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नक्सली भी कांपते इनके नाम से... जानिए कौन हैं कोया कमांडो

कोया कमांडो जिनके नाम से ही नक्सलियों की रूह कांप जाती है क्योंकि यही हैं जो उन्हें सबक सिखा रहे हैं।

By Jagran News NetworkEdited By: Published: Fri, 15 Jun 2018 05:20 PM (IST)Updated: Fri, 15 Jun 2018 06:32 PM (IST)
नक्सली भी कांपते इनके नाम से... जानिए कौन हैं कोया कमांडो

नई दिल्ली, जेएनएन। नक्सली जिनका नाम सुनते ही जेहन में दहशत भर जाती है, आतंक का राज कायम किए ये नक्सली भी किसी से डरते हैं, एेसा सोचना भी अजीब लगता है लेकिन यह सच है। कोया कमांडो... ये वही है जिसके नाम से ही नक्सलियों में दहशत हो जाती है। यही टीम है जो उनके नापाक इरादों को नेस्तनाबूद कर रही है। आइए, हम आपको बताते हैं कौन हैं ये कोया कमांडो...।
छत्तीसगढ़ की राजधानी रायपुर से करीब चार सौ किमी दूर सुकमा और वहां से करीब 50 किमी. दूर एर्राबोर। धुर नक्सल प्रभावित यह गांव में 2006 में सलवा जुड़ूम का गढ़ रहा। सलवा जुड़ूम यानी नक्सलियों के खिलाफ ग्रामीणों का आंदोलन। इस आंदोलन में ग्रामीणों ने ही नक्सलियों का कड़ा विरोध किया। इसके बाद एर्राबोर गांव से काफी युवा विशेष पुलिस अधिकारी (एसपीओ) बने। इनमें से तेज-तर्रार लड़ाकों की अलग कंपनियां बनाई गईं। ज्यादातर कोया जाति के थे, इसलिए ब्रिगेड को नाम दिया गया - कोया कमांडो। उन्हें राज्य के कांकेर स्थित कालेज ऑफ जंगल वारफेयर एंड काउंटर टेरेरिज्म कांकेर में प्रशिक्षण दिया जाता है।

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बस्तर में नक्सलियों को खदेड़ने में अहम् भूमिका
बस्तर में नक्सलियों को पीछे खदेड़ने में कोया कमांडो बड़ी भूमिका निभा रहे हैं। डीआरजी (डिस्ट्रिक्ट रिजर्व गार्ड) के रूप में बस्तर में तैनात इस दस्ते के एक हजार जवानों ने मिजोरम में गुरिल्ला युद्ध का विशेष प्रशिक्षण लेने के बाद नक्सल मोर्चे पर कमान संभाली। 2011 में समर्पित नक्सल लड़ाकों को राज्य सरकार ने एसपीओ (विशेष पुलिस अधिकारी) के रूप में नियुक्ति दी थी।

नक्सली हिंसा के शिकार हुए, जुड़ गए सरकार से
कोया कमांडो टीम में एेसे युवा शामिल हैं, जो नक्सली हिंसा का शिकार हुए हैं । उनके परिवार ने नक्सलियों का दमन झेला है और उनके परिवारों को नक्सलियों की ज्यादती का सामना करना पड़ा। इसके बाद वह नक्सलियों के खात्मे के लिए सरकार से जुड़ गए और नक्सलियों को सबक सिखा रहे हैं।

मानवाधिकार संगठनों की मदद से हटाने का प्रयास
नक्सलियों ने इन्हें हटवाने के लिए मानवाधिकार संगठनों की आड़ लेने की कोशिश की। मानवाधिकार संगठनों की याचिका पर अदालत ने इनकी नियुक्ति को अवैधानिक ठहरा दिया था। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार ने कानून बनाकर सहायक आरक्षक का पद सृजित किया। इसके बाद बने इस बल में स्थानीय आदिवासी युवकों व आत्म समर्पित नक्सलियों को रखा गया।

क्यों दहशत में रहते हैं  नक्सली
कोया कमांडो पुलिस द्वारा प्रशिक्षित किए गए हैं। ये जवान स्थानीय बोली-भाषा और जंगल की विषमता, इतिहास व भूगोल से भली भांति परिचित हैं लिहाजा नक्सली सबसे अधिक खौफ इन्हीं से खाते हैं। नक्सल उन्मूलन मुहिम में डीआरजी बस्तर संभाग के सभी सात जिलों में अधिकतर ऑपरेशन को अब लीड करती है। अबूझमाड़ में चलाए गए ऑपरेशन प्रहार-दो में भी इस दस्ते को अहम सफलता मिली।

सबसे कारगर हथियार बने कोेया कमांडो
आइजी, बस्तर, विवेकानंद सिन्हा कहते हैं कि नक्सल रणनीति की काट में यह दस्ता सबसे कारगर साबित हुआ है। इसने नक्सलियों का दमनचक्र रोकने में बड़ी अहम् भूमिका निभाई है और हर कदम पर सरकारी तंत्र का मददगार बना है जिसकी वजह से नक्सलियों में काफी दहशत है।


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