टैंक का गोला-बारूद बेचने के मामले में ले. कर्नल का कोर्ट मार्शल खारिज, जानिए क्या है मामला
सेना का गोला बारूद बेचने में सजा काट रहे लेफ्टिनेंट कर्नल के कोर्ट मार्शल की सजा को सैन्य ट्रिब्यूनल ने खारिज कर दिया है। बिना जांच के कार्रवाई पर सैन्य प्रशासन को फटकार लगाई है।
नई दिल्ली, एएनआइ। सेना का गोला बारूद बाहर के लोगों को बेचने के मामले में जेल में बंद पद से बर्खास्त लेफ्टिनेंट कर्नल का कोर्ट मार्शल की सजा एक सैन्य अदालत ने खत्म कर दी है। कोर्ट ने लेफ्टिनेंट कर्नल की बिना जांच के फंसाये जाने की बात मानते हुए सैन्य प्रशासन को फटकार भी लगाई है। साथ ही उन्हें सेना में वर्ष 2014 के अनुरूप उनकी सेवाएं बहाल करने का आदेश दिया है।
सात साल की हुई थी सजा
आर्मी आर्डिनेंस कॉर्प के ले.कर्नल एस.चंद्रा पर मध्यप्रदेश के जबलपुर के पास एक आर्मी आर्डिनेंस डिपो टैंक का गोला-बारूद 41 लाख रुपये में सेना के बाहर आम बाजार में बेचने का आरोप था। एक जनरल कोर्ट मार्शल के जरिए उन्हें सेना की सेवा से बर्खास्त कर दिया गया था और उन्हें सात साल की जेल की सजा दी गई थी। उन्होंने सशस्त्र सेनाओं के ट्र्ब्यूिनल में इसके खिलाफ अपील की थी।
जांच क्यों नहीं हुई
ट्रिब्यूनल ने अकेले ले.कर्नल चंद्रा को ही आरोपित बनाने पर, आम नागरिकों को बेचे गए गोला-बारूद को हासिल करने और खरीददारों का पता नहीं लगाने पर सैन्य प्रशासन की मंशा पर शक जाहिर किया है। साथ ही ही सैन्य प्रशासन को कोई कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी या कोई जांच नहीं बैठाने पर भी जमकर फटकारा है। जस्टिस एसवीएस राठौर और एयर मार्शल बीबीपी सिन्हा की ट्रिब्यूनल खंडपीठ ने कहा, 'कोर्ट ऑफ इन्क्वायरी जरूरी थी, लेकिन इसके लिए कोई आदेश नहीं दिया गया।
जब कर्नल के पास अधिकार ही नहीं तो जिम्मेदार क्यों
ट्रिब्यूनल की खंडपीठ ने कहा कि बिना कोई सुबूत जमा किए सारी जिम्मेदारी ले.कर्नल पर डाल दी गई, जोकि सिर्फ एक अफसर था और उसके पास डिपो के मुख्य अफसरों वाले अधिकार नहीं थे।' आम नागरिकों को सेना के टैंक का गोला-बारूद नवंबर के दूसरे और तीसरे हफ्ते में बेचा गया। फैसले के मुताबिक उस समय ऑर्डिनेंस डिपो के कमांडेंट ब्रिगेडियर गिरिराज सिंह थे, जो उस समय अस्थाई काम के लिए कोलकाता में थे। जबकि गोला-बारूद की महिला ऑफिसर-इंचार्ज को किसी काम से कहीं और भेजा गया था।ब्रिगेडियर गिरिराज सिंह बतौर लेफ्टिनेंट जनरल रिटायर हो चुके हैं और वह एक मेजर जनरल के छेड़छाड़ के मामले में जनरल कोर्ट मार्शल के प्रमुख भी रह चुके हैं।
बाकी पर रहम क्यों
कोर्ट ने सेना से यह भी पूछा कि जब आरोपित अफसर पर आरोप लगाया गया था कि उसने इस अपराध में अन्य अफसरों को भी बरगला कर उनकी मदद ली थी, तो केवल उसे ही क्यों जिम्मेदार ठहराया गया। अन्य लोगों के खिलाफ कोई जांच क्यों नहीं हुई।
कोर्ट ने माना कि कर्नल को जानबूझ कर फंसाया गया
कोर्ट ने लेफ्टिनेंट कर्नल की इस बात से सहमति जताई की कि कोई जांच जानबूझकर नहीं बैठाई गई ताकि सेना में उच्च पदों पर बैठे लोगों को बचाया जा सके। कोर्ट ने कहा कि हम बचाव पक्ष की इस दलील का समर्थन करते हैं। आम नागरिक इस मामले में असलियत सामने लाने में सबसे सही लोग होते। वह बता सकते थे कि उन्हें किसने वह गोला-बारूद बेचा या इस बारे में उनसे किसने बात की।
बाहर की यूनिट से अाया था इसलिए फंसाया
कोर्ट ने कहा कि ले.कर्नल को जानबूझकर फंसाया गया क्योंकि वह डिपो के बाहर की किसी यूनिट से आए थे। कोर्ट ने यह भी कहा कि जब यह जानकारी तत्कालीन कमांडेंट ब्रिगेडियर को दी गई तो वह जांच बैठाने से बचे।
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