कुंभ मेला: आस्था के महापर्व का भव्य होगा आयोजन, अद्भुत, आलौकिक, अविस्मरणीय...
गंगा, यमुना और सरस्वती के मिलन के इस ऐतिहासिक पावन स्थली पर 55 दिनों चलने वाले आस्था के महापर्व के दौरान एक अस्थायी शहर बसा दिया जाता है।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। प्रयागराज में 15 जनवरी से चार मार्च के बीच कुंभ का आयोजन हो रहा है। त्रिवेणी में स्नान कर मोक्ष प्राप्त करने की इच्छा लिए करोड़ों लोग इसमें शामिल होंगे। यह दुनिया के सबसे बड़े उन जमावड़ों में एक है जहां किसी भी समय सर्वाधिक आबादी एक सीमित दायरे में होती है। गंगा, यमुना और सरस्वती के मिलन के इस ऐतिहासिक पावन स्थली पर 55 दिनों चलने वाले आस्था के महापर्व के दौरान एक अस्थायी शहर बसा दिया जाता है। देश-दुनिया को यहां की स्वत:स्फूर्त भीड़ नियंत्रण और व्यवस्था चकित करती रही है।
15 अरब रुपये आयोजन की लागत
धार्मिक आयोजन कुंभ का आगाज हमेशा अखाड़ों की पेशवाई के साथ होता है। गंगा, यमुना और सरस्वती के संगम में नागा साधुओं का शाही स्नान होता है। विशाल धार्मिक आयोजन में महाशिवरात्रि तक साधु संतों के शिविरों और तंबुओं में हवन पूजा की जाती है।
खास होगा ये कुंभ
- रेलवे 800 विशेष ट्रेन चलाने जा रहा है जिनमें से 622 ट्रेनें उत्तर-मध्य रेलवे की ओर से चलाने की योजना है। पूर्वोत्तर रेलवे 110 ट्रेनें और उत्तर रेलवे 68 ट्रेनें चलाएगा।
- कुंभ में श्रद्धालुओं के लिए लग्जरी टेंट में ठहरने की व्यवस्था की जाएगी। बजट के अनुसार डीलक्स, सुपर डीलक्स या सुइट चुना जा सकता है।
- पहली बार हेलिकॉप्टर व्यू और लेजर शो भी देखने को मिलेगा।
- कुंभ के मौके पर एयर इंडिया विभिन्न शहरों से प्रयागराज के बीच विशेष उड़ानों का संचालन करेगी।
- सुगम यातायात के लिए तकरीबन 250 किमी नई सड़कों का निर्माण किया गया है।
पौराणिक मान्यता
कुम्भ का शाब्दिक अर्थ है कलश। देवासुर संग्राम के बाद देव और दानव समुद्र मंथन को राजी हुए। मंथन से चौदह रत्नों की प्राप्ति हुई जिन्हें परस्पर बांट लिया गया परंतु अमृत कलश को लेकर विवाद हो गया। तब भगवान विष्णु ने स्वयं मोहिनी रूप धारण कर सबको अमृत-पान कराने की बात कही और अमृत कलश का दायित्व इंद्र-पुत्र जयंत को सौंपा। जब जयंत दानवों से अमृत की रक्षा करने के लिए भाग रहे थे, तभी अमृत की बूंदे पृथ्वी पर चार स्थानों पर गिरीं। हरिद्वार, नासिक, उज्जैन और प्रयागराज।
चूंकि विष्णु भगवान की आज्ञा से सूर्य, चंद्र, शनि एवं बृहस्पति भी अमृत कलश की रक्षा कर रहे थे और विभिन्न राशियों (सिंह, कुम्भ एवं मेष) में विचरण के कारण ये सभी कुंभ पर्व के द्योतक बन गये। जयंत को अमृत कलश को स्वर्ग ले जाने में 12 दिन लगा। देवताओं का एक दिन पृथ्वी के एक वर्ष के बराबर माना गया है। इसी से वर्णित स्थानों पर ही 12 वर्षों में कुंभ मेले का आयोजन होता है।
करतब दिखाते नागा संन्यासी, भस्म उड़ाता डमरूवादकों का झुंड, पंजाब का भांगड़ा-गिद्दा और महाराष्ट्र के आदिवासी नयनाभिराम नृत्य के बीच भगवा वस्त्रधारी महात्माओं का हुजूम निकला तो सड़क के किनारे, घरों की छतों पर खड़े लोगों के मुंह से कुछ ऐसे ही शब्द निकले। मौका था पंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी की पेशवाई का।
चार स्थान
ज्योतिष गणना के क्रम में कुंभ का आयोजन चार प्रकार से माना गया है।
1- हरिद्वार में गंगा तट पर- बृहस्पति के कुंभ राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर
2- प्रयागराज में त्रिवेणी तट पर- बृहस्पति के मेष राशि चक्र में प्रविष्ट होने तथा सूर्य और चंद्र के मकर राशि में आने पर अमावस्या के दिन
3- नासिक में गोदावरी तट पर- बृहस्पति एवं सूर्य के सिंह राशि में प्रविष्ट होने पर
4- उज्जैन में शिप्रा तट पर- बृहस्पति के सिंह राशि में तथा सूर्य के मेष राशि में प्रविष्ट होने पर