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    जानिए आत्महत्या करने के क्या होते हैं कारण और ऐसी गंभीर समस्या का क्या है समाधान...

    By Sanjay PokhriyalEdited By:
    Updated: Fri, 23 Aug 2019 01:52 AM (IST)

    मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है वैसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी।

    जानिए आत्महत्या करने के क्या होते हैं कारण और ऐसी गंभीर समस्या का क्या है समाधान...

    विवेक शुक्ला। आत्महत्या का किसी व्यक्ति की संपन्नता या विपन्नता से कोई संबंध नहीं है। इन दिनों तो हर आयु वर्ग में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। आए दिन आप ऐसी खबरें पढ़ते-देखते होंगे कि किसी परेशानी से आजिज आकर परिवार के सदस्यों ने सामूहिक रूप से आत्महत्या कर ली या फिर किसी व्यक्ति विशेष ने आत्महत्या की या फिर उसने इसका प्रयास किया। जानते हैं कि आत्महत्या करने के कारण क्या हैं और ऐसी गंभीर समस्या का समाधान क्या है...

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    बढ़ता तनाव
    मौजूदा दौर में आत्महत्या के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं। इसका एक प्रमुख कारण तनाव है। इन दिनों व्यक्ति जितना तनावग्रस्त है, वैसी स्थिति अतीत में पहले कभी नहीं थी। लोगों की तेजी से बदलती जीवनशैली, रहन-सहन और भौतिक वस्तुओं के प्रति अत्यधिक आकर्षण, पारिवारिक विघटन और बढ़ती बेरोजगारी और धन-दौलत को ही सर्वस्व समझने की प्रवृत्ति के कारण आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं।

    डिस्ट्रेस से बचें
    स्ट्रेस भी दो प्रकार का होता है, जो स्ट्रेस आपको जीवन या कॅरियर में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित करे, उसे आप पॉजिटिव स्ट्रेस कह सकते हैं। जैसे प्रमोशन पाने के लिए कुछ ज्यादा काम करना। किसी साहसपूर्ण जोखिम भरे कार्य को अंजाम देना। जैसे माउंट एवरेस्ट पर पर्वतारोहण करना। वहीं स्ट्रेस का दूसरा प्रकार डिस्ट्रेस होता है, जो शरीर में कई बीमारियां पैदा करता है। यह स्ट्रेस का गंभीर प्रकार है। डिस्ट्रेस शरीर में तनाव पैदा करने वाले हार्मोंस को रिलीज करता है। इस कारण शारीरिक व मानसिक समस्याएं पैदा हो सकती हैं।

    डिप्रेशन
    दुख की स्थिति अवसाद या डिप्रेशन नहीं है। डिप्रेशन में पीड़ित व्यक्ति में काम करने की इच्छा खत्म हो जाती है। पीड़ित व्यक्ति के मन में हीन भावना व्याप्त हो जाती है। व्यक्ति को यह महसूस होता है कि जीवन जीने से कोई फायदा नहीं है। वह हताश और असहाय महसूस करता है। ऐसी दशा में पीड़ित शख्स आत्महत्या की कोशिश कर सकता है।

    आपाधापी भरी जीवनशैली
    आज की जीवनशैली तनावपूर्ण हो गई है। लोगों के पास काम की अधिकता है और वे समुचित रूप से विश्राम नहींकर पा रहे हैं। ऐसे परिवारों की संख्या काफी बड़ी है, जहां शांति नहींहै। घरों में माहौल खराब है। यह स्थिति व्यक्ति को परेशानी की स्थिति में आत्महत्या के विचार को पनपाने में मदद करती है।

    सोशल मीडिया का प्रभाव
    इन दिनों सोशल और इलेक्ट्रानिक मीडिया पर जो दिखाया जा रहा है, वह भी तमाम लोगों के दिमाग पर गलत असर छोड़ रहा है। जो दुनिया जिन लोगों ने देखी नहीं है, उसे भी देखने की इच्छा लोगों में बलवती होती जा रही है। जैसे मैंने लंदन नहींदेखा है तो क्यों न वहां हो आऊं। मेरे पास भी शर्मा जी की तरह शानदार कार होनी चाहिए। इच्छाओं की पूर्ति के लिए लोग ऋण ले रहे हैं और आर्थिक बदहाली के दौर से गुजर रहे हैं। ये स्थितियां डिप्रेशन से ग्रस्त कर सकती हैं।

    इन सुझावों पर करें अमल
    आत्महत्या के विचारों से बचने के लिए शारीरिक, मानसिक स्तर पर कुछ सुझावों पर अमल करने की जरूरत है।शारीरिक स्तर पर समय पर सोना और एक निश्चित समय पर उठना जरूरी है। नियमित रूप से व्यायाम करें और संतुलित पौष्टिक आहार ग्रहण करें। शराब और धूमपान से बचें।

    मानसिक स्तर पर
    अपने विचारों को लिखें, जिसे मनोचिकित्सकीय भाषा में स्ट्रेस डायरी कहते हैं। स्ट्रेस डायरी से हमारे विचारों में जो खामियां हैं, उनका पता चलता है। जैसे अनेक बार हम छोटी सी समस्या को तिल का ताड़ बना देते हैं। अगर कोई व्यक्ति किसी एग्जाम में एक बार फेल हो गया तो इसका मतलब यह नहींहै कि वह हर एग्जाम में फेल ही होता रहेगा। लोग अपनी गलती को माफ नहीं करते, जिसे ब्लैक एंड व्हाइट थिंकिंग कहते हैं। ऐसी सोच से बचना है।

    सॉल्यूशन ओरिएंटेड थिंकिंग
    इसका आशय है कि समस्या के बारे में ज्यादा विचार न कर उसके समाधान के बारे में सोचना है। ऐसी सोच से आप समस्या को सकारात्मक तरीके से देखकर उसका समाधान कर सकते हैं।

    परिवार के लिए वक्त निकालें
    परिजनों के साथ वक्त बिताएं। उनके साथ अपनी बातों को साझा करें। उनकी कोई समस्या हो तो उसे सुलझाने में उनकी मदद करें। इसी तरह अपने प्रियजनों और दोस्तों के लिए भी वक्त निकालें। इससे जहां आप एक-दूसरे की समस्या को समझ सकेंगे, वहींआपसी प्रेम भी बढ़ेगा। इसके अलावा मेडिटेशन और योग को भी अपनी दिनचर्या में शामिल करें। कोई हॉबी विकसित करें। संगीत सुनें या फिर खेलकूद से संबंधित गतिविधियों में भाग लें।

    असामान्य मनोदशा
    यह सही है कि आत्महत्या या इसका प्रयास करने वाला शख्स किसी को बताकर आत्महत्या या इसका प्रयास नहीं करता, लेकिन आत्महत्या की बात सोचने वाले व्यक्ति की मनोदशा असामान्य हो जाती है। वह डिप्रेशन में जा सकता है। परिजनों और लोगों से कटा-कटा महसूस करता है, हताश महसूस करता है और उसके दिमाग में नकारात्मक विचार मंडराते रहते हैं। ऐसी स्थिति में व्यक्ति के परिजनों को सजग हो जाना चाहिए। उन्हें रोगी के साथ हमदर्दी रखनी चाहिए।

    आत्महत्या का विचार मन में लाने वाले व्यक्ति की मनोदशा जीवन और मृत्यु की दुविधा में झूलती रहती है। वह दिल से तो जीना चाहता है, लेकिन उसे अपनी तकलीफों का अंत आत्महत्या में ही दिखता है। इस कारण वह गलत निर्णय ले बैठता है। ऐसे में परिजन यदि उसकी तकलीफों को पहले से ही समझ लें और उसकी सहायता करें तो रोगी सहज रूप से जीवन जीना स्वीकार कर लेता है। जब व्यक्ति असामान्य व हताश महसूस करे तो उसे तब तक अकेला न छोड़ें, जब तक मनोचिकित्सक की सुविधा उपलब्ध न हो जाए। आपका यह छोटा सहयोग एक जीवन को बचा सकता है।

    व्यवहार संबंधी परिवर्तन को पहचान
    आत्महत्या के प्रयास से पहले कुछ ऐसे पूर्व लक्षण मनोरोगी के व्यवहार में परिलक्षित होते हैं, जिन्हें रोगी के परिजन या प्रियजन जान लें तो वे उसकी मदद कर सकते हैं।

    रोगी को ये बातें समझाएं
    मरीज को स्पष्ट शब्दों में बताएं कि वह परिवार के लिए व बच्चों के लिए बहुत महत्वपूर्ण है

    • रोगी को समझाएं कि हम हर वक्त उसके लिए उपलब्ध हैं
    • रोगी को इस बात का विश्वास दिलाएं कि उसके कष्ट सीमित
    • समय के लिए हैं और कुछ दिनों में सब कुछ सामान्य हो जाएगा

    दूसरों की मदद लें
    समाज में मनोरोगों के प्रति जागरूकता कम है। अगर किसी व्यक्ति से कहें कि आप दिमागी तौर पर बीमार हैं तो वह आमतौर पर बुरा मान जाता है। इन्हींसब कारणों से समय रहते रोगी मनोरोग विशेषज्ञ से इलाज नहींकरवा पाता। परेशानी होने पर दूसरों की मदद लेनी चाहिए। अधिकतर लोग मदद नहींलेना चाहते,क्योंकि उन्हें लगता है कि वे कमजोर हो गए हैं। ऐसी सोच ठीक नहीं है। मनोचिकित्सकों का मानना है कि अपने मन की बात दूसरों के समक्ष साझा करने से दिमाग को राहत मिलती है। निराशा से बचने के लिए लोगों के साथ संवाद स्थापित करना चाहिए। इसलिए जब भी परेशान हों तो दूसरों की मदद लेने में संकोच न करें।
    डॉ.शौनक अजिंक्य (मनोरोग विशेषज्ञ, कोकिला बेन धीरूभाई अंबानी हॉस्पिटल,मुंबई), डॉ.उन्नति कुमार (मनोरोग विशेषज्ञ, कानपुर) और डॉ. गौरव गुप्ता (मनोरोग विशेषज्ञ, नई दिल्ली) से बातचीत पर आधारित।