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कृषि अमृत महोत्सव: देश में 75 वर्षों के दौरान खाद्य सुरक्षा के बाद अब उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती

कृषि क्षेत्र के लिए सीमित संसाधनों के बीच सरकार की ओर से पिछले एक दशक में प्रयास किए गए हैं जिसके चलते खाद्यान्न डेयरी (दुग्ध) बागवानी और मत्स्य उत्पादन में उछाल आया है। लेकिन वैश्विक स्तर पर अपनी रफ्तार बनाने के लिए उत्पादकता में लगातार सुधार जारी रखना होगा।

By Arun Kumar SinghEdited By: Published: Sun, 14 Aug 2022 11:48 PM (IST)Updated: Sun, 14 Aug 2022 11:48 PM (IST)
कृषि अमृत महोत्सव: देश में 75 वर्षों के दौरान खाद्य सुरक्षा के बाद अब उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती
कृषि क्षेत्र के लिए सीमित संसाधनों के बीच सरकार की ओर से पिछले एक दशक में प्रयास किए गए हैं।

सुरेंद्र प्रसाद सिंह, नई दिल्ली। पिछले 75 वर्षों के दौरान भारत ने अपने नागरिकों की विशाल फौज की खाद्य सुरक्षा तो काफी हद तक सुनिश्चित कर दी है, लेकिन गुणवत्तायुक्त उत्पादों की उत्पादकता बढ़ाने की चुनौती अभी बरकरार है। दुग्ध उत्पादन, मोटे अनाज, फल-सब्जियों व मांस आदि के उत्पादन में भारत दुनिया के शीर्ष देशों में शामिल है लेकिन उत्पादकता के मामले में काफी पीछे है। सरकार की नीतियों का भावी लक्ष्य यह है कि ना सिर्फ पूरी आबादी को पौष्टिक खाद्यान्न उपलब्ध कराई जाए बल्कि वैश्विक जिंस बाजार में भारत एक बड़ा व विश्वस्त हिस्सेदार के तौर पर स्थापित हो। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी आजादी के अमृत महोत्सव के अवसर पर लाल किले से अपने संबोधन में इस बारे में किसानों से अपील कर सकते हैं।

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गेहूं, चावल व चीनी का सरप्लस उत्पादन पर उत्पादकता नहीं बढ़ रही

कृषि क्षेत्र के लिए सीमित संसाधनों के बीच सरकार की ओर से पिछले एक दशक में प्रयास किए गए हैं, जिसके चलते खाद्यान्न, डेयरी (दुग्ध), बागवानी और मत्स्य उत्पादन में उछाल आया है। लेकिन वैश्विक स्तर पर अपनी रफ्तार बनाने के लिए उत्पादकता में लगातार सुधार जारी रखना होगा। कई ¨जसों के उत्पादन में शीर्ष पर पहुंचने के बावजूद भारत उत्पादकता के स्तर पर पीछे है। खाद्यान्न की पैदावार पिछले एक दशक में 24.4 करोड़ टन से बढ़कर 34.45 करोड़ टन पहुंच गया है।

आजादी के इन 75 वर्षों में खाद्यान्न की पैदावार में शानदार प्रगति हुई है। वर्ष 1950 में मात्र 5.82 करोड़ खाद्यान्न की पैदावार हुई थी। लेकिन देश की भारी भरकम आबादी का पेट भरने की धुन में खेती में एकांगी विकास पर जोर दिया गया, जिससे गेहूं, चावल व चीनी को छोड़ दें तो बाकी फसलें नजरअंदाज हो गईं। लिहाजा भारत अपने खाद्य तेलों और दालों के लिए आयात पर निर्भर है। जिंसों के आयात पर लगभग एक लाख करोड़ रुपए की विदेशी मुद्रा खर्च करनी प़ड़ती है।

गेहूं की उत्पादकता के स्तर पर भारत का प्रदर्शन संतोषजनक नहीं है। चीन में गेहूं की उत्पादकता 5408 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, अमेरिका में 3539 किलोग्राम और भारत में मात्र 3408 किलोग्राम है। चावल की उत्पादकता चीन प्रति हेक्टेयर 6500 किलो और भारत में मात्र 2350 किग्रा है। डेयरी व पशुधन विकास के मामले में भारत दुनिया का सर्वाधिक दूध उत्पादन करने वाला देश बन चुका है।

वैश्विक स्तर पर भारत दुनिया का 23 फीसद दुग्ध उत्पादन करता है। इस क्षेत्र का पिछले एक दशक का प्रदर्शन शानदार रहा है। वर्ष 2011 में भारत जहां 12.18 करोड़ टन के दूध का उत्पादन किया वहीं वर्ष 2021 में यह बढ़कर 20.99 करोड़ टन हो चुका है। लेकिन इस क्षेत्र में भी भारत की उत्पादकता स्तर अच्छा नहीं है।

उत्पादकता के भरोसे ही बनेगी वैश्विक बाजार में धमक

इंग्लैंड में प्रति दुधारु पशु प्रतिदिन 25.6 किलो दूध देता है, वहीं अमेरिका में 32.8 किलो और इजरायल में 38.6 किलो दूध देता है। लेकिन भारत के दुधारु पशुओं में प्रतिदिन दूध की उत्पादकता मात्र सात से आठ किलो है। पशुओं की सर्वाधिक आबादी के आधार पर भारत दुनिया में जरूर सबसे बड़ा उत्पादक होने का खिताब अपने नाम किए हुए है। मत्स्य उत्पादन में भारत ने पिछले एक दशक में दोगुना की वृद्धि की है।

वर्ष 2011 में जहां मत्स्य का सालाना उत्पादन 84 लाख टन था वह वर्ष 2021 में बढ़कर 1.45 करोड़ टन पहुंच गया है। लेकिन इसमें इनलैंड फिसरीज की हिस्सेदारी सर्वाधिक है। जबकि देश की 7.5 हजार किलोमीटर से अधिक है। फिर भी समुद्री उत्पादों का पूरा दोहन नहीं हो पा रहा है। पिछले कुछ सालों में इस दिशा में प्रयास जरूर किए गए हैं, लेकिन इसकी रफ्तार बढ़ानी होगी। क्यों कि समुद्री उत्पादों की निर्यात मांग बहुत है। भारत अभी भी अपने समुद्री उत्पादों का बड़ा हिस्सा निर्यात करता है, जिससे फिलहाल सालाना 50 हजार करोड़ रुपए से अधिक की विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।


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