानिकों ने ईरान से एशियाई चीते का क्लोन तैयार करने की योजना बनाई। भारत ने ईरान से चीते का एक जीवित जोड़ा भेजने का अनुरोध किया। भारतीय वैज्ञानिकों ने कहा कि यदि यह संभव नहीं है तो उन्हें चीतों की कुछ जीवित कोशिकाएं लेने की ही अनुमति दी जाए। हालांकि ईरान ने दोनों शर्तों के लिए मना कर दिया।

आवास से बाहर प्रजनन: संख्या बढ़ाने के लिए तेहरान के एक बड़े पार्क में चीतों का उनके प्राकृतिक आवास से बाहर प्रजनन कराया जा रहा है।

चिंताजनक

  • पिछले 16 वर्षों में जिम्बाब्वे में इनकी आबादी 1200 से घटकर 170 पहुंच गई।
  • संरक्षित आवास के अभाव में कई दफा रिहायशी इलाकों में चले जाते हैं। वहां लोग इन्हें मार देते हैं।
  • चीता के 77 फीसद प्राकृतिक आवास संरक्षित क्षेत्रों से बाहर मौजूद हैं। इसके चलते ये तस्करों और शिकारियों की नजर में आते हैं।

भारत से विलुप्त हो चुका है चीता

विशेषज्ञों के मुताबिक देश में चीता को अंतिम बार 1947 में देखा गया था, जब सरगुजा महराज ने देश में बाकी बचे तीन चीतों को एक शिकार में मार दिया था।

शान ने छीने निशान

मुगलकाल के दौरान भारत में करीब एक हजार चीते थे। अंग्रेजों के आने के बाद इनका अंधाधुंध शिकार हुआ। देश के आजाद होने तक भारत में इनकी आबादी लगभग पूरी तरह समाप्त हो गई। साल 2000 से सरकार फिर से इन्हें लाने की कोशिशों में जुटी है।

चीतों को लाने की चर्चा 2001 से शुरु हुई थी

भारत से पूरी तरह से विलुप्त हो चुके चीतों को लाने को लेकर चर्चा वैसे से 2001 से ही शुरु हो गई थी, लेकिन इसे अमली जामा 2009 में पहनाया गया।

विलुप्ति की वजहें शिकार की कमी: चीतों को बचाने के प्रोटेक्शन प्रोग्राम की शुरुआत में सबसे बड़ी समस्या भूख मिटाने के लिए चीतों के शिकार में कमी की आई। लिहाजा पार्क में हिरण, चिंकारा और खरगोश को पालने का काम करना जरूरी।

आदमियों से सामना: चीता अक्सर अपने आवास से सटे रिहायशी इलाकों में शिकार के लिए चले जाते हैं। जहां किसान और उनके कुत्ते इन्हें मार देते हैं। कुत्तों का एक झुंड आसानी से इन्हें काबू कर सकता है।

सड़क दुर्घटनाएं: ईरान में पिछले 16 साल में करीब 20 चीता सड़क दुर्घटना के शिकार बने।

जंग ने घटाई संख्या: 1980 से 1988 तक चले ईरान-इराक युद्ध के दौरान देश की पश्चिमी सीमा पर व्यापक स्तर पर वन्य जीव मारे गए। इनमें एशियाई चीते भी शिकार बने। आज जंग तो नहीं है लेकिन दिक्कतें और बढ़ गई हैं।


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