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जम्मू कश्मीर में जमीन का महाघोटाला, जानें- क्या है रोशनी एक्ट और इससे जुड़ा विवाद

जम्मू- कश्मीर प्रशासन ने रोशनी एक्ट भूमि घोटाला से जुड़ी पहली सूची जारी की है। इसमें फारुक अब्दुल्ला समेत कई नामचिन हस्तियों के नाम हैं। साल 2001 में यह कानून लाया गया था। इसके तहत औने-पौने दामों में सरकारी जमीन आवंटित कर दी गई।

By TaniskEdited By: Published: Wed, 25 Nov 2020 09:43 AM (IST)Updated: Wed, 25 Nov 2020 09:43 AM (IST)
जम्मू कश्मीर में जमीन का महाघोटाला, जानें- क्या है रोशनी एक्ट और इससे जुड़ा विवाद
रोशनी एक्ट के तहत जम्मू-कश्मीर में औने-पौने दाम में जमीन बांट दी गई।

नई दिल्ली, जेएनएन। जम्मू-कश्मीर में इन दिनों राजनीतिक गतिविधियां काफी तेज हो गई हैं। यहां जिला विकास परिषद चुनाव (DDC Election) होने हैं। अनुच्छेद 370 हटाए जाने और राज्य को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने के बाद से यहां पहली बार कोई चुनाव होगा। इसमें नेशनल कॉन्फ्रेंस और पीडीपी (गुपकार गठबंधन) मिलकर चुनाव लड़ेंगे। चुनाव से पहले जम्मू- कश्मीर प्रशासन ने रोशनी एक्ट भूमि घोटाला से जुड़ी पहली सूची जारी कर दी है। इसमें फारुक अब्दुल्ला सहित 868 लोगों के नाम हैं। आइए जानते हैं क्या रोशनी एक्ट और इससे जुड़ा विवाद। 

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बता दें कि जम्मू-कश्मीर, 1950 में लैंड रिफॉर्म लॉ लाने वाला पहला राज्य था। साल 2001 में, फारूक अब्दुल्ला की सरकार रोशनी एक्ट (जम्मू और कश्मीर राज्य भूमि एक्ट 2001) लेकर आई। उस समय, फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कॉन्फ्रेंस पार्टी, एनडीए का हिस्सा थी। उनके बेटे उमर अब्दुल्ला केंद्र में तत्कालिन भाजपा सरकार में मंत्री थे। इस कानून को लाने का मकसद भूमि पर अनाधिकृत कब्जे को नियमित करना था। इस कानून ने कई दशकों से जम्मू-कश्मीर में सरकारी जमीन पर अतिक्रमण करने वालों को मालिकाना हक दे दिया गया। इसके लिए कट ऑफ वर्ष 1990 निर्धारित किया गया। बाद में जम्मू-कश्मीर में आने वाली सरकारें इसे बदलती रहीं। 

रोशनी एक्ट के तहत जमीन आवंटन से प्राप्त होने वाली राशि को बिजली ढांचे को सुधारने में किया जाना था, लेकिन जमीन का आंवटन सही तरीके से नहीं हुआ। इसके तहत लाखों हेक्टेयर सराकरी जमीन लोगों को औने-पौने दाम में बांट दी गई थी। केवल 15.58 फीसद जमीन को ही मालिकाना हक के लिए मंजूरी दी गई। पूर्व राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने 28 नवंबर 2018 को इस योजना को रद कर दिया। उन्होंने ऐसा योजना के तहत कम राजस्व प्राप्त होने और उद्देश्यों में नाकाम होने पर किया। हाईकोर्ट में इसे लेकर जनहित याचिका दायर की गई थी। हाई कोर्ट ने इस एक्ट को असंवैधानिक बताते हुए खारिज कर दिया था। कोर्ट ने इसके अलावा इसके तहत बांटी गई जमीनों का नामांतरण रद करने का आदेश दिया और लाभार्थियों के नाम सार्वजनिक करने के कहा गया।


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