महाकाल के शीश पर विराजित हैं नागचंद्रेश्वर, वर्ष में एक बार देते हैं दर्शन
मध्य प्रदेश में मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर बसी महाकालपुरी यानी उज्जयिनी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यहां हर मंदिर की अपनी एक कथा है और एक अलग परंपरा भी।
उज्जैन। मध्य प्रदेश में मोक्षदायिनी शिप्रा के तट पर बसी महाकालपुरी यानी उज्जयिनी को मंदिरों का शहर भी कहा जाता है। यहां हर मंदिर की अपनी एक कथा है और एक अलग परंपरा भी। स्वयं राजाधिराज को भस्मी रमाई जाती है तो उनके सेनापति कालभैरव को मदिरा का भोग लगाया जाता है। मंगलनाथ की भात पूजा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। इसी तरह महाकालेश्वर मंदिर के शीर्ष पर नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। परंपरा रही है कि इस मंदिर के पट साल में केवल एक बार नागपंचमी पर खोले जाते हैं।
केवल इसी दिन भक्तों को नागचंद्रेश्वर भगवान के दर्शन होते हैं। इस बार ये पर्व 15 अगस्त को आ रहा है। 14 अगस्त की मध्यरात्रि 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे। पूजा-अर्चना के बाद आम दर्शन का सिलसिला शुरू होगा। 24 घंटे तक भक्त भगवान के दर्शन कर सकेंगे।
बता दें कि ज्योतिर्लिंग महाकालेश्वर के गर्भगृह में भगवान महाकाल, तल मंजिल पर भगवान ओंकारेश्वर तथा शिखर पर भगवान नागचंद्रेश्वर का मंदिर है। मंदिर की परंपरा अनुसार महाकालेश्वर व ओंकारेश्वर मंदिर में भक्त वर्षभर दर्शन कर सकते हैं लेकिन नागचंद्रेश्वर मंदिर के पट आम श्रद्धालुओं के लिए वर्ष में केवल एक बार नागपंचमी के दिन ही खोले जाते हैं। इसके पीछे कोई कारण स्पष्ट नहीं है। मगर पुजारी बताते हैं कि यह परंपरा अनादिकाल से चली आ रही है। मंदिर में पूजा-अर्चना का अधिकार महानिर्वाणी अखाड़े के पास है। नागपंचमी पर सबसे पहले अखाड़े की ओर से ही भगवान की पूजा होती है।
रात 12 बजे पहली पूजा
इस बार 14 अगस्त की मध्यरात्रि 12 बजे मंदिर के पट खुलेंगे। इसके बाद महानिर्वाणी अखाड़े के महंत प्रकाशपुरी व मंदिर प्रबंध समिति के अधिकारी पूजा-अर्चना करेंगे। पूजन पश्चात दर्शन का सिलसिला शुरू होगा। 15 अगस्त को दोपहर 12 बजे शासकीय पूजा होगी। जिला प्रशासन के अधिकारी भगवान की पूजा अर्चना करेंगे। इसी दिन शाम को 7.30 बजे महाकालेश्वर मंदिर प्रबंध समिति की ओर से पूजा होगी। इसके बाद रात्रि 12 बजे तक दर्शन का सिलसिला चलेगा। इसके बाद फिर से मंदिर के पट एक वर्ष के लिए बंद होंगे।
11 वी शताब्दी की है मूर्ति
नागचंद्रेश्वर मंदिर के गर्भगृह में शिवलिंग स्थापित है। गर्भगृह के ठीक बाहर 11वीं शताब्दी की परमारकालीन मूर्ति है। इसमें शिव-पार्वती शेषनाग पर विराजित हैं। बताया जाता है यह मूर्ति नेपाल से यहां लाई गई है।
देश-विदेश से आते हैं भक्त
नागपचंमी पर भगवान नागचंद्रेश्वर के दर्शन के लिए देश-विदेश से हजारों भक्त महाकाल मंदिर आते हैं। मंदिर समिति द्वारा भक्तों की सुविधा के लिए विशेष इंतजाम किए जाते हैं। भक्त को कम समय में सुविधा से नागचंद्रेश्वर के दर्शन हो सके इसके लिए विशेष रूप से लोहे की सीढ़ियां लगाई जाती हैं। मंदिर में प्रवेश करने तथा दर्शन के बाद बाहर निकलने के लिए अलग-अलग द्वार बनाए जाते हैं।
71 साल में दूसरी बार 15 अगस्त के दिन नागपंचमी
आजादी के बाद यह दूसरा मौका है जब 15 अगस्त के दिन नागपंचमी आ रही है। इससे पहले वर्ष 1980 में इस प्रकार का संयोग बना था।