लॉकडाउन ने दी बड़ी सीख, अब घर पर ही रहकर स्थायी रोजगार जमाने में लगे छत्तीसगढ़ के प्रवासी श्रमिक
अधिक लाभ कमाने की आस में अन्य प्रदेशों में जाने वाले मजदूर जागरूकता के अभाव में वहां भी दलालों के चक्कर में पड जाते हैं।
पूनम दास मानिकपुरी, कोंडागांव। सरकार द्वारा मनरेगा जैसे तमाम शासकीय योजनाओं के संचालन के बाद भी अशिक्षा, गरीबी व जागरूकता के अभाव के कारण गांव में कृषि मजदूरी करना छोड़ दलालों के जाल में फंस कर अधिक पैसे कमाने के लालच में शहरों व अन्य प्रदेशों की ओर पलायन कर जाते थे। हर साल यही सिलसिला चलता था, जिसकी वजह से ग्रामीण उपक्रमों और कृषि का काम पीछता जा रहा था, लेकिन इस साल काेरोना संक्रमण की वजह से हुए लॉकडाउन ने इन प्रवासी मजदूरों को बड़ी सीख दी है।
अब इनकी सोच बदल गई है और बाहर कमाने- खाने के लिए जाने की बजाय यह अब स्थायी रोजगार के साथ अपने गांव में ही स्थायी तौर पर बसने की तैयारी कर रहे हैं। प्रवासी मजदूर अब गांव पहुंच कर नए सिरे से जिंदगी संवारने में जुटे हैं। बाहर से कमा कर लाए गए पैसों से किसी ने खेत में बोर खुदवाया तो कोई मोटरसाइकिल खरीद कर अब दुकान खोलने की राह में हैं। प्रवासी मजदूरों को कोरोना लॉकडाउन ने गांव की मिट्टी की कीमत का एहसास करा ही दिया है। अब बडे- बुजुर्गों की कही बात- 'घर की खेती- अपन सेती' सही साबित हो रही।
लॉकडाउन के दौरान शहरी क्षेत्रों में फंस गए थे मजदूर
अधिक लाभ कमाने की आस में अन्य प्रदेशों में जाने वाले मजदूर जागरूकता के अभाव में वहां भी दलालों के चक्कर में पड़ जाते हैं। अशिक्षित मजदूरों को दलाल मोटी रकम लेकर उन संस्थाओं को सौंप देते हैं जहां मजदूरों की जरूरत होती है। उनमें से कई मजदूरों को मजदूरी मिलती है तो कई को भरपेट भोजन व मजदूरी भी नसीब नहीं होती। मजदूर बंधक की तरह बोर खनन, ईट भट्ठा व अन्य उद्योगों में झोंक दिए जाते हैं। कोरोना लॉकडाउन के कारण बीते 3 महीनों तक तमाम उद्योग धंधे बंद रहे। उन जगहों में कार्य करने वाले मजदूर बेरोजगार होकर लॉकडाउन के कारण फंसे हुए थे। जैसे- तैसे उन्होंने घर वापसी की और फिर क्वारंटाइन सेंटरों में रहने के बाद अब अपने घर पहुंचे हैं। लॉकडाउन के चलते अन्य प्रदेशों में फंसकर परेशान हुए मजदूर अपनी जमीन में पहुंच कर खुद को खुशनसीब मान रहे हैं और अब यहीं रहकर स्थायी रोजगार करना चाहते हैं।
6 महीने पहले मजदूरी के लिए गए थे तमिलनाडु
कोंडागांव जिला अंतर्गत ग्राम मारागांव निवासी लखनलाल चक्रधारी, रामधर , खेमसिंग, सगे सहित अन्य प्रवासी मजदूरों ने बताया कि 6 महीने पहले मजदूरी करने तामिलनाडु गए थे। कोरोना संक्रमण के भय से गांव वापस लौटे हैं। उनका कहना है कि भले कम पैसा कमाएंगे, लेकिन लॉकडाउन खत्म होने के बाद गांव में रहकर कृषि मजदूरी करेंगे। मजदूरी करने बड़े शहरों व दूसरे प्रदेशों में नहीं जाएंगे।
प्रवासी मजदूर लखनलाल चक्रधारी ने बताया 81 हजार रुपये लेकर गांव वापस आया और घर में बोर खुदवाया हूं। अब घर के 2 एकड़ खेत में फसल लगाने के साथ कृषि मजदूरी ही करूंगा। वहीं सगराम ने प्रवासी पैसों से खेत जोतने के लिए भैंस जोड़ी खरीदने की बात बताई। रामधर ने दोबारा बड़े शहरों की ओर काम करने न जाकर गांव में ही किराना खोलने का निर्णय लिया और इसी सोच के साथ एक मोटरसाइकिल भी खरीदी है, जिसकी मदद से वे दुकान का सामान नजदीक के शहर से लेकर आ सकेंगे।