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श्रीराम संपूर्णता हैं और रामराज्य दुनिया की सभी राजव्यवस्थाओं में आदर्श धारणा है

रामराज्य की सरलतम व्याख्या है पुरुषोत्तम की व्यवस्था। श्रीराम शासन नहीं करते वे समाज को मंगल भवन अमंगल मुक्त करने के लिए र्दुिनवार दुख सहते हैं।

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 03:30 PM (IST)Updated: Sun, 02 Aug 2020 03:30 PM (IST)
श्रीराम संपूर्णता हैं और रामराज्य दुनिया की सभी राजव्यवस्थाओं में आदर्श धारणा है
श्रीराम संपूर्णता हैं और रामराज्य दुनिया की सभी राजव्यवस्थाओं में आदर्श धारणा है

हृदय नारायण दीक्षित। इतिहास मनुष्य जिजीविषा की पुरातन गाथा है। श्रीराम भी इतिहास के महानायक हैं लेकिन उनके इतिहास में पुरातन के साथ शील, आचार और मर्यादा के सनातन तत्व भी हैं। महर्षि वाल्मीकि समकालीन इतिहास में ही शाश्वत की जिज्ञासा करते हैं कि ‘इस समय लोक में गुणवान धीरवान वीर्यवान कौन है?’ मनुष्य के संकल्प, विकल्प, संवेग मन: संसार में घटते हैं। जो इतिहास में मनुष्य है वही वैदिक अनुभूति में पुरुष है। पुरुष विराट है, मनुष्य ससीम है। महर्षि वाल्मीकि पुरुष में पुरुषोत्तम का अनुसंधान व दर्शन करते हैं। इतिहास को मार्गदर्शी माना जाता है लेकिन वह पुरुष की जय पराजय का लेखा है। पुरुषोत्तम जय-पराजय से भिन्न शाश्वत का प्रवाह है। श्रीराम पुरुषोत्तम हैं, इतिहास में हैं। सनातन आदर्श हैं, भारत का मन संकल्प और संवेग हैं। वे सत्य हैं, शिव हैं, रूप माधुर्य में सर्वोत्तम सुंदर हैं। उनमें सूर्य का तप है। चंद्र की शीतल आभा है। विष्णु की परंपरा का प्रवाह है। राग-विराग से युक्त संपूर्ण मनुष्य। राग-विराग से मुक्त संपूर्ण तपस्वी। मर्यादा का पालन अनुशासित प्रजा की तरह करते हैं और राजा के कर्तव्य का पालन निर्मम तपस्वी की तरह। श्रीराम संपूर्णता हैं। रामराज्य दुनिया की सभी राजव्यवस्थाओं में आदर्श धारणा है।

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उत्तम में सर्वोत्तम

रामराज्य अर्थात् पुरुषोत्तम की व्यवस्था। पुरुषोत्तम श्रीराम शासन नहीं करते। वे समाज को मंगल भवन, अमंगल मुक्त करने के लिए दुर्निवार दुख सहते हैं। तपते हैं भीतर-भीतर दग्ध होते हुए। श्रीराम स्वयं राज्य के इच्छुक नहीं हैं। राज्य के इच्छुक होते तो राज्यारोहण के प्रस्ताव के बाद कैकेयी प्रेरित दशरथ की वनगमन आज्ञा से इंकार कर देते लेकिन उनके सामने दशरथ राजा नहीं, पिता थे। राजा की बात टाली जा सकती है। पिता की आज्ञा का पालन भारत के शाश्वत अधिष्ठान से जुड़ा है इसलिए परमवीर होकर भी श्रीराम ने पिता की आज्ञा पालन का धर्म निभाया। श्रीराम का वनगमन सनातन पथ, शील और आदर्श का पालन है। वाल्मीकि रामायण (अयोध्याकांड) में कौशल्या पुत्र श्रीराम को वनगमन का आशीष देते कहती हैं, ‘राम! हम तुम्हें रोक नहीं सकते लेकिन ध्यान रखना कि तुम सद्मार्ग पर ही चलोगे। उस मार्ग पर, जिस पर सद्पुरुष चलते आए हैं।’ वनगमन भी सनातन मार्ग का अनुसरण है। कौशल्या के आशीष में महत्वपूर्ण है ‘धर्म मार्ग की प्रतिबद्धता और धर्म का आचरण ही श्रीराम का रक्षाकवच होना।’ वनगमन में समाज की आसुरी शक्तियों से संघर्ष है। भाई भरत के साथ राज्य व्यवस्था के सूत्रों पर वार्ता है। रावण और उसकी सेना से युद्ध है। श्रीराम यह युद्ध विजय प्राप्ति के लिए नहीं लड़ते। सत्य शील की प्रतिष्ठा के लिए ही वे युद्ध का भाग बनते हैं।

सत्य मार्ग के प्रदर्शक

ऋग्वेद में अनेक देवता हैं। सभी देव ‘ऋत-नियम’ पालन से शक्ति पाते हैं। कौशल्या के आशीष में नियम पालन की दृढ़ता है। मर्यादा पालन में पुत्र की सफलता के लिए कौशल्या वैदिक देवों का स्मरण करती हैं। वे कहती हैं, ‘पुत्र! पर्वत तुम्हारी रक्षा करें, जल, वनस्पति और हाथी, सिंह तुम्हारी रक्षा करें। दिवस, मास, संवत्सर, सूर्य, चंद्र रक्षा करें। तुम्हारे द्वारा पढ़ा गया प्राचीन ज्ञान कल्याण करे।’ पढ़े-सुने सत्वचनों का आचरण सिद्ध होना ही सनातन अभिलाषा है। श्रीराम के लिए सत्य, शील और मर्यादा का पालन ही श्रेय है, यही उनका प्रेय भी है। सुने गए सत्य का आचरण और स्वयं बोले गए कथन के प्रति प्राणबद्धता श्रीराम का आचरण है। प्राणोत्सर्ग भले ही हो, परंतु वचन भंग न हो। मनुष्य का श्रेष्ठ पुरुष से महापुरुष होना एक संघर्षपूर्ण यात्रा है। कठिन है, लेकिन असंभव नहीं। श्रीराम-पुरुष का पुरुषोत्तम होना, अग्नि स्नान के ताप में दग्ध होकर मर्यादा सिद्ध होना-मानव इतिहास की पहली घटना है। श्रीराम के जीवन में तमाम द्वंद्व आते हैं लेकिन मन में मार्ग को लेकर कोई संशय नहीं। पूर्वजों ने धर्म का मार्ग तय कर रखा है। वे तमाम दुख सहते हैं। ऋत सत्य पर दृढ़व्रती बने रहते हैं।

संभव हुए असंभव

श्रीराम के जीवन में अनेक असंभव संभव हैं। साधारण मानव चेतना असंभव पर विश्वास नहीं करती। संभवन परम चैतन्य की ही घोषणा है-यदा यदा हि धर्मस्य ग्लानिर्भवति भारत/...धर्मसंस्थापनार्थाय संभवामि युगे युगे। श्रीरामचरितमानस में धर्म की ग्लानि का वर्णन है - ‘अतिशय देखि धर्म कै ग्लानी/परम सभीत धरा अकुलानी।’ पृथ्वी धर्म की ग्लानि से व्याकुल हो गई। देवताओं के पास गई - ‘निज संताप सुनाएसि रोई।’ तब सारे देवता ब्रह्मा के पास गए। शिव ने पार्वती को बताया कि इस शिष्ट मंडल में वे भी थे, ‘तेहि समाज गिरिजा मैं रहेऊं।’ ब्रह्मा ने परम चेतन का आह्वान किया। आकाशवाणी हुई ‘गगन गिरा गंभीर भई, हरनि शोक संदेश।’ घोषणा हुई ‘सूर्यवंश में आऊंगा, पृथ्वी का शोक नष्ट करूंगा।’ यहां परम चैतन्य सूर्यवंश में प्रकट होता है। कॉपरनिकस (1473-1543) ने सूर्य को ब्रह्मांड का केंद्र बताया था। ऋग्वेद में सूर्य सविता देव हैं। गायत्री मंत्र में सविता से ज्ञान मांगा गया है। श्रीराम भी सूर्यवंश में प्रकट होते हैं। स्वयं तपते हैं, उबलते हैं। दग्ध होते है। उनकी अग्नि का ईंधन अमर -अजर है। स्वयं जलना, तपना और अखिल लोकदायक विश्रामा होना श्रीराम के लिए ही संभव है।

चेतन संपन्न अनुकरणीय गाथा

इतिहास के कोष में ढेर सारा भूत होता है। कुछ करणीय होता है, कुछ अकरणीय होता है और कुछ अनुकरणीय। इतिहास का चेतन संपन्न अनुकरणीय तत्व गाथा बनता है। पुराण हो जाता है। चेतन संपन्न तत्वों वाला महानायक सबको खींचता है, सींचता भी है। महानायक पर काव्य लिखे जाते हैं। स्तुति वाचन होते है। वह मनुष्य होकर भी देव हो जाता है। लोक उसके गीत गाता है। शास्त्र उसकी प्रशंसा में मंत्र गाते हैं। यह अविश्वसनीय मिथक जैसा होकर भी हमारे समाज के शिव संकल्प-संवेग को गति देता है। श्रीराम इतिहास के ऐसे ही विरल महानायक हैं। वे सुकुमार राजकुमार की छवि में मोहित करते हैं। वे वनवासी होकर आश्चर्यचकित करते हैं। वे आदर्श राजव्यवस्था चलाते है। गांधी जी के प्राणों में यही रामराज्य था। जैसे असंभव महानायक श्रीराम, वैसा ही आश्चर्यजनक श्रीराम का राज्य। रामराज्य के लोकतंत्र में विद्वानों के परामर्श और समितियां है। जनचर्चा वाली शिकायतें भी स्वयं श्रीराम ही जांचते हैं। सीता का त्याग ऐसी ही सामान्य लोकचर्चा का परिणाम था।

प्रकृति भी जिनके आधीन

राम राज्य और लोकमंगल पर्यायवाची हैं। यह राज्य संसार की सभी राजव्यवस्थाओं के आदर्श का मधु-सार है। तुलसी के विवरण में लता, वृक्ष इच्छानुसार मधु देते है और गाय दूध देती हैं, ‘लता विटप मांगे मधु चवही/मन भावतो धेनु पय स्रवहीं।’ इस विवरण में पृथ्वी अपने गर्भ से बहुमूल्य धातुएं देती है। सुनामी नहीं है। समुद्र मर्यादा में रहते हैं, वे लहरों से तट पर रत्न डालते हैं। लोक को हर तरह से सुखी करना राज कर्तव्य है। रामराज्य में ‘दैहिक, दैविक भौतिक कष्ट’ नहीं है। इस राज्य में गैर बराबरी नहीं है-राम प्रताप विषमता खोई। प्रकृति की शक्तियां भी धर्म पालन करती हैं। बादल आवश्यकतानुसार वर्षा करते है। ग्लोबल वॉर्मिंग नहीं है। सूर्य आवश्यकतानुसार ही तपते हैं-रवि तप जेतनहि काज।

राम राज्य राष्ट्र की अभीप्सा है। भारतीय स्वप्न! इस स्वप्न में लोक आनंद के सभी उपकरण मर्यादा में हैं। यह मर्यादा पुरुषोत्तम का राज्य है। रामराज्य भारतीय इतिहास की सर्वाधिक आह्लादकारी स्मृति है। यही स्मृति भविष्य के समृद्ध भारत की प्रेरणा हो सकती है। श्रीराम जी कृपा करें, रामराज्य के सभी अनुषंग पूरे हों।

(लेखक उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष हैं)


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