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FILM मोहल्ला अस्सीः देखने और राय बनाने से पहले, जानें- उपन्यास के रोचक तथ्य

काशीनाथ कहते हैं, जो नहीं जानते अस्सी और भाषा के बीच ननद-भौजाई व साली-बहनोई का रिश्ता है! जो भाषा में गंदगी, गाली, अश्लीलता और जाने क्या-क्या देखते हैं। वे इसे पढ़कर दिल न दुखाएँ।

By Amit SinghEdited By: Published: Sat, 17 Nov 2018 03:30 PM (IST)Updated: Sat, 17 Nov 2018 03:44 PM (IST)
FILM मोहल्ला अस्सीः देखने और राय बनाने से पहले, जानें- उपन्यास के रोचक तथ्य
FILM मोहल्ला अस्सीः देखने और राय बनाने से पहले, जानें- उपन्यास के रोचक तथ्य

वाराणसी [जागरण स्पेशल]। ‘मित्रो, यह संस्मरण वयस्कों के लिए है, बच्चों और बूढ़ों के लिए नहीं; और उनके लिए भी नहीं जो यह नहीं जानते कि अस्सी और भाषा के बीच ननद-भौजाई और साली-बहनोई का रिश्ता है! जो भाषा में गन्दगी, गाली, अश्लीलता और जाने क्या-क्या देखते हैं और जिन्हें हमारे मुहल्ले के भाषाविद् ‘परम’ (देशज अंदाज में मजाकिया गाली) कहते हैं, वे भी कृपया इसे पढ़कर अपना दिल न दुखाएँ-तो सबसे पहले इस मुहल्ले का मुख्तसर-सा बायोडॉटा—कमर में गमछा, कन्धे पर लँगोट और बदन पर जनेऊ—यह ‘यूनिफॉर्म’ है अस्सी का!’ ये प्रस्तावना है मशहूर साहित्यकार काशीनाथ सिंह के कालजयी उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ का। इसी उपन्यास पर आधारित है फिल्म ‘मोहल्ला अस्सी’।

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बनारस के बारे में कहा जाता है कि ‘जो मजा बनारस में, न पेरिस में न फारस में।’ काशीनाथ सिंह का उपन्यास ‘काशी का अस्सी’ इस लाइन को चरितार्थ करता है। ‘काशी का अस्सी’ जिन्दगी और जिन्दादिली से भरा एक अलग तरह का उपन्यास है। पिछले कई वर्षों से ‘अस्सी’ (बनारस का एक मोहल्ला) काशीनाथ की भी पहचान रहा है और बनारस की भी। उपन्यास बनने से पहले इसके कुछ अंश ‘कथा रिपोर्ताज’ के नाम से एक मशहूर पत्रिका में छपे थे। इसके बाद पाठकों और लेखकों मे हलचल मच गई थी। कई शहरों और कस्बों में उन अंकों के लिए लूट-सी मच गई थी। उनके फोटो स्टेट तक हुए। उपन्यास के वास्तविक पात्रों तक में बावेला मच गया था। मारपीट से लेकर कोर्ट-कचहरी की धमकियों तक नौबत आ गई थी।

इस उपन्यास में पाँच कथाएँ हैं और उन सभी कथाओं का केन्द्र भी अस्सी है। हर कथा में स्थान भी वही, पात्र भी वे ही-अपने असली और वास्तविक नामों के साथ, अपनी बोली-बानी और लहजों के साथ। हर राष्ट्रीय और अन्तर्राष्ट्रीय मुद्दे पर इन पात्रों की बेमुरव्वत और लट्ठ मार टिप्पणियाँ काशी की उस देशज और लोकपरम्परा की याद दिलाती है, जिसके वारिस कबीर और भारतेन्दु थे। उपन्यास की भाषा उसकी जान है-देशपन और व्यंग्य-विनोद में सराबोर। काशीनाथ की नजरों में ‘अस्सी’, भारतीय समाज में पक रही राजनीतिक-सांस्कृतिक खिचड़ी की पहचान के लिए चावल का एक दाना भर है, बस।

विवादों में रहा था उपन्यास
उपन्यास में जगह-जगह गालियों का प्रयोग का प्रयोग किया गया है, जिसके बारे में लेखक ने प्रस्तवना में ही जिक्र किया है। लिहाजा जब यह उपन्यास प्रकाशित हुआ, तो इस पर काफी बवाल भी मचा और इसकी काफी आलोचना भी हुई। इसकी भाषा को किसी ने असभ्य बताया तो किसी ने अश्लील, बावजूद ये उपन्यास आम पाठकों को काफी पसंद आया। अब भी कहीं काशी का अस्सी का जिक्र होता है तो उपन्यास पढ़ने वाले गर्व से बताते हैं कि मैने पढ़ी है ये किताब। उपन्यास की तरह ही जब इस पर फिल्म बनी तो उस पर भी काफी विवाद हुआ। कई सालों से ये फिल्म विवादों में फंसी रही। काफी कांठ-छांट के बाद इस फिल्म को अब बड़े पर्दे पर रिलीज किया गया है। हालांकि कई साल पहले ही ये फिल्म इंटरनेट पर लीक हो गई थी।

बनारस का ‘ब’ न जानने वालों ने किरदार में जान भर दी
बनारस (वाराणसी) को जीना तो दूर, जानना-समझना भी इतना आसान नहीं है, लेकिन बनारस का 'ब' तक न जानने वाले कई कलाकारों ने किरदारों में जान भर दी। इनमें पंडा पं. धर्मनाथ पांडेय की भूमिका को जीवंत करने वाले पंजाबी पृष्ठभूमि के सनी देओल ने अपने एंग्री यंग मैन की इमेज के विपरीत बनारसी पंडा व संस्कृत विद्वान की भूमिका में जमे हैं। सनी देओल की पत्नी सावित्री के रूप में साक्षी तंवर के अभिनय को भी सराहते हैं। पूरबिया कनेक्शन की वजह से तन्नी गुरु बने भोजपुरी के प्रसिद्ध अभिनेता रवि किशन ने कमाल ही कर दिया है। फैसल रशीद भी बार्बर बाबा की भूमिका में प्रभाव छोड़ते हैं। पप्पू व डा. गया सिंह समेत अन्य भूमिकाएं निभाने वालों ने इस तरह किरदारों में जान भरी की उन्हें न जानने पहचानने वालों के दिलो-दिमाग पर जैसे वे ही छा जाएं। फिल्म पर्दे पर आने की खुशी तो पूरे बनारस को होगी, लेकिन इसमें से कई असल पात्र अब इसे साझा करने के लिए दुनिया में नहीं हैं। इनमें से तन्नी गुरु (नरेंद्र उपाध्याय) का 90 वर्ष की उम्र में साल 2017 फरवरी में निधन हो गया। उनकी अंतिम यात्रा में काशीनाथ सिंह भी शामिल हुए थे।

अयोध्या और बाबरी विध्वंस भी दिखाया
मोहल्ला अस्सी फिल्म काफी विवादों के बाद अब रिलीज हो चुकी है। कई काट छांट के बाद भी फिल्म में 1990 के दशक का इतिहास बरकरार है। इसमें अयोध्यार विवाद में कालखंड और छह दिसंबर को बाबरी विध्वंसस के बाद गर्म हुए सियासी माहौल और वाराणसी पर पड़ने वाले उसके असर को भी दर्शाया गया है। फिल्म में अयोध्याव में बाबरी मस्जिद विध्‍वंस के दौरान उपजे माहौल का भी एक हिस्साो शामिल है। हालांकि उपन्याेस की भांति फिल्म में अयोध्याव विवाद की छाया महज कुछ ही देर की है, मगर इन दिनों उठे अयोध्या पर सियासी घमासान के बीच फिल्म का अयोध्याज वाला सीन चर्चा में जरूर आ गया है।


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