शारदीय नवरात्र : जानिए क्यों देवी 'कुष्मांडा' को अष्टभुजा देवी भी कहा जाता है
मां दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा देवी के रूप में ख्यात है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा अपनी हंसी से संपूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करती है।
[पं अजय कुमार द्विवेदी]। मां दुर्गा का चौथा स्वरूप कूष्मांडा देवी के रूप में ख्यात है। मान्यता है कि मां कूष्मांडा अपनी हंसी से संपूर्ण ब्रह्मांड को उत्पन्न करती है। इस कारण इन्हें कूष्मांडा देवी कहा गया। कुम्हड़े (एक फल) की बलि प्रिय होने के कारण भी इन्हें कूष्मांडा देवी कहा जाता है। सूर्यमंडल के भीतर निवास करने वाली कूष्मांडा देवी की कांति सूर्य के समान दैदीप्यमान है। मान्यता है कि इन्हीं के तेज से दसों-दिशाएं प्रकाशित होती हैं। आठ भुजाओं के कारण इन्हें अष्टभुजा देवी कहा जाता है।
स्वरूप का ध्यान
मां के दिव्य स्वरूप के ध्यान में हमें यह प्रेरणा मिलती है कि सृजन में रत रहकर हम अपने मन को विकारों से बचा सकते हैं और अपने जीवन में हास-परिहास को स्थान दे सकते हैं। मां का ध्यान हमारी सृजन शक्ति को सार्थक कार्यों में लगाता है और हमें तनावमुक्त कर देश, समाज और परिवार के लिए उपयोगी बनाता है। हमें आत्मकल्याण की राह दिखाता है। मां कूष्मांडा का ध्यान हमारी कर्मेंद्रियों व ज्ञानेंद्रियों को नियंत्रण में रखकर हमें सृजनात्मक कार्यों में संलग्न रहने का संदेश प्रदान करता है।
आज का विचार
सदैव प्रसन्न रहकर हम उदासी को अपने पास आने से रोक लेते हैं। सार्थक सृजन की प्रसन्नता सर्वश्रेष्ठ होती है।
ध्यान मंत्र
सुरासंपूर्णकलशं रुधिराप्लुतमेव च।
दधाना हस्तपद्माभ्यां कूष्मांडा
शुभदास्तु मे।।