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अपनों से जूझते महारथी लालू

पटना, मधुरेश। इस बार लालू यादव के सामने सबसे कठिन चुनौती है। जो लालू 'किंग मेकर' की हैसियत जीते रहे उन्हें अपनों की प्रतिष्ठा के लिए अपनों से ही जूझना पड़ रहा है। चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के चलते लालू खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। बदनामी की यह स्थिति किसी भी नेता को घर में बंद सा हो जाने के लिए काफी थी। ल

By Edited By: Published: Thu, 03 Apr 2014 08:15 AM (IST)Updated: Thu, 03 Apr 2014 08:58 AM (IST)
अपनों से जूझते महारथी लालू

पटना, मधुरेश। इस बार लालू यादव के सामने सबसे कठिन चुनौती है। जो लालू 'किंग मेकर' की हैसियत जीते रहे उन्हें अपनों की प्रतिष्ठा के लिए अपनों से ही जूझना पड़ रहा है। चारा घोटाला में सजायाफ्ता होने के चलते लालू खुद चुनाव नहीं लड़ रहे हैं। बदनामी की यह स्थिति किसी भी नेता को घर में बंद सा हो जाने के लिए काफी थी। लालू ने इसे अपने लिए ताकत व बड़ा मौका मान लिया है। वे अकेले खुलकर चारों तरफ घूम रहे हैं। तगड़ा मनोबल। पुराना अंदाज। पुरानी रौ। जोरदार हमले का भाव। एक अकेले नेता के रूप में प्रचार का उनका रिकार्ड बन रहा है। उन्होंने सबसे पहले चुनावी प्रचार शुरू किया। उनका हेलीकॉप्टर सबसे पहले उड़ा। लगातार उड़ रहा है। उनकी सभाओं में लोग भी आ रहे हैं।

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लालू प्रतिष्ठा की लड़ाई वैसे तो सभी 40 सीटों पर लड़ रहे हैं, मगर दो सीटों-पाटलिपुत्र और सारण के मैदान में उन्हें खास ध्यान देना पड़ रहा है। पाटलिपुत्र में बेटी डा. मीसा भारती चुनाव मैदान में हैं तो सारण में पत्‍‌नी राबड़ी। दोनों सीटों पर लालू को उन्हीं लोगों से जूझना पड़ रहा है, जिन्हें खुद उन्होंने हैसियत दी। पाटलिपुत्र में मीसा को अपने दो चाचा-रामकृपाल यादव (भाजपा उम्मीदवार) और डा. रंजन प्रसाद यादव (जदयू उम्मीदवार) से लड़ना है। इस बार लालू के स्टार सहयोगी, चाहे वो जगदानंद हों, डा.रघुवंश प्रसाद सिंह, अब्दुल बारी सिद्दीकी या फिर प्रभुनाथ सिंह- सभी अपने-अपने चुनाव में व्यस्त हैं।

कुछ दिन पहले मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा था कि लालू के घर की वायरिंग ठीक नहीं है। शार्ट सर्किट होती रहेगी। आग लगती रहेगी। यह तब की बात है जब राजद के कुछ विधायकों के विद्रोह के चलते विधानसभा में 13 विधायकों को अलग ग्रुप के रूप में बैठने की मान्यता मिली। इनमें कुछ राजद में लौटे, कुछ जदयू में चले गए। लालू ने इसके लिए जदयू को जिम्मेदार बताया। नीतीश उलटे लालू को कसूरवार ठहराते रहे। रामकृपाल यादव के विद्रोह ने नीतीश की बात को फिर से साबित किया। रामकृपाल टिकट के लिए बिदक गए और उस भाजपा के साथ हो गए जिसके खिलाफ लालू की स्थापित लड़ाई है। आखिर में रामकृपाल पाटलिपुत्र में मीसा भारती के सामने डट गए। अब मीसा भी कह रही हैं-'चाचा और मामा बड़ा दुश्मन होता है।' मामा यानी साधु यादव। साधु अपनी उन बहन राबड़ी देवी के खिलाफ मैदान में उतर रहे हैं, जिनके चलते उनको राजनीतिक हैसियत मिली। मजाक में ही सही, खुद लालू कह चुके हैं कि राबड़ी जी ने मेरे लिए बैगन का भर्ता बनाने से इन्कार कर दिया था। राबड़ी की शर्त थी कि जब तक साधु को विधानपरिषद नहीं भिजवाएंगे, घर में बैगन का भर्ता नहीं बनेगा।

लालू का हेलीकॉप्टर हर दिन पाटलिपुत्र लोकसभा क्षेत्र के किसी इलाके में उतरता है। मीसा की जीत के रास्ते में रीतलाल यादव बड़ी बाधा के रूप में पहचाने गए। रीतलाल पर कई मुकदमे हैं। जेल में हैं। लालू उनके घर पहुंच गए। पिता से मिले। रीतलाल को राजद महासचिव बना दिया। ऐसी कई बदनामियों को वे लगातार झेल रहे हैं, मगर परवाह नहीं। इस बात की भी नहीं कि राहुल और सोनिया ने उनसे मंच शेयर क्यों नहीं किया? उनके विरोधी उनकी खिल्ली उड़ा रहे हैं, लेकिन लालू हैं कि लगे हैं। वह कहते हैं-'मैं सबके लिए अकेला काफी हूं।' वैसे उनके पास खोने के लिए कुछ खास नहीं, क्योंकि पिछले चुनाव में उनकी पार्टी ने सिर्फ चार सीटें जीती थीं।

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