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Kumbh Mela 2019: आस्था, भक्ति और अध्यात्म के रंग में रंगा संगम

आश्रम और आश्रय स्थलों की पंक्तियां दूर-दूर तक दिखाई दे रही हैं। अखाड़े, महामंडलेश्वर, महंत और कथावाचकों के विशाल पंडाल सजकर तैयार हैं।

By TaniskEdited By: Published: Mon, 14 Jan 2019 11:03 AM (IST)Updated: Mon, 14 Jan 2019 11:35 AM (IST)
Kumbh Mela 2019: आस्था, भक्ति और अध्यात्म के रंग में रंगा संगम
Kumbh Mela 2019: आस्था, भक्ति और अध्यात्म के रंग में रंगा संगम

आशीष भटनागर,कुंभनगर। जयंत अपने पिता की सत्ता अक्षुण्ण रखने के लिए अमृत कुंभ लेकर दौड़ चुके हैं। सूर्य भी अपने पुत्र शनि के घर पहुंचने को आतुर हैं। इधर, प्रयागराज अपनी दिव्यता के साथ दोनों के स्वागत की प्रतीक्षा में है। सुदूर क्षेत्रों से विरक्त और गृहस्थ संगम तट पर पहुंच चुके हैं। सभी अमृत कुंभ को लेकर आसक्त हैं। उन्हें उस पल का इंतजार है,जब दोनों पथिक लक्ष्य पर पहुंचें और शाही स्नान के वे साक्षी बनें। संगम तीरे आस्था, भक्ति और अध्यात्म का अदभुत संसार बस चुका है। 

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लघु भारत को अपने में समेटे कुंभ क्षेत्र में अखाड़ों में अध्यात्म की बयार बह रही है तो कथावाचकों के पंडाल से रामधुन। कहीं कृष्ण-राधा के प्रेम का बखान हो रहा है। हनुमान की रामभक्ति की चर्चा है तो कहीं एक ब्रह्म की। सभी की अपनी भक्ति और सभी के अपने इष्ट। जा की रही भावना जैसी, प्रभु मूरत देखी तिन तैसी। सद्भाव और समरसता का संगम हर आश्रम में शाश्वत सत्य की तरह विराजमान है। त्रियम्बक की दोनों शिखाओं गंगा और यमुना को लांघ बढ़ने पर शंख द्वार के सामने से चारों ओर जहां तक दृष्टि जाती है। 

आश्रम और आश्रय स्थलों की पंक्तियां दूर-दूर तक दिखाई दे रही हैं। अखाड़े, महामंडलेश्वर, महंत और कथावाचकों के विशाल पंडाल सजकर तैयार हैं। शायद ही कोई राज्य होगा और शायद ही कोई जिला अपवाद होगा, जहां का संत और गृहस्थ यहां मौजूद न हो। क्षेत्र भर में हरि अनंत, हरि कथा अनंता.. चरितार्थ हो रहा है। तप और जप के माध्यम से परमात्मा तक पहुंचने का प्रयास करने वालों की भी कमी नहीं है। ध्यान, हठ योग, क्रिया योग और सहज ध्यान योग आदि से अंत:करण को शुद्ध करने का यह मार्ग उनके गुरु ने सिखाया है।

कुरीतियों और आडंबर से खुद को मुक्त करने का संदेश देने के लिए भी कई संत प्रयासरत हैं। ग्रहों की दशा बता सचेत करने वाले और तंत्र-मंत्र और गंडा-ताबीज से सुख-शांति देने का दावा करने वाले भी अनेक हैं। दिव्यांग जन को कृत्रिम अंग बांटने वाले भी अपने सेवा कार्य के साथ मौजूद हैं। सबका अपना-अपना दर्शन,अपना-अपना सेवा कार्य। कुछ के पास सुसज्जित कॉटेज है तो कुछ के पास पर्ण कुटि तो अनेक सिर्फ नीली छतरी के भरोसे। लेकिन किसी को शिकायत नहीं। सिर्फ प्रतीक्षा है पुत्र शनि के घर के द्वार खोल पिता सूर्य के उदित होने की, ताकि ग्रहण कर सकें संगम का पुण्य प्रताप।


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