चुनाव पूर्व पुलिस से किया वादा पूरा करने में विफल रही सरकार, दो दशक से चल रही कवायद
POLICE Weekly Off थानों में तैनात पुलिस बल को छुट्टी देने के लिए चाहिए आठ हजार अतिरिक्त बल। मप्र पुलिस में छह महीने बाद भी व्यावहारिक नहीं हो पाई छुट्टी।
भोपाल, जेएनएन। मध्य प्रदेश में सत्ता संभालने के तुरंत बाद ही मुख्यमंत्री कमलनाथ ने पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश की सौगात देने का कागजी एलान तो कर दिया, लेकिन छह महीने बाद भी स्थिति 'ढाक के तीन पात’ वाली है। प्रदेश के थानों में 56 हजार पुलिस बल तैनात है। जब तक 'लीव रिजर्व’ के रूप में आठ हजार पुलिस बल अतिरिक्त नहीं मिलेगा, तब तक उन्हें साप्ताहिक अवकाश देना संभव नहीं है। प्रदेश में अभी 21 हजार पद खाली हैं, इसलिए मैदानी पुलिसकर्मियों के लिए साप्ताहिक अवकाश आज भी दूर की कौड़ी है। पुलिस बल में कमी के चलते कांग्रेस सरकार का यह चुनावी वादा पूरी तरह जमीन पर नहीं उतर पा रहा।
प्रदेश में पुलिसकर्मियों को साप्ताहिक अवकाश देने की कवायद दो दशक से चल रही है, लेकिन व्यावहारिक स्तर पर यह व्यवस्था सुचारू नहीं हो पाई। पीएचक्यू के सूत्रों का कहना है कि मुख्यमंत्री ने कागज पर साप्ताहिक अवकाश के आदेश जारी कर दिए, लेकिन जरूरी संसाधन और व्यवस्थागत सुविधा नहीं दी गई। मुख्यमंत्री ने पुलिस मुख्यालय को यही कहा है कि अपने संसाधनों से छुट्टी की व्यवस्था कर लें, इसलिए यह व्यावहारिक तौर पर अब तक संभव नहीं हो पाया है। थाने में तैनात स्टाफ को साप्ताहिक अवकाश देने के लिए आठ हजार पुलिस बल और चाहिए।
प्रदेश में 1.25 लाख है पुलिस बल
मप्र में करीब एक लाख 25 हजार पुलिस बल है, जिसमें 85 हजार अमला मैदानी पोस्टिंग में है। इनमें जिला पुलिस बल, विशेष सशस्त्र बल, महिला थाना और अजाक आदि सब शामिल हैं। 24 घंटे और सात दिन खुले रहने वाले प्रदेश के थानों में करीब 56 हजार पुलिस बल तैनात है। तनाव, लगातार ड्यूटी, अनियमित दिनचर्या और काम का बोझ देखते हुए थाने के स्टाफ को साप्ताहिक अवकाश की सबसे ज्यादा जरूरत है। प्रदेश में आरक्षक, हवलदार, एएसआई, निरीक्षक और डीएसपी स्तर के 21 हजार पद खाली पड़े हैं। यही स्टाफ पुलिस की रीढ़ और मैदानी अमला कहलाता है। फोर्स की कमी के चलते उन्हें अवकाश नहीं मिल पा रहा। लगातार काम करने के चलते इनमें स्वास्थ्य संबंधी कई परेशानियां हो रही हैं।
कागजी घोषणा, सुविधा नहीं दी
'अहर्निश सेवा’ के मंत्र पर दिन-रात काम करने वाली पुलिस को होली-दीपावली जैसे पर्व पर भी मैदान में ज्यादा मुस्तैदी दिखानी पड़ती है, लेकिन दिसंबर 2018 में डेढ़ दशक के बाद सत्ता में लौटी कांग्रेस सरकार ने अपने चुनावी वादे पर अमल की धूमधाम से घोषणा तो कर दी, लेकिन जब तक 'रिलीवर’ के तौर पर आठ हजार पुलिस बल नहीं मिलेगा, तब तक वीकली ऑफ की व्यवस्था सुचारू हो पाना मुश्किल है। मुख्यमंत्री कमलनाथ के आदेश के बाद फौरी तौर पर रोस्टर के आधार पर पुलिस बल को छुट्टी देने का निर्णय लागू तो कर दिया गया, लेकिन उसकी व्यावहारिकता आज भी सवालों में है।
बीमार है पुलिस बल
उल्लेखनीय है कि पुलिस मुख्यालय की कल्याण शाखा द्वारा पुलिस बल की स्वास्थ्य संबंधी रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई। तीन साल पहले तैयार हुई रिपोर्ट में बड़ी संख्या में पुलिस कर्मियों में हार्टअटैक, कैंसर, किडनी और लिवर संबंधी बीमारियां पाई गईं हैं। यह भी सामने आया कि बिना आराम लगातार ड्यूटी के चलते उनमें कई तरह की परेशानी बढ़ रही है। अनियमित खान-पान व दिनचर्या के चलते डायबिटीज और हाई ब्लड प्रेशर के मरीज ज्यादा पाए गए। एक साल के दौरान असामयिक मौतों के आंकड़े (करीब 450) ने भी पुलिस मुख्यालय को चिंता में डाल दिया है।
चुनाव के दौरान अवकाश नहीं दे पाए
पुलिस महानिदेशक मध्य प्रदेश वीके सिंह ने बताया कि लोकसभा चुनाव के दौरान अवकाश देने में कमी आई है। यह भी सही है कि पुलिस बल की कमी है, लेकिन युक्तियुक्त ढंग से रोस्टर के अनुसार साप्ताहिक अवकाश देने को कहा गया है। चुनाव में मप्र के 1944 पुलिस बल दो माह तक दूसरे राज्यों में लगातार तैनात रहे, उनके लिए हमने एक साथ आठ दिन का अवकाश भी दिया है।
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