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हमारे भविष्‍य को बचाने के लिए बेहद खास है कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज तकनीक, जानें इसका पूरा ब्‍योरा

कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज तकनीक हमारे भविष्‍य को बचाने में अहम भूमिका निभा सकती है। इसके अलावा विशेषज्ञों की राय है कि जलवायु परिवर्तन में भी ये कारगर भूमिका निभा सकता है। इसके जरिए उत्‍सर्जन को कम किया जा सकता है।

By Kamal VermaEdited By: Published: Tue, 19 Jan 2021 10:33 AM (IST)Updated: Tue, 19 Jan 2021 10:33 AM (IST)
सीसीएस तकनीक के जरिए कम किया जा सकता है उत्‍सर्जन

नई दिल्‍ली (जेएनएन)। इंजीनियर और भूगर्भशात्रियों ने पर्यावरण संतुलन के लिए एक बार फिर कार्बन को जमीन में दबाने की वकालत की है। उन्होंने पिछले सप्ताह हरित समूहों द्वारा किए गए दावों की कड़ी आलोचना भी की है। पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले हरित समूहों ने एक लेख में कहा था कि कार्बन कैप्चर एंड स्टोरेज (सीसीएस) तकनीक जैविक ईंधन उत्सर्जन कम करने की दिशा में महंगी भूल साबित होगी। विशेषज्ञों का कहना है कि सीसीएस बढ़ती गर्मी को कम करने में बड़ा हथियार साबित होगी। अगर हम कार्बन को धरती के नीचे भंडारित करने का काम नहीं करेंगे तो वर्ष 2050 तक इसके उत्सर्जन को शून्य के नीचे लाना असंभव है। आइए जानते हैं कि क्या है सीसीएस तकनीक व विशेषज्ञ जलवायु परिवर्तन पर अंकुश के लिए इसे कारगर हथियार क्यों मान रहे हैं...

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क्या है सीसीएस तकनीक

यह एक ऐसी तकनीक है जिसमें पावर प्लांट व फैक्ट्री के उत्सर्जन से कार्बन डाई ऑक्साइड को संघनित करते हुए पंप के जरिये धरती के नीचे भंडारित कर दिया जाता है। ब्रिटेन इस तकनीक को विकसित औरइस्तेमाल करने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान माना जा रहा है। इसकी वजह है कि उद्योगों से निकलने वाले कार्बन डाई ऑक्साइड को उत्तरी सागर में संग्रहीत किया जा सकता है। ब्रिटेन में 20 साल पहले कई सीसीएस विकास परियोजनाएं शुरू हुई थीं, लेकिन वित्तीय कारणों से रद कर दी गईं।

अर्थव्यवस्था के लिए अहम

विशेषज्ञों का मानना है कि पावर प्लांट, स्टील व सीमेंट उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन काफी ज्यादा होता है। लेकिन, ये देश की अर्थव्यवस्था को गति भी देते हैं। ऐसे में जरूरी है कि पावर प्लांट, स्टील व सीमेंट उद्योग के अलावा अन्य औद्योगिक इकाइयों में भी सीसीएस तकनीक लगाई जाए। इससे उद्योग चलते रहेंगे और ग्लोबल वार्मिंग की समस्या को भी कम किया जा सकेगा। ब्रिटेन ने सीसीएस को लागू करने के लिए एक अरब पाउंड (99.27 अरब रुपये) का कोष गठित किया है।

नवीकरणीय ऊर्जा इकाइयों को भी प्रोत्साहित करने की जरूरत

इंजीनियर व भूगर्भशास्त्री तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए काम करने वाले हरित समूह, दोनों कहते रहे हैं कि वर्ष 2030 तक जलवायु लक्ष्यों को हासिल करने में सीसीएस तकनीक कोई उल्लेखनीय योगदान नहीं दे सकती। वर्ष 2030 तक तापमान वृद्धि की रफ्तार को 1.5 डिग्री सेल्सियस पर रोकने का लक्ष्य तय किया गया है। ऐसे में नवीकरणीय ऊर्जा इकाइयों की स्थापना को भी बढ़ावा देना चाहिए। ऐसी इकाइयों की स्थापना के बाद ब्रिटेन के ऊर्जा उद्योगों से कार्बन उत्सर्जन में कमी आई है। 

कैसे काम करती है सीसीएस तकनीक

  1. पावर प्लांट के उत्सर्जन को अवशोषक में भेजा जाता है, जिसमें विलयन होता है।
  2. विलयनकार्बन डाई ऑक्साइड को संग्रहीत कर लेता है और बाकी उत्सर्जन को छोड़ देता है।
  3. विलयन से कार्बन डाई ऑक्साइड को अलग करने के लिए ताप का प्रयोग किया जाता है।
  4. कार्बन डाई ऑक्साइड का सागर की तलहट्टी में भंडारण कर दिया जाता है।

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