शहरी शिक्षित युवाओं पर है माअोवादियों की नजर, संगठन विस्तार के लिए बनाया ये प्लान
बोस की यह स्वीकारोक्ति भाकपा (माले) द्वारा अपने उम्रदराज एवं शारीरिक रूप से अक्षम नेताओं के लिए सेवानिवृत्ति योजना शुरू करने के ठीक एक साल बाद आई है।
कोलकाता, जागरण संवाददाता। नेतृत्व संकट से जूझ रहे माओवादी संगठन भाकपा (माले) की निगाहें शहरी एवं प्रबुद्ध युवाओं पर है। भाकपा (माले) के पोलित ब्यूरो सदस्य प्रशांत बोस उर्फ किशनदा ने हाल में पार्टी के मुखपत्र 'लाल चिंगरी प्रकाशन' में इसका जिक्र करते हुए कहा था कि शिक्षित युवाओं की कमी के कारण पार्टी अपने नेतृत्व की अगली पंक्ति तैयार करने में विफल रही है। उन्होंने यह भी स्वीकार किया था कि पार्टी के सामने सबसे बड़ी चुनौती अभी यही है। बोस की यह स्वीकारोक्ति भाकपा (माले) द्वारा अपने उम्रदराज एवं शारीरिक रूप से अक्षम नेताओं के लिए सेवानिवृत्ति योजना शुरू करने के ठीक एक साल बाद आई है।
72 वर्षीय बोस ने कहा, 'पश्चिम बंगाल को छोड़ दें तो हमने असम, बिहार एवं झारखंड के विभिन्न इलाकों में दलितों, आदिवासियों एवं गरीबों के बीच अपना आधार तैयार किया है। जहां शिक्षा का स्तर कम है, वहां लोगों को मार्क्सवाद के सिद्धांतों का सही अर्थ बताना काफी मुश्किल काम है। आदिवासियों, दलितों एवं गरीबों को प्रशिक्षित करने के लिए पार्टी को क्रांतिकारी, शिक्षित एवं प्रबुद्ध कॉमरेडों की जरूरत है।'
बोस के मुताबिक वर्तमान परिस्थिति को देखते हुए पार्टी ने अपनी सभी कमेटियों को शिक्षित छात्र एवं प्रबुद्ध कॉमरेड भेजने को कहा है। उम्मीद है कि जल्द ही पार्टी को शिक्षित, युवा एवं परिवर्तनशील कॉमरेड मिल जाएंगे, जिससे नेतृत्व की अगली पंक्ति तैयार करने में कामयाबी मिलेगी।
गौरतलब है कि भाकपा (माले) के अधिकतर शीर्ष नेताओं की उम्र 60 के पार है। महासचिव गणपति (मुपल्ला लक्ष्मण राव) 67 साल के हैं। सेंट्रल मिलिट्री कमीशन के प्रमुख वसावराज भी 62 साल के हो चुके हैं। संगठन के कई शीर्ष नेता या तो मुठभेड़ में मारे जा चुके हैं अथवा उनकी गिरफ्तारी हो चुकी है। पश्चिम बंगाल के एक पुलिस अधिकारी ने कहा कि भाकपा (माले) का यह प्रयास सफल नहीं हो पाएगा, क्योंकि मौजूदा पीढ़ी जंगलों में गुरिल्ला फाइटर की जिंदगी जीना पसंद नहीं करेगी।