Move to Jagran APP

Sawan Somvar 2020: आज है सावन का अंतिम सोमवार, इस अवसर पर जानिए शिव के डमरू का महत्‍व

Sawan Somvar 2020 सावन के अंतिम सोमवार का भाव है भगवान शिव की कैलास को विदाई परंतु वास्तव में वे सदैव उपस्थित रहते हैं सृष्टि में। मन का उपचार करने वाले शिवनाद के रूप में...

By Kamal VermaEdited By: Published: Sun, 02 Aug 2020 03:54 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 10:38 AM (IST)
Sawan Somvar 2020: आज है सावन का अंतिम सोमवार, इस अवसर पर जानिए शिव के डमरू का महत्‍व
Sawan Somvar 2020: आज है सावन का अंतिम सोमवार, इस अवसर पर जानिए शिव के डमरू का महत्‍व

शुभम वर्मा। Sawan Somvar 2020आज इस वर्ष के लिए सावन का अंतिम सोमवार है। शिव उपासना का चरम भाव, जब आदिदेव की अर्चना पुष्पों से ही नहीं, तालवाद्यों से प्रस्फुटित होते दिव्य संगीत से भी की जाएगी। शिवनाद के रूप में यह भारत के कई शीर्ष संगीत घरानों की शाश्वत परंपरा है। वास्तव में यह कृतज्ञ भक्तों की संगीतांजलि है उन नटराज को, जो स्वयं ही संगीत के सर्जक हैं, संरक्षक हैं।

loksabha election banner

 हिंदू पौराणिक ग्रंथों में भगवान शिव के डमरू का महत्व विस्तार से बताया गया है। शिवमहापुराण के अनुसार, भगवान शिव से पहले संगीत के बारे में किसी को भी जानकारी नहीं थी। तब न तो कोई नृत्य करना जानता था, न ही वाद्ययंत्रों को बजाना और गाना जानता था। ऐसे में सृष्टि के संतुलन के लिए उन्होंने डमरू धारण किया।

 मान्यता है कि डमरू की ध्वनि से ही संगीत की धुन और ताल का जन्म हुआ। भगवान भोलेनाथ का डमरू सृष्टि में संगीत, ध्वनि और व्याकरण पर उनके नियंत्रण का द्योतक है। शिव जब डमरू सहित तांडव नृत्य करते हैं तो यह प्रकृति में आनंद भर देता है। तब शिव क्रोध में नहीं होते अपितु संसार से दुख को नष्ट कर नई शुरुआत करने का संदेश देते हैं। शिव का डमरू नाद-साधना का प्रतीक माना जाता है। नाद अर्थात वह ध्वनि जिसे ‘ऊं’ कहते हैं। इसके उच्चारण का महत्व भी योग व ध्यान में वर्णित है। भगवान शिव के डमरू से निकले अचूक और चमत्कारी 14 सूत्रों को एक श्वास में बोलने का अभ्यास किया जाता है।

 हिंदू , तिब्बती व बौद्ध धर्म में महत्वपूर्ण वाद्य माना जाता है भगवान शिव का डमरू। इसे लय में सुनते रहने से मस्तिष्क को शांति मिलती है और हर तरह का तनाव हट जाता है। इसकी ध्वनि से आस-पास की नकारात्मक ऊर्जा और बुरी शक्तियां भी दूर हो जाती हैं। कर्नाटक के कई शिव मंदिरों में पूजन के दौरान डमरू वादन किया जाता है। इसे लोकवाद्य की श्रेणी में रखा गया है।

 डमरू के संगीत को वीर रस की श्रेणी में रखा जाता है। डमरू की धुन और इसके सहोदर तबले की थाप को सुनकर शिथिल पड़े मन को जागृत किया जा सकता है। इनसे निकला संगीत मन को एकाग्र तो करता ही है साथ ही प्रेरित भी करता है। डमरू की आवाज यदि लगातार एक जैसी बजती रहे तो इससे चहुंओर का वातावरण बदल जाता है। यह वादक की शैली पर निर्भर करता है कि आप इसे किस प्रकार बजा रहे हैं।

 जिस प्रकार रुद्रवीणा में श्वास के चरण के हिसाब से संगीत में परिवर्तन आता है, ठीक वैसे ही डमरू और तबला वादन में भी वादक की मानसिक अवस्था और शारीरिक स्थिति का प्रभाव पड़ता है। जैसी आपकी अवस्था होती है वैसा ही नाद उत्पन्न होता है। जब तबले पर अंगुलियां थिरकती हैं तो सुनने वाले को आनंद तो आता ही है, तबला वादक की अंगुलियों के जोड़, कोहनी और हाथों की मांसपेशियों का संपूर्ण व्यायाम भी हो जाता है।

 वास्तव में सावन के बाद भी भगवान शिव संगीत रूप में सदैव हमारे साथ ही रहते हैं। यदि आपको विचलित मन को शांत करना हो अथवा जीवन में नई उमंग का संचार करना हो, तो डमरू अथवा तबले की नाद से उत्पन्न संगीत आपकी मदद कर सकता है।

(लेखक शिक्षाविद् व तालवाद्य संगीत मर्मज्ञ हैं)


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.