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    '27 साल जेल नें रहना मृत्युदंड के समान...', SC ने 96 वर्षीय दोषी को रिहा करने का किया समर्थन; पढ़ें क्या है पूरा मामला

    By Agency Edited By: Babli Kumari
    Updated: Wed, 10 Apr 2024 10:35 AM (IST)

    Supreme Court Verdict उच्चतम न्यायालय ने सोमवार को राजस्थान में 1993 के ट्रेन विस्फोट मामले में आजीवन कारावास की सजा काट रहे 96 वर्षीय बीमार दोषी को सजा में छूट देने का समर्थन किया है। 96 वर्षीय दोषी हबीब अहमद खान ने अपनी बिगड़ती स्वास्थ्य स्थिति और उम्र को देखते हुए स्थायी पैरोल की मांग करते हुए शीर्ष अदालत का रुख किया था।

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    सुप्रीम कोर्ट ने 96 वर्षीय दोषी को रिहा करने का किया समर्थन (फाइल फोटो)

    पीटीआई, नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने राजस्थान में 1993 में हुए ट्रेन विस्फोट के मामले में उम्रकैद की सजा काट रहे और वर्तमान में पैरोल पर जेल से रिहा 96 वर्षीय एक दोषी की सजा में छूट का समर्थन करते हुए सोमवार को कहा कि लगातार कैद में रखना ‘‘मृत्युदंड के समान’’ है। हबीब अहमद खान ने अपना स्वास्थ्य बिगड़ने और वृद्धावस्था का हवाला देते हुए स्थायी पैरोल देने के अनुरोध के साथ शीर्ष अदालत का रुख किया था।

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    न्यायमूर्ति अभय एस ओका और न्यायमूर्ति उज्जल भुइयां की पीठ ने राजस्थान सरकार से उनके मामले पर मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से विचार करने को कहा। खान के वकील ने कहा कि वह 27 साल से अधिक समय जेल में रहा, जिसके बाद उसे तीन बार पैरोल दी गई। तीसरी पैरोल अब इस न्यायालय द्वारा समय-समय पर विस्तारित की जा रही है। पीठ ने खान की मेडिकल रिपोर्ट का अवलोकन किया और राजस्थान सरकार से पूछा कि इस समय उसे जेल में रखने से किस उद्देश्य की पूर्ति होगी।

    'निरंतर कारावास में रहना मृत्युदंड के समान'

    पीठ ने राज्य सरकार की ओर से न्यायालय में पेश हुए अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल विक्रमजीत बनर्जी से कहा, ‘‘जरा उसकी मेडिकल रिपोर्ट देखिए, वह कहां जाएगा। हां, उसे आतंकी कृत्य के लिए दोषी ठहराया गया था लेकिन उसे मौत की सजा नहीं सुनाई गई थी। निरंतर कारावास में रहना उसके लिए मृत्युदंड के समान है।’’

    पीठ ने बनर्जी से उसकी सजा में छूट पर विचार करने और मामले पर मानवाधिकारों के दृष्टिकोण से विचार करने को कहा। न्यायमूर्ति भुइयां ने कहा कि 96 साल की उम्र में खान सिर्फ अपने (जीवन के शेष) दिन गिन रहा है और कानून इतना असंवेदनशील नहीं हो सकता। पीठ ने बनर्जी को राज्य सरकार से इस बारे में निर्देश लेने को कहा कि क्या खान को सजा में छूट या स्थायी पैरोल दी जा सकती है और विषय को दो सप्ताह बाद के लिए सूचीबद्ध कर दिया।

    1993 के ट्रेन विस्फोट मामले में हुआ था गिरफ्तार

    खान को 1993 में हुए सिलसिलेवार ट्रेन विस्फोटों के सिलसिले में 1994 में गिरफ्तार किया गया था। इसके बाद, 2004 में अजमेर की एक अदालत ने आतंकवादी और विघटनकारी गतिविधियां (रोकथाम) अधिनियम (टाडा) के तहत उसे एवं 14 अन्य को दोषी करार दिया था। शीर्ष अदालत ने खान की दोषसिद्धि और आजीवन कारावास की सजा को 2016 में बरकरार रखा था। शीर्ष अदालत द्वारा 2021 में पैरोल दिए जाने से पहले खान जयपुर जेल में बंद था।

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