Trending

    Move to Jagran APP
    pixelcheck
    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    Rising India: जज्बे ने रोका बेबसी का कारवां... और इस तरह बन गए श्रमिकों के मसीहा

    By Sanjeev TiwariEdited By:
    Updated: Tue, 02 Jun 2020 02:24 AM (IST)

    लखनऊ के दो साधारण इंसानों के जज्बे की कहानी जो 15 प्रवासी श्रमिक परिवारों के लिए मसीहा बन गए।

    Rising India: जज्बे ने रोका बेबसी का कारवां... और इस तरह बन गए श्रमिकों के मसीहा

    नई दिल्ली। मूल्यविहीन समाज देश को कभी समृद्ध नहीं बना सकता है। लखनऊ के दो साधारण इंसानों के जज्बे की कहानी, जो 15 प्रवासी श्रमिक परिवारों के लिए मसीहा बन गए। इंसानियत के जिंदा होने का यकीन दिलाती इनकी यह कहानी उन खुदगर्जों को सोचने पर विवश कर देगी, जिन्होंने संकट के मारे प्रवासी श्रमिकों से मकान का किराया वसूला, न देने पर बाहर निकाल दिया, जरा भी मानवीयता नहीं दिखाई। पढ़ें लखनऊ से अम्बिका वाजपेयी की रिपोर्ट-

    विज्ञापन हटाएं सिर्फ खबर पढ़ें

    टिन के दरवाजे पर ताले की जगह रस्सी की गांठ और सामने बुझे चूल्हे के पास बेतरतीब पड़ी दो चार अधजली लकड़ियां...। किस्सा लखनऊ का है, यह तस्वीर देखकर कुर्सी रोड के सिकंदरपुर निवासी भू-स्वामी किशन कुमार को यकीन हो गया कि उनके प्लॉट पर बसी मजदूरों की बसती उजड़ने को है। लॉकडाउन में बेरोजगार हुए श्रमिक परिवार शहर छोड़कर जाने लगे हैं। तभी भागते हुए आए एक बच्चे ने दर्दनाक खबर सुनाई। पता चला कि साइकिल से छत्तीसगढ़ को निकले बस्ती का श्रमिक दंपती हादसे का शिकार हो गया है, जिससे दो मासूम अनाथ हो गए। आस-पास की झुग्गियों में भी यह खबर आग की तरह फैली। जो घर वापसी की तैयारी कर रहे थे, ठिठक उठे। लेकिन भूख और बेबसी उन्हें वापसी के लिए मजबूर कर रही थी। ऐसे समय में किशन कुमार सहारा बने। आश्वस्त किया कि किराया, भोजन और राशन की चिंता न करें। जान है तो जहान है...।

     

    किराया माफ करने तक तो ठीक था, लेकिन दर्जन भर परिवारों को रोकना और उनके खाने-पीने की व्यवस्था करना आसान नहीं था। पर उन्होंने कदम बढ़ाया तो पुलिस कर्मी मित्र जितेंद्र यादव हमकदम बन गए। जितेंद्र यादव ने जहां लॉकडाउन के दौरान अपनी ड्यूटी निभाई, वहीं श्रमिकों की मदद में भी भरपूर सहयोग किया। दोनों ने मिलकर मजदूर परिवारों को भोजन कराने के साथ ही विकास प्राधिकरण के कम्युनिटी किचन से भी व्यवस्था कराई। कार्ड न होने के बाद भी कोटेदार से थोड़ा बहुत राशन दिलाया और रही-सही कसर स्वयंसेवी संस्थाओं की मदद से पूरी कराई।

    संकट का समय बीत गया और अब मजदूरों के परिवार की महिलाओं के साथ पुरुष भी थोड़ा बहुत काम पर जाने लगे हैं। इधर, किशन कुमार यह सुनिश्चित करने में जुटे हुए हैं कि इन मजदूरों को फिर ऐसे किसी संकट में ऐसी पीड़ा न सहनी पड़े। मित्र जितेंद्र यादव के सुझाव पर वह मजदूरों का श्रम विभाग में पंजीकरण करा रहे हैं। इसी सिलसिले में राम प्रकाश सहित अन्य को लेकर वह नगर निगम पहुंचे थे।

    किशन कुमार

    राम प्रकाश ने बताया, राशन कार्ड न होने और पंजीकरण न कराने की गलती लॉकडाउन में भारी पड़ी। अब पंजीकरण हो गया है और जल्द ही राशन कार्ड भी बनवाऊंगा। कहा, किशन कुमार मुसीबत में मसीहा बनकर सामने आए। उनके प्लॉट पर ही हम झोपड़ी बनाकर रहते हैं। उन्होंने बिजली तक के पैसे नहीं लिए। इधर, किशन कुमार खुद को मसीहा कहने पर ऐतराज जताते हुए कहते हैं, हम भी इंसान हैं।दूसरे का दर्द देखकर आंखें मूंद लीं तो ऐसा जीना भी आखिर किस काम का...।

    हमारे लिए देवता...

    मैंने वापस जाने के लिए गृहस्थी बटोर ली थी, लेकिन साथी श्रमिक की मौत ने कदम रोक दिए। निराशा, भूख और बेरोजगारी के समय में किशन भैया ने परिवार की तरह हम लोगों का खयाल रखा। खाने-पीने का सामान देने के साथ ही मास्क और सैनिटाइजर भी दिया। किराया और बिजली बिल भी माफ कर दिया। अब पंजीकरण भी करा रहे हैं ताकि भविष्य में सरकारी मदद मिल सके। हमारे लिए वह मसीहा हैं।

    -संतोष मंडल, श्रमिक

    जीवन भर रहेंगे ऋणी...

    सब कुछ बंद होने के चलते कोई कमाई थी नहीं। चिंता यही थी कि किराया, बिजली का बिल और पेट भरने का इंतजाम कैसे होगा। बच्चों की चिंता ज्यादा थी। ऐसे समय में किशन और जितेंद्र भैया ने ढांढ़स बंधाते हुए सबको जाने से मना कर दिया। हम लोगों में तमाम निरक्षर हैं और सरकारी योजनाओं के बारे में जानकारी भी नहीं है। उन्होंने इसके बारे में बताया और पंजीकरण करा रहे हैं। अब धीरे-धीरे जिंदगी पटरी पर आ रही, लेकिन इन दोनों ने जो किया है, उसके ऋणी हम जिंदगी भर रहेंगे।

    -मिलन कुमार, श्रमिक

    सभ्य समाज का उदाहरण पेश किया...

    संकट के इस समय में सरकार हर जिम्मेदारी वहन करने की कोशिश कर रही है। जाहिर है कि तमाम सरकारी प्रयासों के बावजूद समाज की भागीदारी भी जरूरी है। महामारी के दौर में जो भी संस्थाएं या व्यक्ति इस तरह के कार्य कर रहे हैं, उन्होंने एक तरह सरकार के कंधे से कंधा मिलाकर समाज के कर्तव्य का निर्वहन किया है। यही एक सभ्य और सुसंस्कृत समाज का उदाहरण है। दैनिक जागरण का अभियान समाज के ऐसे ही लोगों को एक मंच प्रदान करता है। मैं दोनों महानुभावों को बधाई और शुभकामनाएं देता हूं।

    -डॉ. दिनेश शर्मा, उप-मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश

    जागरण की सोच को सलाम

    सामाजिक सरोकारों के प्रति दैनिक जागरण हमेशा से अग्रणी रहा है। राइजिंग इंडिया अभियान सराहनीय पहल है। सामाजिक सरोकारों के प्रति चैतन्य रहने वाले लोगों और संस्थानों के लिए यह अभियान एक संबल के रूप में काम करेगा। आपदा के समय जो भी संस्था या व्यक्ति आगे आकर देश के प्रति अपने कर्तव्य और जिम्मेदारियों का निर्वहन करता है, वो सराहनीय है। इन दोनों ने प्रवासी मजदूरों के लिए बहुत ही प्रशंसनीय कार्य किया। यह सभी के लिए प्रेरणादायी है।

    -अभिषेक प्रकाश, जिलाधिकारी लखनऊ

    अन्य पुलिस कर्मियों के लिए प्रेरणादायक

    पूरे लॉकडाउन में सभी पुलिसकर्मियों ने पूरे मनोयोग से योद्धा की भांति अपनी ड्यूटी निभाई। किसी भी पुलिसकर्मी को ड्यूटी के बीच अपने सामाजिक दायित्व की पूर्ति करते देखकर गर्व की अनुभूति होती है। जितेंद्र यादव ने अपनी ड्यूटी करते हुए प्रवासी मजदूरों की बेहतरी के लिए जो कदम उठाए हैं, वो काफी सराहनीय हैं। अन्य पुलिस कर्मियों के लिए यह कार्य एक प्रेरणा की तरह काम करेगा। मेरी तरफ से उन्हें बहुत-बहुत बधाई और शुभकामनाएं।

    -सुजीत पांडेय, पुलिस कमिश्नर लखनऊ

    जिन्हें नहीं मिला कोई मददगार...

    लखनऊ में तो इन 15 प्रवासी परिवारों को मसीहा मिल गया, जिसने इंसानियत की लाज रखी, लेकिन बाकियों को नहीं मिला, जिन्होंने भीषण कष्ट झेला, लंबी पदयात्राएं की, रेल से कटे, खाई में गिरे। अर्जुनगंज सरसवां गांव निवासी रंजीत पिछले दस साल से मुंबई स्थित विलेपार्ले नेहरू नगर में पत्नी और दो बच्चों के साथ किराए पर रह रहे थे। किराया और कमाई न होने पर वापस आना पड़ा। सरकार और मकान मालिक ने भी कोई मदद नहीं की।

    रंजीत ने बताया, मुंबई में रहने की व्यवस्था हो जाती तो हम वापस नहीं आते। अर्जुनगंज के निजामपुर मझिगवां गांव निवासी गोविंद गौतम गुजरात के अहमदाबाद के मॉल में काम करते थे। गोविंद का काम छूट गया और वो वापस अपने घर निजामपुर मझिगवां आ गए। गोविंद के मुताबिक, अगर हमें भी ऐसा मददगार मिल गया होता तो कष्ट सहकर यूं न आते। लॉक डाउन के बाद जैसे ही बंदी हुई, मॉल से हम लोगों को भगा दिया गया। वहां हमारी किसी ने भी कोई मदद नहीं की।

    आप भी दें योगदान- 

    जागरण के करोड़ों पाठकों के साथ ही जागरण डॉट कॉम, फेसबुक व इंस्टाग्राम प्लेटफार्म्स पर आप भी इस अभियान से जुड़ें और प्रेरणा भरी इन कहानियों को अधिकाधिक शेयर कर देश को नई ऊर्जा से भर देने में अपना अमूल्य योगदान दें। 

    (अस्वीकरणः फेसबुक के साथ इस संयुक्त अभियान में सामग्री का चयन, संपादन व प्रकाशन जागरण समूह के अधीन है।)