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जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पर लोकसभा की मुहर

कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे और माकपा के मोहम्मद सलीम ने इस प्रस्ताव को महत्वपूर्ण बताते हुए इस पर चर्चा की मांग की।

By Ravindra Pratap SingEdited By: Published: Fri, 28 Dec 2018 10:40 PM (IST)Updated: Fri, 28 Dec 2018 10:40 PM (IST)
जम्मू-कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पर लोकसभा की मुहर

जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। कश्मीर में राष्ट्रपति शासन पर लोकसभा ने मुहर लगा दी है। हालांकि यह कुछ नाटकीय अंदाज में हुआ। शोर-शराबे के बीच जब यह प्रस्ताव आया तो विपक्ष खोया हुआ था। चर्चा की मांग नहीं की। और ध्वनिमत से ही प्रस्ताव पारित हो गया। फिर शून्यकाल भी शुरू हो गया और लगभग बीस मिनट बाद विपक्ष को होश आया कि ऐसे अहम मुद्दे पर चर्चा तो करनी चाहिए थी।

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कांग्रेस की ओर से मल्लिकार्जुन खड़गे और माकपा के मोहम्मद सलीम ने इस प्रस्ताव को महत्वपूर्ण बताते हुए इस पर चर्चा की मांग की। राजनाथ सिंह ने भी कहा कि वे चर्चा के लिए तैयार हैं। सुमित्रा महाजन ने प्रस्ताव के पारित होने के बाद चर्चा की अनुमति देते हुए कहा कि इसे अपवाद माना जाए और विशेष परिस्थिति में सदस्यों को विचार रखने का मौका दिया जा रहा है।

विपक्षी सदस्यों ने बोमई केस पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले और सरकारिया आयोग की रिपोर्ट का हवाला देते हुए राष्ट्रपति शासन लागू करने की सरकार की मंशा पर सवाल उठाया। विपक्ष ने राज्य में जल्द-से-जल्द चुनाव कराकर राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने की मांग की। सरकार की ओर गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने साफ कर दिया कि सरकार नहीं बन पाने के कारण राष्ट्रपति शासन लगाना तकनीकी मजबूरी थी और भाजपा किसी भी समय चुनाव के लिए पूरी तरह तैयार है।

विपक्ष की ओर से चर्चा की शुरूआत करते हुए शशि थरूर ने कहा कि पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की सरकार गठन को रोकने के लिए आनन-फानन में विधानसभा भंग किया गया और राष्ट्रपति शासन लगाया गया। उनका कहना था कि बोमई केस में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से लेकर सरकारिया आयोग की रिपोर्ट तक में स्पष्ट तौर कहा गया है कि बहुमत का फैसला सिर्फ विधानसभा के पटल पर हो सकता है। लेकिन सरकार ने इसे नहीं होने दिया।

नेशनल कांफ्रेस की ओर से फारूख अब्दुल्ला और माकपा की ओर से मोहम्मद सलीम ने भी घाटी में जल्द चुनाव कराकर राजनीतिक प्रक्रिया बहाल करने की जरूरत बताई। सपा की ओर से मुलायम सिंह यादव ने भी बातचीत की जरूरत पर बल दिया। वहीं शिवसेना और बीजद ने राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव का समर्थन किया। जम्मू-कश्मीर से भाजपा के वरिष्ठ नेता और केंद्रीय मंत्री जितेंद्र सिंह ने राष्ट्रपति शासन को सही ठहराते हुए कहा कि पंचायत चुनावों में भाजपा की भारी जीत से घबड़ा कर सरकार बनाने की कोशिश शुरू हुई थी। जितेंद्र सिंह ने आरोप लगाया कि जम्मू-कश्मीर में अलगाववादियों से ज्यादा खतरनाक खेल पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस जैसी पार्टियां खेल रही हैं।

विपक्ष की आपत्तियों का जवाब देते हुए राजनाथ सिंह ने साफ किया कि सरकार नहीं पाने की मजबूरी के कारण पहले राज्यपाल शासन और फिर राष्ट्रपति शासन लागू करना पड़ा। उनके राज्यपाल शासन लागू करने से पहले कांग्रेस, नेशनल काफ्रेंस और पीडीपी सभी ने सरकार बना पाने में अपनी असमर्थता जाहिर की थी। विपक्षी सदस्यों ने इसका विरोध करते हुए कहा कि राष्ट्रपति शासन के पहले पीडीपी, कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेस की सरकार बनने वाली थी।

फारूख अब्दुला ने बताया कि नेशनल कांफ्रेस और कांग्रेस पीडीपी को बाहर से समर्थन देने को तैयार थे। लेकिन राज्यपाल भवन में फैक्स मशीन बंद होने के कारण प्रस्ताव को नहीं भेजा सका था। विपक्ष ओर से राज्यपाल सत्यपाल मलिक के बयान का जिक्र किया गया, जिसमें उन्होंने सज्जाद लोन को मुख्यमंत्री बनाने की केंद्र की मंशा का जिक्र किया था। लेकिन राजनाथ सिंह का कहना था कि ऐसा कोई भी प्रस्ताव नहीं आया था और खुद मलिक अखबार में छपी इस खबर का खंडन कर चुके हैं। राजनाथ सिंह ने राज्यसभा में विपक्ष के नेता गुलाम आजाद की बयान का भी उल्लेख किया जिसमें सरकार गठन की प्रक्रिया में कांग्रेस नहीं शामिल होने का दावा किया गया था।


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