विदिशा में तैयार हो रहे बीज रहित संतरे और मौसंबी के पौधे, ऑनलाइन हो रही बिक्री
एमबीए की डिग्री लेने के बाद खेती को अपनाने वाले आशुतोष बताते हैं कि उनकी लैब में 7 महीने के शोध के बाद बीज रहित संतरे और मौसंबी के पौधे तैयार हैं।
विदिशा, अजय जैन। देश में संतरे की पैदावार के मामले में भले ही महाराष्ट्र अव्वल है, लेकिन अब सभी क्षेत्रों में संतरे और मौसंबी की खेती होने लगी है। इसे देखते हुए मध्य प्रदेश के विदिशा जिले में एक निजी टिश्यू कल्चर लैब शुरू हुई है। इसमें बीज रहित संतरे और मौसमी की प्रजाति तैयार हो रही है, जिसमें रोग रहित फसल के साथ अच्छी पैदावार का दावा किया जा रहा है।
जिला उद्यानिकी अधिकारी केएल व्यास बताते हैं कि प्रदेश में पहली बार इस तरह की प्रजाति तैयार की गई है। जिले की कुरवाई तहसील के ग्राम पनावर के आशुतोष शर्मा ने करीब 3 करोड़ रुपये की लागत से यह लैब तैयार की है। लैब से 70 स्थानीय लोगों को रोजगार भी मिला है। लैब में संतरे, मौसंबी के साथ अनार, केले, बांस और सागौन के पौधों की उन्नत प्रजाति भी तैयार की जा रही है। आठ माह से पौधों की बिक्री भी शुरू हो गई है।
नहीं लगता रोग
एमबीए की डिग्री लेने के बाद खेती को अपनाने वाले आशुतोष बताते हैं कि उनकी लैब में 7 महीने के शोध के बाद बीज रहित संतरे और मौसंबी के पौधे तैयार हैं। टिश्यू कल्चर से तैयार इन पौधों की प्रतिरोधक क्षमता काफी अच्छी होती है। इससे फसल को कोई रोग नहीं लगता। वहीं फलों का आकार भी एक सा होता है। इसकी पैदावार प्रति हेक्टेयर 25 टन तक होती है। इससे पहले केंद्रीय नींबू वर्गीय फल अनुसंधान संस्थान नागपुर ने यह प्रजाति तैयार की थी। उन्होंने यह पौधे ग्राफ्टिंग पद्धति से तैयार किए थे। हमने इन्हें आधुनिक टिश्यू कल्चर पद्धति से तैयार किया है। इसमें पौधे तीन साल में ही फल देने लगते है। इधर, जिला उद्यानिकी अधिकारी बताते हैं कि इन फलों में अधिकतम तीन बीज होते हैं, जिसे बीज रहित ही कहा जाता है। कलेक्टर डॉ. पंकज जैन ने भी कुछ दिन पहले इस लैब का जायजा लिया था। उनका कहना है कि स्थानीय स्तर पर नई प्रजाति के पौधे मिलने से जिले को दूसरे शहरों पर निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।
ऑनलाइन हो रही पौधों की बिक्री
आशुतोष के मुताबिक, उन्होंने एक वेबसाइट व यूट्यूब चैनल भी बनाया है। इसमें पौधों की खासियत से लेकर किस्म तैयार करने की प्रक्रिया को बताया है। इससे देशभर से पौधों की मांग आ रही है। महाराष्ट्र, गुजरात, हरियाणा के शहरों में पौधे भेजे जा रहे हैं। प्रतिदिन 5 से 7 हजार पौधों की बिक्री हो रही है, उनका लक्ष्य प्रतिवर्ष 35 लाख नए पौधे तैयार करना है।