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आइए चलते हैं यादों में बसे स्टीम इंजन को लेकर एक अनूठे सफर पर...

आज भले ही हम बिजली और डीजल के शक्तिशाली रेलवे इंजन देख रहे हों, लेकिन 1960 एवं 1970 के दशक में भाप इंजन ही भारतीय रेल की रीढ़ हुआ करते थे।

By Sanjay PokhriyalEdited By: Published: Sat, 11 Aug 2018 03:23 PM (IST)Updated: Sat, 11 Aug 2018 03:32 PM (IST)
आइए चलते हैं यादों में बसे स्टीम इंजन को लेकर एक अनूठे सफर पर...
आइए चलते हैं यादों में बसे स्टीम इंजन को लेकर एक अनूठे सफर पर...

नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। भारतीय रेलवे ने 15 अगस्त, 1947 को अमेरिका से पहली बार ‘आजाद’ नामक भाप का इंजन मंगाया था। उसकी याद में इस वर्ष अप्रैल में नई दिल्ली से पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन के बीच ‘आजाद’ को दोबारा पटरियों पर दौड़ाया गया। आने वाले दिनों में रेलवे एक बार फिर अपने कई पुराने भाप इंजनों को नई साज-सज्जा के साथ चलाने की तैयारी में है। इसके लिए कुछ लोकप्रिय इंजनों को तैयार कर लिया गया है। आज भले ही हम बिजली और डीजल के शक्तिशाली रेलवे इंजन देख रहे हों, लेकिन 1960 एवं 1970 के दशक में भाप इंजन ही भारतीय रेल की रीढ़ हुआ करते थे।

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सुल्तान फिल्म में नजर आ चुके इस अकबर इंजन के परिचालन की है तैयारी

आज इन धरोहर इंजनों को देश के अलग-अलग लोको शेड्स या रेल म्यूजियम में देखा जा सकता है। इसमें खास पहचान रखने वाला हरियाणा स्थित रेवाड़ी हेरिटेज स्टीम लोको शेड प्रमुख है। यहां कई बॉलीवुड फिल्मों, जैसे ‘गुरु’,‘गांधी-माई फादर’,‘रंग दे बसंती’,‘गदर एक प्रेम कथा’,‘भाग मिल्खा भाग’,‘1942-ए लव स्टोरी’,‘सुल्तान’ आदि की शूटिंग हुई है। इनमें दर्शकों को पर्दे पर भाप इंजनों को देखने का मौका मिला था। दो साल पहले सलमान खान खुद रेवाड़ी लोकोशेड में ‘सुल्तान’ फिल्म की शूटिंग करने पहुंचे थे। वहां दो दिन तक उन्होंने ऐतिहासिक भाप इंजन ‘अकबर’ के साथ दौड़ लगाई थी। दोस्तो, चितरंजन लोको वक्र्स में निर्मित ‘अकबर’ नामक इंजन को पहली बार 1965 में चलाया गया था।

ब्रिटेन से आए सुल्तान ने खींची थी पहली पैसेंजर ट्रेन

भारतीय रेल के सवारी इंजन का यह एक मानक उदाहरण है, जो 110 किमी. प्रति घंटा की गति से चल सकता है। एक्सप्रेस ट्रेनों को चलाने में इसका उपयोग किया जाता रहा है। इसी इंजन को फिलहाल दिल्ली के फारुखनगर से गढ़ी हरसरू स्टेशन के बीच चलाने की तैयारी है यानी 11 किलोमीटर की इस दूरी के बीच लोगों को एक बार फिर से ट्रेन की छुक-छुक की आवाज और तेज सीटी सुनने का मौका मिलेगा। इतना ही नहीं, दिल्ली के पास रेवाड़ी लोको शेड में मौजूद 12 भाप इंजनों में से 6 को दुरुस्त कर चलने लायक बनाया गया है, जो आने वाले दिनों में पटरियों पर दौड़ते दिखेंगे।

फेयरी क्वीन का रोमांच

आज भाप इंजनों को देखने का अपना एक अलग रोमांच है। शायद यही कारण है कि बीते वर्ष भी दिल्ली कैंट से रेवाड़ी के बीच विश्व की सबसे पुराने स्टीम इंजन ‘फेयरी क्वीन’ का सफल परिचालन हुआ था। इसके अलावा, चेन्नई में दुनिया के एक और सबसे पुराने भाप इंजन ‘ईआइआर-21’ का ‘धरोहर परिचालन’ शहर के एग्मोरे एवं कोडमबक्कम रेलवे स्टेशनों के बीच किया गया था। यह भी देखने में ‘फेयरी क्वीन’ की तरह ही है, जिसका पहला धरोहर परिचालन 15 अगस्त, 2010 को स्वतंत्रता दिवस के मौके पर हुआथा। इसका निर्माण 1855 में हुआ था।

15 अगस्त, 2010 को चेन्नई में हुआ था ईआइआर-21 का धरोहर परिचालन

हालांकि, साल 1909 में इसे सेवा से मुक्त करने के बाद पश्चिम बंगाल के हावड़ा स्टेशन पर प्रदर्शनी के लिए रखा गया। दूसरी ओर,‘गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड्स’ में शामिल हो चुकी ‘फेयरी क्वीन’ अब भी चालू हालत में है। यह 30 से 50 किलोमीटर प्रति घंटा की रफ्तार से चलती है। इसके इंजन में पानी के टैंक की क्षमता मात्र तीन हजार लीटर है।

शहंशाह बन गया आजाद

रेवाड़ी में अकबर का एक साथी भाप इंजन भी है ‘डब्ल्यूपी 7200’। यह कहीं अधिक पुराना है। इसे 1947 में बॉल्डविन लोकोमोटिव वक्र्स ने बनाया था। पहले इसे हावड़ा में रखा गया। बाद में 15 अगस्त, 1947 को इस इंजन को भारतीय रेल को तोहफे में दे दिया गया। हालांकि यह भारत अक्टूबर 1947 में पहुंचा। शुरुआत में इसे ‘शहंशाह’ का नाम दिया गया था, लेकिन देश की आजादी के दिन मिलने के कारण इसे ‘आजाद’ नाम दिया गया। ब्रॉड गेज के इस इंजन को 1993 में दिल्ली स्थित नेशनल रेल म्यूजियम में रखा गया।

 

वर्तमान में यह इंजन रेवाड़ी स्थित स्टीम हेरिटेज लोको शेड में चालू हालत में तैयार खड़ा है। समय-समय पर इसका ट्रायल होता है। देश में पुराने भाप इंजनों को दुरुस्त करने का सबसे बड़ा केंद्र रेवाड़ी में है। यहां ऐसे विशेषज्ञ मौजूद हैं जो पुराने कलपुर्जों को हाथ से तैयार करके इंजन को चलने लायक बना देते हैं। उत्तर रेलवे के प्रवक्ता नितिन चौधरी के अनुसार, कोशिश है कि भाप इंजनों को पटरी पर दौड़ाने की योजना को 25 अगस्त तक अमली जामा पहना दिया जाए।

रेल म्यूजियम में जानें रेलों का इतिहास

दिल्ली के चाणक्यपुरी में स्थित है नेशनल रेल म्यूजियम। इस संग्रहालय को 1 फरवरी, 1977 को आम जनता के लिए खोला गया था। इसका निर्माण ब्रिटिश वास्तुकार एम जी सेटो ने 1957 में किया था। यहां एक छोटी रेलगाड़ी चलती है, जिससे म्यूजियम का पूरा चक्कर लगाया जा सकता है। आप यहां पर रेल रेस्टोरेंट और बुक स्टॉल का आनंद भी ले सकते हैं।

हावड़ा रेल संग्रहालय में पूर्वी भारत की रेलवे प्रणाली के विकास की विरासत को संरक्षित रखा गया है। यहां 150 वर्ष से भी अधिक पुराने भाप के इंजन व उनके रेल डिब्बे, पुरानी तस्वीरें व पुराने रेल दस्तावेज हैं।

राष्ट्रीय रेल संग्रहालय के बाद मैसूर रेल म्यूजियम की स्थापना वर्ष 1979 में हुई थी। इसमें रखी गई यादगार वस्तुएं पूर्व में कभी मैसूर राजमहल की शान में चार चांद लगाती थीं।

मैसूर स्थित रेल म्यूजियम में भी लोकोमोटिव इंजनों को देखा जा सकता है

चेन्नई रेल संग्रहालय 16 अप्रैल, 2002 को विलिविक्कम के पास इंटीग्रल कोच फैक्ट्री के फर्निशिंग डिवीजन के परिसर में खोला गया था। इसमें तकनीकी और विरासत के साथ-साथ ब्रिटिश राज के दशकों पुराने भाप इंजनों का बड़ा और दर्शनीय संग्रह है। संग्रहालय में ऊटी- मेट्टुपालयम टॉय ट्रेन को भी प्रदर्शित किया गया है।

घूम रेल संग्रहालय दार्जिलिंग हिमालय रेलवे के तीन संग्रहालयों में से एक है, जिसकी स्थापना वर्ष 2000 में की गई थी। यहां आप सबसे पुराने टॉय ट्रेन इंजन के साथ जुड़े कोच को काफी करीब से देख सकते हैं। डीएचआर के पास 14 भाप इंजन हैं।

पूर्व दक्षिण भारतीय रेलवे के समारोहों का एक हिस्सा रहा है त्रिची रेल संग्रहालय। इस म्यूजियम की इंडोर गैलरी में पुराने दस्तावेज, डिजिटल अभिलेखागार और चीनी ग्लास,घड़ियां, घंटी, स्टाफ बैज जैसी प्राचीन कलाकृतिया संरक्षित हैं।

भाप इंजनों का सफरनामा

सबसे पहले ब्रिटेन के सिविल एवं मैकेनिकल इंजीनियर जॉर्ज स्टीफेंसन (फादर ऑफ रेलवे) ने वर्ष 1814 में भाप का इंजन बनाया था, जो काफी शक्तिशाली था। यह अपने से भारी वस्तुओं को खींचने में सक्षम था, पर यह ट्रेन नहीं खींच सकता था। ट्रेन तो रिचर्ड ट्रवेथिक के ही इंजन ने खींचा। फरवरी 1824 में पेशे से इंजीनियर रिचर्ड को पहली बार भाप के इंजन को चलाने में सफलता मिली। यह पहला आधिकारिक रेल इंजन था।

27 सितंबर, 1825 को भाप इंजन की सहायता से 38 रेल डिब्बों को खींचा गया था, जिनमें 600 यात्री सवार थे। इस पहली रेलगाड़ी ने लंदन के डार्लिंगटन से स्टॉकटोन तक का सफर 14 मील प्रति घंटे की रफ्तार से तय किया।

भारत में रेल के संचालन में मद्रास के सिविल इंजीनियर एपी कॉटन का महत्वपूर्ण योगदान रहा। 1850 में इस कंपनी ने मुंबई से ठाणे तक रेल लाइन बिछाने का काम शुरू किया। एशिया और भारत में प्रथम रेल यात्रा 16 अप्रैल, 1853 को दोपहर 3.30 बजे मुंबई के बोरीबंदर (छत्रपति शिवाजी टर्मिनस) से प्रारंभ हुई।

रेलवे दस्तावेज के अनुसार 16 अप्रैल, 1853 को मुंबई और ठाणे के बीच जब पहली रेल चली, उस दिन सार्वजनिक अवकाश था। साढ़े तीन बजे से कुछ पहले ही 400 विशिष्ट लोग ग्रेट इंडियन पेनिनसुला रेलवे के 14 डिब्बों वाली गाड़ी में चढ़े। रेलगाड़ी को ब्रिटेन से मंगवाए गए तीन भाप इंजन ‘सुल्तान’,‘सिंध’और ‘साहिब’ ने खींचा। 20 डिब्बों में 400 यात्रियों को लेकर यह गाड़ी रवाना हुई। इसने 34 किलोमीटर का सफर सवा घंटे में तय किया।

शुरुआत में फिलाडेल्फिया में भाप इंजन का निर्माण होता था। फिर कनाडा, पोलैंड, ऑस्ट्रिया में इनका निर्माण होने लगा। भारत के चितरंजन में 1856 से भाप के इंजन बनने की शुरुआत हुई।

भारत में पहले नैरोगेज की पटरियां बिछाई गईं। फिर मीटरगेज और ब्रॉडगेज लाइनें बिछाई गईं।

डब्ल्यूपी श्रृंखला के इंजन द्वितीय विश्व युद्ध के पश्चात बनाए गए थे। रेवाड़ी स्थित स्टीम हेरिटेज लोको शेड में डब्ल्यूपी शृंखला के वर्तमान में तीन इंजन मौजूद हैं।

भारत में आखिरी भाप इंजन 1970 में बना था, जिसका नाम ’अंतिम सितारा’ था। इसे चितरंजन लोकोमोटिव वक्र्स (सीएलडब्ल्यू, प. बंगाल) में सहेज कर रखा गया है। यह अब चलने की स्थिति में नहीं है।  
[राष्ट्रीय ब्यूरो से संजय सिंह और रेवाड़ी से अमित सैनी के साथ दिल्ली से अंशु सिंह]


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