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मद्रास हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- बहू की आत्महत्या में सास-ससुर को नहीं छोड़ सकते

जस्टिस पी.वेलमुरुगन ने कहा कि अगर इनके साथ रियायत बरती गई तो समाज में यह गलत संदेश जाएगा। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों को संरक्षण देने शिक्षित करने और अपने दम पर रोजगार ढूंढने की हमेशा प्रेरणा देते रहना चाहिए।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Wed, 21 Apr 2021 07:46 AM (IST)Updated: Wed, 21 Apr 2021 07:46 AM (IST)
मद्रास हाई कोर्ट का बड़ा फैसला, कहा- बहू की आत्महत्या में सास-ससुर को नहीं छोड़ सकते
मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा

चेन्नई, प्रेट्र। मद्रास हाई कोर्ट ने मंगलवार को कहा कि दहेज उत्पीड़न के मामलों में बहू के आत्महत्या करने पर सास-सुर को सिर्फ इस आधार पर नहीं बख्शा जा सकता कि वे बेटे-बहू के साथ नहीं रहते थे। इसके साथ ही हाई कोर्ट ने नवविवाहित युवक के माता-पिता को निचली अदालत द्वारा सुनाई गई सजा में किसी तरह की रियायत दिए जाने से इन्कार कर दिया। कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि इस मामले में आत्महत्या करने वाली बहू के सास-ससुर ने अपनी सजा निलंबित करने की अपील इस आधार पर की कि वे अपने बेटे के साथ नहीं रह रहे हैं। 

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मद्रास हाई कोर्ट ने बेटे से अलग रहने वाले माता-पिता को सजा में नहीं दी रियायत

जस्टिस पी.वेलमुरुगन ने कहा कि अगर इनके साथ रियायत बरती गई तो समाज में यह गलत संदेश जाएगा कि कोई भी सास-ससुर इस तरह के मामलों में सजा से बच सकता है। कोर्ट ने कहा कि माता-पिता को अपने बच्चों को संरक्षण देने, शिक्षित करने और अपने दम पर रोजगार ढूंढने की हमेशा प्रेरणा देते रहना चाहिए। उनकी सबसे पहली और महत्वपूर्ण जिम्मेदारी यह है कि वे अपने बच्चों को जिम्मेदार नागरिक के रूप में तैयार करें। 

कोर्ट ने इसके साथ ही दहेज उत्पीड़न के कारण जान देने वाली महिला के सास-ससुर की दो साल के कठोर कारावास की सजा निलंबित करने की याचिका ठुकरा दी। कोर्ट ने कहा कि दहेज उत्पीड़न के कारण महिलाओं के आत्महत्या करने मामलों में लगातार वृद्धि हुई है। वहीं ससुराल वाले इस आधार पर बच निकलते हैं कि वे बेटे-बहू के साथ नहीं रहते। हालांकि इस मामले में वे अलग रहते थे, फिर भी वे अपने बेटे को प्रेरित करते थे कि वे बहू के घर वालों से पैसे, गहने, या वाहन के लिए मांग करे।


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