दिल्ली-एनसीआर में हर बड़ी इमारत भूकंप से नहीं है असुरक्षित: Expert
दिल्ली-एनसीआर की हर ऊंची इमारत असुरक्षित नहीं है। इस बात की तसदीक वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई हालिया रिपोर्ट में भी की गई है। साथ ही वैज्ञानिकों ने चेताया भी है।
नई दिल्ली, अनुराग मिश्र। दिल्ली-एनसीआर की हर ऊंची इमारत असुरक्षित नहीं है। इस बात की तसदीक वैज्ञानिकों द्वारा तैयार की गई हालिया रिपोर्ट में भी की गई है। वैज्ञानिकों के अनुसार, यह कहना गलत है कि यहां की हर ऊंची इमारत भूकंप के कम तीव्रता के झटकों में दरक जाएगी। हालांकि, अपनी रिपोर्ट में वैज्ञानिकों ने चेताया भी है कि इन इमारतों का गलत तरीके से निर्माण इन्हें रेत में भी धंसा सकता है। इसके साथ ही वैज्ञानिकों ने यह भी कहा है कि सिस्मिक जोन-4 में आने वाली राजधानी दिल्ली भूकंप के बड़े झटके से खासा प्रभावित हो सकती है। अगर यहां 7 की तीव्रता वाला भूकंप आया तो दिल्ली की कई सारी इमारतें और घर रेत की तरह भरभराकर गिर जाएंगे। ऐसा इसलिए है, क्योंकि यहां की इमारतों में इस्तेमाल होने वाली निर्माण सामग्री ऐसी है, जो भूकंप के झटकों का सामना करने में पूरी तरह से सक्षम नहीं है। दिल्ली में मकान बनाने की निर्माण सामग्री ही आफत की सबसे बड़ी वजह है। इससे जुड़ी एक रिपोर्ट वल्नेबरिलिटी काउंसिल ऑफ इंडिया ने तैयार की थी, जिसे बिल्डिंग मैटीरियल एंड टेक्नोलॉजी प्रमोशन काउंसिल ने प्रकाशित किया है।
इस रिपोर्ट में कहा गया है कि दिल्ली के 91.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें पक्की ईंटों से बनी हैं, जबकि कच्ची ईंटों से 3.7 प्रतिशत मकानों की दीवारें बनी हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कच्ची या पक्की ईंटों से बनी इमारतों में भूकंप के दौरान सबसे ज्यादा दिक्कत आती है। ऐसे में इस मैटीरियल से बिल्डिंग को बनाते वक्त सावधानी बरतनी चाहिए और विशेषज्ञों से सलाह जरूर लेनी चाहिए। घोष ने कहा कि रियल एस्टेट एजेंसियों, कांट्रेक्टर, बिल्डर, आर्किटेक्ट, प्लानर्स, बिल्डिंग मालिकों, कंस्ट्रक्शन मैटीरियल सप्लायर्स, सिविल इंजीनियर्स, नगरपालिका के अधिकारियों, डीडीए, एमसीडी, डीयूएसी, दिल्ली फायर सर्विस, पुलिस आदि को नेशनल बिल्डिंग कोड 2016 का पालन करना चाहिए।
हर ऊंची इमारत असुरक्षित नहीं
आईआईटी जम्मू के प्रोफेसर चंदन घोष कहते हैं कि दिल्ली-एनसीआर में हर बड़ी इमारत भूकंप से असुरक्षित नहीं है। इन इमारतों ने हाल ही में 5 रिक्टर स्केल की क्षमता का भूकंप देखा, लेकिन ये डिगी नहीं। अमूमन बहुमंजिला इमारतों को बनाने के दौरान उनके संरचनात्मक डिजाइन का परीक्षण किया जाता है। घोष कहते हैं कि द्वारका के कुछ इलाकों में पांच-दस साल पहले बने मकानों की हालत खराब हो गई है। इसकी वजह वहां का खारा पानी है। खारा पानी, बदरपुर की बालू, गंगा की गाद आदि का इस्तेमाल निर्माण में नहीं करना चाहिए। पर दिल्ली-एनसीआर में इसका इस्तेमाल अधिक होता है।
घोष कहते हैं कि यह धारणा भी गलत है कि हाईराइज बिल्डिंग भूकंप में भरभराकर गिर जाएगी। अगर छोटी इमारत का निर्माण ठीक से नहीं हुआ है तो वह भी गिर सकती है। इमारत के बेस के अनुसार, उसकी ऊंचाई होनी चाहिए। अधिकतर मामलों में ऐसी गलतियां देखने को मिल रही है। वरना मौजूदा समय में मिश्रित सामान का इस्तेमाल निर्माण में होता है, जो कि उसे मजबूती देता है।
पुराने मकानों को भी बना सकते हैं भूकंप रोधी
घोष कहते हैं कि पुराने भवनों को रेट्रोफिटिंग के जरिए भूकंप रोधी बनाया जा सकता है। इसके तहत पुराने भवन जो पिलर पर नहीं बने हैं, उनमें दरवाजों और खिड़कियों के ऊपर वाले हिस्सों में जहां से छत शुरू होती है, लिंटर बैंड डाले जाते हैं। इसके तहत भवन की चारों दीवारों के कोनों को लिंटर बैंड के जरिए आपस में जोड़ दिया जाता है। फर्क यह है कि लिंटर बैंड में लोहे की नई स्टील की छड़ें इस्तेमाल होती हैं, जो कहीं ज्यादा मजबूत होती हैं।
जब भूकंप आता है तो सबसे ज्यादा खतरा उन भवनों को होता है, जो पिलर पर खड़े नहीं होते हैं। भूकंप के दौरान पिलर पर खड़ी इमारत एक साथ हिलती है, जबकि बिना पिलर की इमारत की चारों दीवारें स्वतंत्र रूप से अलग-अलग हिलती हैं। इसलिए भवन गिरने लगते हैं। रेट्रोफिटिंग बिना पिलर वाली इमारतों को काफी हद तक जोड़ देती है और दीवारें अलग-अलग नहीं हिलती हैं। यह सौ फीसदी तो नहीं, पर 80 फीसदी तक भूकंप के खतरे को कम कर देती है। आमतौर पर छोटे घरों में रेट्रोफिटिंग कर पाना मुमकिन नहीं हो पाता।
हाईराइज बिल्डिंग के लिए स्ट्रक्चरल इंजीनियर की स्वीकृति जरूरी
भूकंपरोधी हाईराइज बिल्डिंग बनाने के लिए स्ट्रक्चरल इंजीनियर की स्वीकृति लेनी जरूरी है। इसके बिना इमारत नहीं बनाई जा सकती। इस मंजूरी के बाद फायर विभाग से कंप्लीशन सर्टिफिकेट मिलता है। लेकिन हैरानी की बात यह है कि दिल्ली-एनसीआर में बन रही बहुमंजिला इमारतों के लिए महज 30 फीसदी बिल्डर इस प्रक्रिया के तहत निर्माण कर रहे हैं। जानकारों का कहना है कि न सिर्फ निर्माण सामग्री, बल्कि उसकी नींव और डिजाइन की जांच की जाती है। जांच में डिजाइन और नींव पास होती है तो ही इमारत भूकंपरोधी मानी जाती है।
इमारत की सुरक्षा के कोड
भवन निर्माण तकनीक के विशेषज्ञों का कहना है कि जब भी कोई बहुमंजिला इमारत तैयार होती है तो उसकी लंबाई के मुताबिक, बेस के लिए नींव में कंक्रीट का प्लेटफार्म तैयार किया जाता है। यह उसकी ऊंचाई के अनुसार ही लंबा और चौड़ा होता है। ऐसी इमारतों में नैशनल बिल्डिंग कोड का ध्यान रखा जाता है। मैप जितने भी फ्लोर के हिसाब से पास हुआ हो, इमारत भी उससे ज्यादा की फ्लोर का नहीं होनी चाहिए। यदि कोई बिल्डर रिवाइज्ड नक्शा पास कराना चाहता है तो उसे बुकिंग कराने वाले इन्वेस्टरों से एनओसी लेनी होती है। यदि कोई बिल्डर मनमाने तरीके से अतिरिक्त फ्लोर बनाता अथॉरिटी आवंटन रद्द कर सकती है
भूकंप रोधी तकनीक में मिट्टी की टेस्टिंग जरूरी
इमारत बनाते वक्त मिट्टी का परीक्षण और पानी को जांचा जाता है। इनमें बिल्डर भूकंप रोधी तकनीक इस्तेमाल करते हैं। जापान में अब कोई हाईराइज बिल्डिंग नहीं गिरती, जबकि वहां भूकंप खूब आते हैं। यही वजह है कि वहां बहुमंजिला इमारत ज्यादा सुरक्षित हैं। बहरहाल, मिट्टी की टेस्टिंग के बाद पाइलिंग की जाती है। नींव मजूबत करने के बाद इसे फ्रेम स्ट्रक्चर में बनाकर इमारत का निर्माण किया जाता है। इसमें अब जम्प फोम और माईवान का इस्तेमाल किया जाता है। अब स्लैब और दीवार को एक साथ मिलाकर शेयर वल बनाई जाती है, जो सेफ्टी और स्ट्रक्चर के लिहाज से बेहद मजबूत है।
अगर प्लॉट लेकर बनाना हो मकान
प्लॉट लेकर मकान बनाने से पहले यह जरूरी है कि आप उस जगह की मिट्टी की जांच अवश्य कर लें। मुम्बई पीडब्ल्यूडी के आर्केटेक्चर संतोष ने बताया कि इस जांच में उस निर्धारित स्थान की क्षमता, मिट्टी की संपूर्ण स्थिति आदि की जानकारी मिल सकती है। यही नहीं इस मुआयने में ही मकान के नक्शे और मंजिलों की संख्या भी तय की जा सकती है। भूकंपरोधी घर बनाने के लिए उसका पेटर्न और शेप भी अहम माने जाते हैं। आज की आरसीसी तकनीक में इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाता है।
इस तकनीक के तहत भूकंपरोधी घरों में आयताकार, सी शेप, एल शेप या क्रॉस शेप सबसे ज्यादा प्रभावशाली मानी गई है। साथ ही भूकंपरोधी मकान बनाने के लिए पहले जहां लोड बियरिंग स्ट्रक्चर बनाया जाता था, वहीं अब फ्रेम स्ट्रक्चर बनाए जाते हैं। फ्रेम स्ट्रक्चर में पूरी इमारत कॉलम पर खड़ी की जाती है। मकान की मजबूती उसमें इस्तेमाल स्टील या सरियों पर आधारित होती है। दिल्ली पीडब्ल्यूडी के पूर्व वरिष्ठ इंजीनियर ने बताया कि अगर पूरे मकान में तीन टन सरिये का इस्तेमाल होना है, ऐसे में इसे भूकंपरोधी बनाने के लिए इसमें पांच प्रतिशत सरिये की मात्रा बढ़ जाएगी। आमतौर पर मकान खर्च 50 लाख है तो भूकंपरोधी बनाने में इसका खर्च 15 प्रतिशत बढ़ सकता है।
बने फ्लैट को लेते समय रखें ध्यान
प्लॉट की बजाय अगर आप बना-बनाया फ्लैट लेने जा रहे हैं तो इसमें भी आपके पास कुछ विकल्प बचते हैं। संतोष ने बताया कि तैयार घर में आपको बिल्डर से सर्टिफिकेट लेना जरूरी है। यह सर्टिफिकेट नेशनल बिल्डिंग कोड के तहत ही होना चाहिए। यही नहीं, घर में इस्तेमाल मैटीरियल जिसमें कंकरीट, सीमेंट, ईंट, सरिये आदि की जांच होनी चाहिए। घर में प्रयोग हुए प्लास्टर, कॉलम बेस आदि सभी की पूरी जांच पड़ताल करनी चाहिए।
घर में लगे कॉलम की मोटाई और संख्या, निर्माण में इस्तेमाल हुई मिट्टी की स्थिति आदि का पता लगाना जरूरी है। साथ ही घर की शेप, पेटर्न, खिड़कियों और अन्य चीजों की बनावट आदि का मुआयना किसी स्ट्रक्चर इंजीनियर से करवाना चाहिए। अगर आप फ्लोर बना रहे हैं तो अतिरिक्त खर्च 10 फीसदी रहेगा।
जापान से ली जा सकती है सीख
चंदन घोष का कहना है कि जापान में बनने वाली इमारतें अच्छी गुणवत्ता की होती है, जो मजबूती के साथ लचीलापन भी लिए हुए हैं। जो हिलडुल कर फिर से सीधी खड़ी हो सकती हैं, लेकिन दिल्ली की इमारतों में ऐसा कुछ नहीं है, जो इस पैमाने के भूकंप को झेल सके।
इन पर रहें मुख्य फोकस
-भूकंपरोधी डिजाइन बनाया जाए संरचनाओं के पुर्नसुधार किए जाए
- भूकंप तकनीक के भारतीय निर्देशों और मानकों का पालन किया जाए
-लाइफलाइन बिल्डिंगों का सिस्मिक आकलन और रेट्रोफिटिंग किया जाए
-डिजास्टर सेफ कंस्ट्रक्शन प्रैक्टिस को बढ़ावा दिया जाए
-टेक्नो-लीगल और टेक्नो फाइनेंशियल फ्रेमवर्क का प्रयोग किया जाए
-घर बनाने वाले मिस्त्रियों, आर्किटेक्ट और इंजीनियर को प्रशिक्षण दिया जाए