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मद्रास हाईकोर्ट ने 'नो कास्ट, नो रिलीजन' प्रमाणपत्र जारी करने का दिया आदेश, स्कूल में दाखिला न मिलने पर दायर की थी याचिका

मद्रास हाई कोर्ट ने निर्देश दिया कि वे स्कूल में दाखिले के लिए एक छात्र को कोई जाति नहीं कोई धर्म नहीं (नो कास्ट नो रिलीजन) प्रमाणपत्र जारी करें। न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दुस ने मंगलवार को जे. युवान मनोज की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस आशय का आदेश दिया।

By Amit SinghEdited By: Published: Wed, 17 Aug 2022 04:30 AM (IST)Updated: Wed, 17 Aug 2022 04:30 AM (IST)
मद्रास हाईकोर्ट ने 'नो कास्ट, नो रिलीजन' प्रमाणपत्र जारी करने का दिया आदेश, स्कूल में दाखिला न मिलने पर दायर की थी याचिका
हाईकोर्ट ने नो कास्ट नो रिलीजन प्रमाणपत्र जारी करने का दिया आदेश

चेन्नई, एजेंसियां: मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को संबंधित अधिकारियों को निर्देश दिया कि वे स्कूल में दाखिले के लिए एक छात्र को 'कोई जाति नहीं, कोई धर्म नहीं (नो कास्ट, नो रिलीजन)' प्रमाणपत्र जारी करें। न्यायमूर्ति अब्दुल कुद्दुस ने मंगलवार को जे. युवान मनोज की याचिका पर सुनवाई करते हुए इस आशय का आदेश दिया।

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युवान मनोज के पिता जगदीशन ने अपनी याचिका में कहा है कि वह अनुसूचित जाति से संबंध रखते हैं। विरोध के बाद भी उन्होंने अगड़ी जाति की एक लड़की से विवाह किया है। उनकी पत्नी ने अप्रैल, 2019 में एक बच्चे को जन्म दिया। याचिका के अनुसार, जगदीशन जब अंबात्तुर के एक स्कूल में अपने बेटे का दाखिला कराने पहुंचे, तो अधिकारियों ने उनसे जाति और धर्म का कालम भरने को कहा। उन्होंने ऐसा करने से मना कर दिया। इसके बाद बच्चे को स्कूल में दाखिला नहीं मिला। इसलिए, उन्होंने यह रिट चायिका दायर की है।

हाल ही में यह मामला सामने आने पर स्थानीय तहसीलदार ने 16 अगस्त को एक आदेश जारी कर कहा कि याचिकाकर्ता को 'नो कास्ट, नो रिलीजन' प्रमाणपत्र जारी किए जाने पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है। इस दलील को रिकार्ड में लेते हुए न्यायमूर्ति कुद्दुस ने संबंधित अधिकारियों को आवेदक के अनुरोध के अनुसार प्रमाणपत्र जारी करने को कहा। बता दें, जाति प्रमाण पत्र एक दस्तावेज है जो प्रमाणित करता है कि व्यक्ति एक विशेष समुदाय, जाति और धर्म से संबंधित है। कई बार नागरिकों को सरकार द्वारा दी जाने वाली विभिन्न प्रकार की सुविधाओं का लाभ उठाने के लिए जाति प्रमाण पत्र प्राप्त करने की आवश्यकता होती है।

वहीं, मई 2022 के दौरान तमिलनाडु में एक दंपति को अपनी साढ़े तीन साल की बेटी विल्मा के लिए 'कोई धर्म नहीं, कोई जाति नहीं' प्रमाणपत्र हासिल किया था। नरेश कार्तिक और उनकी पत्नी गायत्री ने अपनी बेटी को किंडरगार्टन में दाखिला दिलाने और धर्म और जाति के कॉलम को खाली रखने के लिए कई स्कूलों का रुख किया था।


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