तेलंगाना की राज्यपाल के खिलाफ अवमानना मामला रद
तमिलसाइ सौंदरराजन ने 2018 में हाई कोर्ट में अवमानना मामला रद करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। सुनवाई के लिए चार बार याचिका सूचीबद्ध की गई लेकिन सौंदरराजन की ओर से कोई प्रतिनिधि पेश नहीं हुआ।
चेन्नई, आइएएनएस। मद्रास हाई कोर्ट (Madras HIgh Court) ने तेलंगाना (Telangana) राज्यपाल तमिलसाइ सौंदरराजन (Tamilisai Soundararajan) के खिलाफ अवमानना मामला रद कर दिया। तमिलनाडु की पार्टी विदुतलाई चिरुतैगल काची (वीसीके) ने 2017 में उनके खिलाफ यह मामला दर्ज कराया था। उस समय तमिलनाडु प्रदेश भाजपा अध्यक्ष के रूप में सौंदरराजन ने एक साक्षात्कार में आलोचना की थी जिसके आधार पर उनके खिलाफ मामला दर्ज कराया गया था।
जस्टिस एम. धनदापाणी ने योग्यता के आधार पर मामला रद किया। रद करने की याचिका पर कई बार सुनवाई स्थगित होने के बाद भी सौंदरराजन की तरफ से कोई प्रतिनिधित्व नहीं किया गया। सौंदरराजन ने 2018 में हाई कोर्ट में अवमानना मामला रद करने की मांग को लेकर याचिका दायर की थी। सुनवाई के लिए चार बार याचिका सूचीबद्ध की गई, लेकिन सौंदरराजन की ओर से कोई प्रतिनिधि पेश नहीं हुआ। शिकायतकर्ता कार्तिकेयन भी अनुपस्थित रहे। दोनों पक्षों के पेपर देखने के बाद जस्टिस धनदापाणी ने कहा कि शिकायत सौंदरराजन के बयान पर आधारित है।
जस्टिस एम. ढांडापानी ने इसे योग्यता के आधार पर मामले को खारिज कर दिया, क्योंकि कई मौकों पर आवेदन रद करने पर सुनवाई स्थगित करने के बाद भी वीसीके के सौंदरराजन या कार्तिकेयन की ओर से कोई प्रतिनिधित्व नहीं पहुंचा था।
सुंदरराजन ने मानहानि मामले को रद करने के लिए 2018 में हाई कोर्ट का रुख किया था। हालांकि, चार अलग-अलग बार सुनवाई के लिए मामला सूचीबद्ध होने के बाद भी, उनका प्रतिनिधित्व किसी ने नहीं किया। इस दौरान शिकायतकर्ता कार्तिकेयन भी अनुपस्थित रहे।
दोनों पक्षकारों के चुप रहने के बाद भी कागजातों को देखने पर, जस्टिस ढांडापानी ने पाया कि शिकायत सुंदरराजन के एक बयान पर आधारित था, जिसमें आरोप लगाया गया था कि वीसीके और इसके संस्थापक नेता, थोल थिरुमावलवन, कंगारू अदालतें आयोजित कर रहे थे और भूमि हथियाने में लिप्त थे।
उन्होंने यह भी कहा कि निजी शिकायतकर्ता ने यह उल्लेख नहीं किया है कि उन्हें मामला दर्ज करने के लिए थिरुमावलवन या वीसीके द्वारा अधिकृत किया गया था। प्रतिवादी (ढाडी के कार्तिकेयन) ने निजी शिकायत दर्ज करना उचित समझा। प्रतिवादी प्रभावित व्यक्ति नहीं होने के कारण, धारा 500 (आपराधिक मानहानि) का आह्वान करता है। भारतीय दंड संहिता स्वीकृति के योग्य नहीं है। जस्टिस ढांडापानी ने फैसला सुनाया, शिकायत न्यायिक समय की कीमत पर राजनीतिक प्रचार हासिल करने के अलावा और कुछ नहीं है।