जानिए, प्रदेश के किस स्कूल में बच्चों को जाति से पहचानने के लिए उनके हाथों पर बंधवाए जा रहे रिस्टबैंड
तमिलनाडु के कुछ स्कूलों में बच्चों को उनकी जाति आधारित रिस्टबैंड पहनाए जा रहे थे मामला प्रकाश में आने के बाद अब शिक्षा विभाग ने ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए।
नई दिल्ली, एजेसी। क्या आपने कभी सूना है कि किसी प्रदेश में स्कूल के बच्चों को उनकी जाति के आधार पर रिस्टबैंड पहनने के लिए निर्देश दिया जा रहा हो। मगर तमिलनाडु के कुछ स्कूलों में ये प्रथा चल रही है। यहां के कुछ स्कूलों में पढ़ने के लिए आने वाले बच्चों को इसी तरह के निर्देश दिए गए जिससे उनकी पहचान हो सके। इस तरह का मामला प्रकाश में आने के बाद अब तमिलनाडु के शिक्षा विभाग ने अपने अधिकारियों को इस तरह के स्कूलों के खिलाफ सख्त कार्रवाई के निर्देश दिए हैं।
तमिलनाडु शिक्षा विभाग ने अपने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वो ऐसे स्कूलों की पहचान करें और जहां पर बच्चों को इस तरह का बैंड पहनने के लिए कहा गया हो उनके खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाए। तमिलनाडु स्कूल शिक्षा विभाग ने अपने अधिकारियों से कहा है कि वे राज्य के ऐसे स्कूलों की पहचान करें और उन पर कार्रवाई करें जहां उनके प्रबंधन की ओर से बच्चों को कथित तौर पर अपनी जाति की पहचान करने के लिए कलाई पर रंगीन रिस्टबैंड पहनने के लिए कहा गया हो।
स्कूल शिक्षा निदेशक ने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि वे अपने जिलों में ऐसे स्कूलों की पहचान करें जहां इस तरह का भेदभाव किया जाता है। तमिलनाडु के कुछ स्कूलों में, छात्रों को रंग के आधार पर रिस्टबैंड(कलाई घड़ी) पहनने के लिए कहा गया था। ये रिस्टबैंड लाल, पीले, हरे और केसर के रंगों में आ रहे थे इन कलर रिस्टबैंडों से ये पता चल जाता था कि बच्चे किस जाति के हैं। उनके बैंड पहनने से उनकी जाति निम्न या उच्च होने का पता चल जा रहा था। स्कूल शिक्षा निदेशक एस कन्नप्पन की ओर से इस बारे में एक पत्र जारी किया गया।
इसमें कहा गया कि माथे पर अंगूठियां और 'तिलक' भी जाति मार्कर के रूप में इस्तेमाल किए जा रहे थे। कुछ स्कूलों में वहां पढ़ने वाले बच्चे और प्रभावी शिक्षक भी इसका इस्तेमाल कर रहे थे। इस तरह के खास चिन्हों का इस्तेमाल खेल टीम के लिए चयन किए जाने वाले खिलाड़ियों को चुनने के लिए भी किया जा रहा था। इसके अलावा इन चीजों का इस्तेमाल स्कूल में आने वाले बच्चों को दोपहर का भोजन देने के लिए भी किया जा रहा था। इस तरह का बैंड पहन लेने के बाद बच्चों को पहचानने में आसानी हो जाती थी।
शिक्षा विभाग के वरिष्ठ अधिकारियों की ओर से ऐसे स्कूलों की पहचान करने के लिए उचित कदम उठाने का आग्रह किया गया है। इस लेटर में कहा गया है कि जिन स्कूलों में इस तरह के रिस्टबैंड इस्तेमाल किए जा रहे हो वो जल्द से जल्द ऐसे स्कूलों के खिलाफ कार्रवाई करें। विभाग के अधिकारियों की ओर से ऐसे स्कूलों के हेडमास्टरों को इस तरह के अभ्यास तुरंत ही बंद करने और इस तरह के भेदभाव को बढ़ावा देने वाले व्यक्ति पर सख्त कार्रवाई करने के लिए निर्देश दिए गए हैं।
उनका कहना है कि साल 2018 में ट्रेनी आईएएस अधिकारियों ने इस तरह की एक प्रस्तुति दी थी मगर उसे लागू करने के लिए नहीं कहा गया था। क्योंकि ये किसी भी तरह से ठीक नहीं प्रतीत होता है। उसके बाद भी कुछ स्कूलों ने इसे अपने यहां अपना लिया ये पूरी तरह से गलत है। इस पर रोक लगनी चाहिए इससे स्कूल में पढ़ने के लिए जाने वाले बच्चों में हीनभावना का संचार होता है।
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