दांडी मार्च में बापू संग चलने वाले 80 लोगों के बारे में जानना है तो आइए 'नमक सत्याग्रह स्मारक'
दांडी मार्च में बापू अपने 80 अनुयायियों के साथ निकले थे। यह मार्च अंग्रेंजों द्वारा बनाए नमक कानून के खिलाफ था, जो भारत की आजादी के लिए भी काफी अहम बना।
नई दिल्ली [जागरण स्पेशल]। गुजरात के दांडी में बनाया गया 'नमक सत्याग्रह स्मारक' अपने आप में काफी खास है। यहां तकनीक के इस्तेमाल से लेकर बापू की प्रतिमा तक सब कुछ ऐसा है जो आपको एक अदभुत अहसास कराएगा। जहां तक दांडी मार्च की बात है तो आपने इसको किताबों में ही पढ़ा होगा। यहां पर आकर आप उस दौर को भी महसूस कर सकेंगे। यहां पर आकर आपको पता चलेगा कि आखिर वो कितने और कौन-कौन से लोग थे जो इस दांड़ी मार्च में बापू के साथ निकले थे।
आपको बता दें कि 1930 में अंग्रेजों ने नमक उत्पादन और उसके विक्रय पर भारी मात्रा में कर लगा दिया था। जिससे उसकी कीमत कई गुणा तक बढ़ गई थी। अधिक कर होने से यह गरीबों की पहुंच से दूर हो रहा था। इसके खिलाफ ही महात्मा गांधी ने 12 मार्च से 6 अप्रैल 1930 तक साबरमती से दांडी तक पदयात्रा निकाली थी। जिसे दांडी मार्च कहा जाता है। यह स्मारक इसी ऐतिहासिक घटना को समर्पित है। आइए दस बिंदुओं में जानते हैं इस स्मारक की खासियत।
- यह स्मारक 15 एकड़ भूमि पर बनाया गया है। यहां 41 सोलर ट्री लगाए गए हैं, जिससे 144 किलोवाट बिजली बनेगी। इस बिजली से स्मारक में बिजली की जरूरत पूरी की जाएगी। इस स्मारक को बनाने में 110 करोड़ रुपये की लागत आई है।
- इस स्मारक को बनाने में स्वदेशी तकनीक का इस्तेमाल किया गया है।
- इसको बनाने में आईआईटी बॉम्बे में अहम भूमिका निभाई है। इस स्मारक के डिजाइन को भी यहां पर ही तैयार किया गया है। इस संस्थान द्वारा तैयार किया गया यह पहला प्रोजेक्ट भी है।
- यहां पर एक गेस्ट हाउस भी बनाया गया है जहां आकर लोग ठहर सकेंगे। इस स्मारक में ऐतिहासिक नमक यात्रा की विभिन्न घटनाओं और कहानियों को चित्रित करने वाले 24 भित्तिचित्र भी शामिल किए गए हैं।
- इस स्मारक में बापू की पांच मीटर ऊंची प्रतिमा लगाई गई है। इस प्रतिमा को सदाशिव साठे ने बनाया है। साठे भारत के जाने-माने मूर्तिकार हैं। इस मूर्ति में बापू को सत्याग्रह के लिए अपनी लाठी लिए जाता दिखाया गया है। साठे की बनाई बापू की पहली प्रतिमा को 1952 में दिल्ली में लगाया गया था। यहां के लिए बापू की प्रतिमा तय करने के लिए उनके पूरे व्यक्तित्व को ध्यान में रखा गया था।
- 2013 में दांडी स्कल्पचर वर्कशॉप के लिए पूरी दुनिया से करीब 48 प्रोफेशनल मूर्तिकारों को चुना गया था। इसमें भारत के अलावा आस्ट्रिया, बुलगारिया, म्यांमार, जापान, श्री लंका, तिब्बत, ब्रिटेन और अमेरिका के मूर्तिकार शामिल हैं। इन सभी को आईआईटी बॉम्बे में दो वर्कशॉप के लिए बुलाया गया है। यह वर्कशॉप नंवबर-दिसंबर में हुई थी। इस दौरान इनसे क्ले के माध्यम से मूर्ति तैयार करवाई गई थीं। इनका विषय दांडी मार्च ही था। इस दौरान मूर्तिकारों को इस बात की छूट थी कि वह इस विषय पर किस तरह की मूर्ति तैयार करते हैं। इन सभी को साठे ने ही गाइडलाइंस भी दी थी। इसके लिए इनको गांधी से जुड़ी डॉक्यूमेंट्री, फोटो या फिल्म्स की मदद लेने की भी छूट थी।
- दांडी मार्च में बापू समेत 80 लोग शामिल थे। इस स्मारक में इन सभी की प्रतिमा भी मौजूद हैं, जो बॉम्बे की वर्कशॉप के दौरान 2013 में बनाई गई थीं। आपको बता दें कि इस मार्च के दौरान गांधी के पीछे चलने वालों में कुणाल नामदेव लेंडे, पुनम सरसेखा दीपक कुमार, राम दशरथ कुंभार, गेविन फुलचर, अवधेश ताम्रकार, निहारिका मनचंदा समेत अन्य लोग शामिल थे।
- यहां नमक बनाने के लिए सोलर मेकिंग बिल्डिंग वाले 14 जार भी रखे गए हैं।
- यहां सबसे अधिक आकर्षण का केंद्र क्रिस्टल होगा। जो रात के समय लेजर से चमकेगा।
- यहां 24 स्मृतिपथ भी बनाए गए हैं। जो दिखने में बेहद खूबसूरत हैं।
- यहां आने वाले लोग नमक बनाने की प्रक्रिया देख सकेंगे। इस प्रक्रिया में पर्यटक पैन में खारा पानी डालेंगे। जिसके बाद पैन में लगी हुई मशीन पानी का वाष्पीकरण करेगी। फिर पैन में नमक रह जाएगा।
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